बॉडी ओडर यानी शरीर की गंध को सिर्फ पसीने या साफ-सफाई से जोड़ा जाता है. लेकिन ताज़ा वैज्ञानिक रिसर्च कहती है कि इंसानी शरीर से निकलने वाली गंध हमारी हेल्थ का भी बड़ा राज़ खोल सकती है. अलग-अलग स्टडीज़ से साबित हुआ है कि बॉडी ओडर से पार्किंसन, मलेरिया और यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों का भी सुराग लगाया जा सकता है. आइए जानते हैं कैसे?
पार्किंसन का ‘स्मेल सिग्नेचर’
पार्किंसन को अब तक सबसे मुश्किल बीमारियों में गिना जाता है क्योंकि इसका शुरुआती डायग्नोसिस बेहद कठिन होता है, लेकिन यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के वैज्ञानिकों ने एक बड़ी खोज की है. उन्होंने पार्किंसन मरीजों की त्वचा से निकले sebum का mass spectrometry से विश्लेषण किया.
इसमें करीब 30 ऐसे volatile organic compounds (VOCs) पाए गए, जो सिर्फ पार्किंसन मरीजों में मौजूद थे. इनमें eicosane और octadecanal जैसे खास कंपाउंड भी शामिल हैं. ये खोज इतनी महत्वपूर्ण है कि अब सिर्फ एक skin swab टेस्ट से 3 मिनट में पार्किंसन का पता लगाया जा सकता है.
BBC ने अपनी रिपोर्ट में इसी रिसर्च पर बात करते हुए वैज्ञानिक Prof. Perdita Barran का हवाला दिया है. प्रो पेर्डिटा के मुताबिक ये पहली बार है जब हम किसी बीमारी को उसकी गंध से एकदम सटीक तरीके से पहचान पा रहे हैं.
मलेरिया और बच्चों की गंध
साल 2018 में केन्या में हुई एक स्टडी ने भी हैरान करने वाला रिजल्ट दिया. इसमें 56 बच्चों के foot-odour samples लिए गए. इसमें पाया गया कि मलेरिया संक्रमित बच्चों के शरीर से heptanal, octanal और nonanal नामक aldehydes ज्यादा मात्रा में निकलते हैं. यही गंध एक तरह का fruity-grassy स्मेल बनाती है जो मच्छरों को खासतौर पर आकर्षित करती है. यानी ये गंध न सिर्फ बीमारी का संकेत देती है बल्कि बीमारी फैलने की एक अहम कड़ी भी है.
कुत्तों से तेज आर्टिफिशियल नाक बना रहे वैज्ञानिक
कई इंटरनेशनल स्टडीज़ में यह भी सामने आ चुका है कि कुत्ते अपनी सूंघने की क्षमता से कैंसर जैसी बीमारियों को पकड़ सकते हैं. एक रिसर्च में कुत्तों ने प्रोस्टेट कैंसर को 99% मामलों में सही पहचाना. अब MIT से जुड़े वैज्ञानिक Andreas Mershin की टीम ने इसी आधार पर RealNose.ai प्रोजेक्ट शुरू किया है. इसमें इंसानी olfactory receptors और मशीन लर्निंग को मिलाकर एक ऐसी आर्टिफिशियल नाक तैयार की जा रही है, जो इंसान से भी ज्यादा सटीक तरीके से गंध पहचान सके. एक रिपोर्ट में Mershin ने कहा है कि हमारा लक्ष्य है कि मशीन की नाक कुत्ते से बेहतर हो और ये किसी भी बीमारी को सूंघकर बता सके.
कैसे फायदेमंद होंगी ये रिसर्च
वैज्ञानिकों की ये रिसर्च बताती है कि शरीर की गंध बीमारी का शुरुआती अलार्म हो सकती है. बिना ब्लड टेस्ट और बिना बायोप्सी के, डायग्नोसिस का नया रास्ता खुल रहा है. आने वाले वक्त में डॉक्टर आपकी गंध से ही बीमारी पकड़ सकते हैं. आइए जानते हैं कि किस बीमारी में कैसी गंध होती है, वैज्ञानिकों ने क्या पाया.
कौन सी बीमारी में कैसी गंध आती है?
डायबिटीज- अगर किसी मरीज के शरीर या सांस से फलों जैसी (rotten apple) गंध आती है, तो ये ब्लड में कीटोन बॉडीज़ बढ़ने का संकेत हो सकता है.
लिवर डिजीज- शरीर और सांस से सड़े अंडे या सल्फर जैसी गंध आने लगती है.
किडनी फेलियर-सांस से मछली या अमोनिया जैसी गंध.
टीबी (ट्यूबरकुलोसिस)- सांस से बासी बीयर और त्वचा से गीले गत्ते जैसी गंध.
मलेरिया- बच्चों की स्किन से मीठी-घास जैसी गंध, जो मच्छरों को खास तौर पर आकर्षित करती है.
पार्किंसन डिजीज- शरीर से मस्की यानी तेज, पुरानी लकड़ी जैसी गंध.