अयोध्या: श्रावण मास की शीतल फुहारें और भक्तिभाव का उल्लास जब एक साथ किसी भूमि पर उतरते हैं, तो वह भूमि स्वर्ग से कम प्रतीत नहीं होती। ऐसा ही दृश्य सावन के इस पावन पर्व पर रामनगरी अयोध्या में देखने को मिला, जब श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में झूलनोत्सव का शुभारंभ हुआ. श्रद्धा, संस्कृति और साज-सज्जा का ऐसा अद्भुत संगम देश-दुनिया के लाखों श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर गया.
मंगलवार को श्रावण शुक्ल पंचमी के अवसर पर जैसे ही प्रातः सवा छह बजे गर्भगृह के पट खुले, वैसे ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. मंदिर की पवित्र प्रांगण में “जय श्रीराम” के घोषों से आसमान गूंज उठा। मंदिर परिसर को फूलों से सजाया गया था, जो मानो स्वयं प्रकृति ने भगवान राम के स्वागत में अर्पित किए हों. चारों ओर रंग-बिरंगी झालरें, फूलों की मालाएं, रजत दीपों की आभा और देववाणी की तरह गूंजते मंत्र – ये सब मिलकर एक अलौकिक वातावरण बना रहे थे.
रजत हिंडोले पर रामलला का भव्य दर्शन
श्रद्धा का मुख्य केंद्र बना गर्भगृह, जहां प्रभु श्रीराम अपने भ्राताओं – लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न – के साथ रजत जड़ित हिंडोले पर विराजमान हुए. अर्चकों द्वारा विधिवत पूजन और अर्चन के पश्चात जब भगवान को झूले पर बैठाया गया, तो मानो पूरा वातावरण भक्तिरस में डूब गया. झूलते रामलला के दर्शन मात्र से श्रद्धालु निहाल होते जा रहे थे. महिलाएं मंगल गीत गा रही थीं, बच्चे जयघोष कर रहे थे, और बुजुर्गों की आंखें श्रद्धा से नम थीं.
श्रृंगार और भोग का दिव्य आयोजन
झूलनोत्सव के अवसर पर रामलला का विशेष श्रृंगार किया गया. पीतांबर धारण किए प्रभु श्रीराम रत्नजड़ित मुकुट और कंठहार से सुसज्जित दिखे. उनके चरणों में चंदन, गुलाब की पंखुड़ियां और तुलसीदल चढ़ाए गए. विशेष भोग में पंचमेवा, केसर मिश्रित खीर, बेसन के लड्डू और फलाहार अर्पित किया गया.
भव्यता में बसी आस्था
मंदिर ट्रस्ट की ओर से गर्भगृह सहित पूरे परिसर को सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. रजत दीपों की रेखाएं, फूलों की सुगंध और रोशनी की छटा ने मंदिर परिसर को स्वर्गिक बना दिया। यह आयोजन केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं था, बल्कि यह अयोध्या के गौरव, संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रदर्शन था.
भक्तों की श्रद्धा से सराबोर रामनगरी
देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालुओं के लिए यह अवसर किसी वरदान से कम नहीं था. हर कोई झूलते हुए रामलला के दर्शन को लालायित दिखा. कतारों में खड़े भक्तों की आंखों में आंसू थे, लेकिन वह आंसू वेदना के नहीं, बल्कि भक्तिभाव और परम आनंद के थे.
“मैं पहली बार झूलनोत्सव पर आया हूं, और रामलला को झूलते देखना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है,” – यह कहना था कर्नाटक से आए एक श्रद्धालु का। वहीं लखनऊ की श्रद्धालु महिला शारदा देवी ने कहा, “यह दृश्य देख मेरे जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो गया. ऐसा दृश्य स्वप्न में भी दुर्लभ है”
सुरक्षा और व्यवस्था का सराहनीय प्रबंध
श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने भी व्यापक सुरक्षा और व्यवस्था के प्रबंध किए थे. मंदिर ट्रस्ट के स्वयंसेवकों और सुरक्षाकर्मियों ने शांतिपूर्ण दर्शन सुनिश्चित किया. गर्भगृह के पास व्यवस्था इतनी सुसंगठित रही कि हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु बिना अव्यवस्था के दर्शन कर पाए.
आस्था, परंपरा और संस्कृति का संगम
झूलनोत्सव केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी सनातन परंपरा का वह सांस्कृतिक उत्सव है, जिसमें ईश्वर और भक्त के बीच की दूरी समाप्त हो जाती है. यह पर्व प्रेम, समर्पण और उत्सवधर्मिता का प्रतीक बनकर सामने आया.
रामनगरी अयोध्या ने सावन के इस पावन अवसर पर जिस तरह भक्ति, परंपरा और भव्यता का संगम प्रस्तुत किया, वह न केवल देश बल्कि दुनिया भर के श्रद्धालुओं के हृदय में अमिट छाप छोड़ गया है।
रामलला के झूलन विहार की दिव्यता
झूलनोत्सव के दौरान रामलला के झूलन विहार का दर्शन करने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि वह क्षण शब्दों से परे था। रजत हिंडोले पर झूलते हुए रामलला को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो स्वयं त्रेतायुग धरती पर उतर आया हो. हर भावुक नेत्रों से निहार रहा था और हर हृदय “राम राम” की गूंज से आलोकित हो रहा था.
सावन का यह झूलनोत्सव न केवल एक धार्मिक पर्व था, बल्कि यह रामभक्ति, संस्कृति और परंपरा की अद्वितीय प्रस्तुति थी। श्रद्धालुओं के लिए यह दिन जीवन भर की स्मृति बन गया, जब उन्होंने रजत हिंडोले पर विराजित रामलला के दर्शन किए और स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर दिया.