दुनियाभर के कई देशों में भारत की बनाई ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल खरीदने की होड़ लगी हुई है. हाल ही में भारत ने फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल की डिलीवरी दी है. ब्रह्मोस को खरीदने वाले देशों में कई और नाम भी शामिल हो रहे हैं. मिसाइल के स्पेशल फीचर्स ने ब्रह्मोस को भारत का सबसे ताकतवर हथियार बना दिया है.
पिछले साल 2022 में भारत और फिलीपींस के बीच 375 मिलियन डॉलर में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को लेकर समझौता हुआ था, जिसके बाद हाल ही में भारत ने फिलीपींस को मिसाइल की डिलीवरी की थी. ब्रह्मोस के सीईओ और एमडी ए. डी. राणे ने बताया है कि ब्रह्मोस मिसाइल को पसंद करने वाले देश की लिस्ट बढ़ती ही जा रही है, जिसमें अब अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका भी शामिल हो गया है. दक्षिण-पूर्व-एशिया, मध्य पूर्व-उत्तरी अफ्रीका (MENA क्षेत्र) के देश इस मिसाइल को खरीदने में अच्छी खासी रुचि दिखा रहे हैं, ये देश BRAHMOS सिस्टम चाहते हैं. इस मिसाइल की मारक क्षमता और स्पेशल फीचर्स ने इसे काफी खतरनाक और शक्तिशाली बनाता है. हालांकि भारत इस मिसाइल को सिर्फ उन्हीं देशों को देगा, जिसके साथ भारत के रिश्ते मजबूत हैं. भारत ब्रह्मोस निर्यात करने के लिए अपनी एकमार्केटिंग रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है.
मिसाइल के खरीददारों की बढ़ी लिस्ट
आज के समय में क्रूज मिसाइल प्रणाली दुनिया में सबसे ज्यादा चर्चित है और अभी के समय में इसे लेकरदुनिया भर के कई विदेशी मित्र देश भारत की इस ट्राई सर्विसेज में इस्तेमाल होने वाली मिसाइल को लेकर उत्साहित हैं. ब्रह्मोस मिसाइल की अन्य देशों में चाह से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि फिलीपींस के अलावा अन्य दक्षिण-पूर्व-एशिया देश भी भारत के इस मिसाइल के जरिए साउथ चाइना की नाक में दम करेंगे. फिलहाल ब्रह्मोस में सबसे ज्यादा अफ्रीकी देश रुचि ले रहा है, इसकी मुख्य वजह है सोमालिया लुटेरों का खतरा. दरअसल, उत्तर मेंभूमध्य सागर कीसीमा अफ्रीका से लगती है जो कि यूरोप और पश्चिमी एशिया के लिए एक महत्वपूर्ण जलमार्ग प्रदान करता है. लेकिन अफ्रीकी देश भी सोमालिया लुटेरों का खतरा काफी ज्यादा है जिससे निपटने के लिए और लुटेरों से सुरक्षित रहने के लिए अफ्रीका अपने देश की सीमा पर ब्रह्मोस को तैनात करेगी.
ब्रह्मोस मिसाइल भारत का ‘ब्रह्मास्त्र’
अफ्रीका के साथ-साथ ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल पर मिडिल ईस्ट के देश भी भरोसा जता चुके हैं, जो कि अरब सागर में अपनी सीमाओं की रक्षा करने के लिए इसे खरीदना चाहते हैं. ब्रह्मोस मिसाइल पूर्व में अटलांटिक महासागर महाद्वीप की सीमा और पश्चिम में प्रशांत महासागर महाद्वीप की सीमा तय कर सकता है, जिसको देखते हुए लैटिन अमेरिका भी इस मिसाइल में रुचि दिखा रहा है. भारत उन ब्रह्मोस मिसाइल को खरीदने वाले सभी देशों के साथ संपर्क बनाए हुए है. ब्रह्मोस मिसाइल तैयार करने वाली ब्रह्मोस एयरोस्पेस (Brahmos aerospace) और DRDO को उम्मीद है कि जल्द ही अपने अगले डील पर साइन करेंगे और आने वाले समय में यह मिसाइल भारत का प्रमुख हथियार निर्यात बनेगी. ब्रह्मोस एयरोस्पेस के सीईओ और एमडी ने कहा कि हम हथियारों के व्यापार में अपनी उपस्थिति बढ़ाने और शक्तिशाली देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए लगन से काम कर रहे हैं. ब्रह्मोस मिसाइल काफी ताकतवर है, जिसको लेकर पिछले साल सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने इसे भारत के मिसाइल जखीरे का ‘ब्रह्मास्त्र’ बताया था.
क्या है ब्रह्मोस मिसाइल की खासियत
साल 1995 में भारत के ‘डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन’ (डीआरडीओ) और रूस के एनपीओ मशिन स्ट्रोये निया ने मिलकर ‘ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड’ की स्थापना की थी, जो कि ब्रह्मोस मिसाइल को तैयार किया है, ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड भारत-रूस का ज्वाइंट वेंचर है, जिसका हेडक्वार्टर दिल्ली में है. इस मिसाइल को पनडुब्बियों, जहाजों, विमानों आदि से लॉन्च कर दुश्मन के टारगेट को नेस्तनाबूद किया जा सकता है. इसकी रेंज 290 किलोमीटर है, हालांकि, इसे बढ़ाकर 500 किलोमीटर करने के लिए भी काम चल रहा है. ब्रह्मोस मिसाइल की रफ्तार 2.8 मैक है जो कि ध्वनि की गति से लगभग 3 गुना है, इसकी रफ्तार बढ़ाने पर काम किया जा रहा है, जो कि बढ़ने के बाद 4 मैक यानी 3,700 किलोमीटर प्रति घंटा हो जाएगी.
भारत के पास ब्रह्मोस के कई वर्जन मौजूद हैं. इसमें जमीन से हवा में मारने वाली मिसाइल के साथ-साथ युद्धपोतों और विमानों से लॉन्च किए जाने वाला ब्रह्मोस भी शामिल है. ये मिसाइल हवा में ही रास्ता बदलने में सक्षम है. 10 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता की वजह से ये रडार की पकड़ में नहीं आती है. ब्रह्मोस मिसाइल 200 किलोग्राम के वॉरहेड को ले जा सकती है. ये ‘फायर एंड फॉरगेट/दागो और भूल जाओ’ सिद्धांत पर काम करती है. इसका मतलब है कि एक बार लॉन्च होने के बाद ये टारगेट को तबाह करके ही आती है.