कॉल फॉर जस्टिस’ नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि जामिया मिलिया इस्लामिया यूनवर्सिटी में धर्म, जाति, लिंग और क्षेत्र के आधार पर छात्रों के बीच भेदभाव हो रहा है. इस रिपोर्ट को लेकर यूनिवर्सिटी प्रशासन की तरफ से सफाई सामने आई है.
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि विश्वविद्यालय के कुलपति ने जाति, लिंग, धर्म और क्षेत्र के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ “जीरो टोलरेंस” यानी शून्य सहिष्णुता नीति अपनाने का संकल्प लिया है. विश्वविद्यालय ने यह स्पष्ट किया कि इसके प्रशासन ने समाज में समावेशिता और समानता की दिशा में कई ठोस कदम उठाए हैं.
जामिया में भेदभाव पर संस्थान का स्टेटमेंट जारी
हाल ही में, ‘कॉल फॉर जस्टिस’ नामक एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा विश्वविद्यालय में गैर-मुसलमानों, विशेषकर अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) कर्मचारियों और छात्रों के साथ भेदभाव की रिपोर्ट जारी की गई थी. इसे लेकर जामिया ने एक स्टेटमेंट जारी किया है. स्टेटमेंट में लिखा है ‘यह काफी खराब बात है कि जामिया की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठाए गए हैं. हालांकि, जामिया प्रशासन के पिछले कार्यकालों में जातिवाद आधारित भेदभाव से संबंधित कुछ घटनाएं सामने आई थीं. ऐसे सभी मामलों को या तो संवेदनशीलता से नहीं निपटाया गया या फिर नजरअंदाज कर दिया गया.’
‘अब, जब प्रोफेसर मज़हर आसिफ ने कुलपति का पद संभाला है, तो प्रशासन का रवैया और कर्मचारी, विशेष रूप से गैर-मुसलमान और SC/ST कर्मचारियों के प्रति उनका प्रतिबद्धता स्पष्ट रूप से बदला है. किसी भी कुलपति ने पहले कभी SC/ST कर्मचारियों के लिए जितनी पहल की, उतनी पहल प्रोफेसर मज़हर आसिफ ने की. उनके कार्यालय के पहले वे ग्रुप D कर्मचारी थे, जो अधिकांशत: गैर-मुसलमान और SC/ST समुदाय से थे, और उन्होंने न केवल उनके समस्याओं को सुना बल्कि उन्हें सुलझाने के लिए पहल भी की. इसके बाद, उन्होंने सफाई कर्मचारियों और विश्वविद्यालय के सुरक्षा गार्डों के साथ एक सकारात्मक बैठक की’.
जामिया में अपनाई जाएगी जीरो टोलरेंस पॉलिसी
कुलपति प्रोफेसर आसिफ ने जाति, लिंग, धर्म, और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव के किसी भी कार्य के खिलाफ शून्य सहिष्णुता नीति अपनाने का संकल्प लिया है. इसके अलावा, उन्होंने प्रशासनिक पदों पर नियुक्तियों के लिए समावेशिता की नीति को लागू किया है, जिसमें केवल योग्यता और क्षमता के आधार पर नियुक्तियां की जाती हैं. हाल ही में, एक युवा गैर-मुसलमान प्रोफेसर, जो SC समुदाय से संबंधित हैं, को कुलपति, COE और डिप्टी प्रॉक्टर के OSD के रूप में नियुक्त किया गया है, और विश्वविद्यालय में अन्य कई पदों पर भी समान नियुक्तियां की गई हैं. यह वर्तमान प्रशासन की सामाजिक समावेशिता और न्याय की दिशा में स्पष्ट संकेत देता है.
जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी ने कहा, ‘वर्तमान प्रशासन इस रिपोर्ट के प्रति संवेदनशील है और वह किसी भी समुदाय के लोगों के भय और संदेह को दूर करने के लिए हर संभव कदम उठाएगा. विश्वविद्यालय परिसर को सभी समुदायों के शिक्षकों, छात्रों और नॉन-टीचिंग कर्मचारियों के लिए एक सहायक और उत्पादक स्थान बनाए रखने के लिए सुनिश्चित किया जाएगा.’
यूनिवर्सिटी की ओर से आगे कहा गया, ‘गैर मुस्लिमों से बातचीत के संबंध में किसी ने भी हमें कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी है. गैर मुस्लिम छात्रों की मुस्लिम से बातचीत की घटनाओं पर हमारे पास कोई तथ्यात्मक रिपोर्ट नहीं है. अगर ऐसा हो भी रहा है तो ये अभी तक साबित नहीं हुआ है. अगर कोई ठोस सबूत लेकर हमारे पास आता है तो हम सख्त से सख्त कार्रवाई करेंगे।’ हमारे पास ऐसा करने के लिए एक उचित सेटअप है और हम किसी भी शिकायत को सुनने के लिए तैयार हैं क्योंकि हम ऐसे मामलों के प्रति बहुत संवेदनशील हैं और इसके प्रति हमारी शून्य सहनशीलता की नीति है.’