घृणित घटना, सहिष्णुता के प्रतीकों को मिटाने की कोशिश… बांग्लादेश में रवींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर पर हमला से बिफरा MEA

भारत ने बांग्लादेश में नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर पर भीड़ द्वारा की गई तोड़फोड़ की घटना की कड़ी निंदा की है. विदेश मंत्रालय (MEA) ने इसे एक घृणित और हिंसक कृत्य करार देते हुए कहा कि यह भारत-बांग्लादेश की साझा विरासत पर हमला है और समावेशी मूल्यों की अवहेलना है.

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गुरुवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हम बांग्लादेश में रवींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर पर भीड़ द्वारा की गई तोड़फोड़ की घृणित कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हैं. यह हिंसक कृत्य नोबेल पुरस्कार विजेता द्वारा समर्थित स्मृति और समावेशी मूल्यों का अपमान है.

प्रवक्ता ने आगे कहा कि यह हमला न केवल ऐतिहासिक धरोहर पर हमला है, बल्कि यह चरमपंथियों द्वारा सहिष्णुता के प्रतीकों को मिटाने के सुनियोजित प्रयासों का हिस्सा भी प्रतीत होता है. उन्होंने इसे एक चिंताजनक प्रवृत्ति बताया और बांग्लादेश सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की.

उन्होंने कहा कि हमने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से अपराधियों पर लगाम कसने और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का आग्रह किया है.

जानें क्या है पूरा मामला?

यह घटना 8 जून को बांग्लादेश के सिराजगंज जिले के शहजादपुर स्थित ‘रवींद्र कचहरीबाड़ी’ में हुई. यह वह ऐतिहासिक हवेली है, जहां टैगोर ने अपने जीवन के कई साल बिताए और कई महत्वपूर्ण साहित्यिक रचनाएं कीं.

जानकारी के अनुसार, विवाद की शुरुआत एक विजिटर और संग्रहालय कर्मचारी के बीच मोटरसाइकिल पार्किंग शुल्क को लेकर हुई कहासुनी से हुई. विवाद के दौरान विजिटर को एक कमरे में बंद कर दिया गया और उसके साथ मारपीट की गई. इसके बाद, स्थानीय लोगों में आक्रोश फैल गया और मंगलवार को उन्होंने मानव श्रृंखला बनाकर प्रदर्शन किया.

इसके जवाब में, एक भीड़ ने संग्रहालय परिसर में घुसकर तोड़फोड़ की और सभागार में जमकर नुकसान पहुंचाया। हमले में संग्रहालय के एक वरिष्ठ अधिकारी पर भी हमला किया गया.

टैगौर के पैतृक घर पर हमला से नाराजगी

बांग्लादेश के पुरातत्व विभाग ने घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की है. समिति को पांच कार्य दिवसों के भीतर रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए गए हैं.

राजशाही डिवीजन में स्थित कचहरीबाड़ी टैगोर परिवार की पारिवारिक संपत्ति और राजस्व कार्यालय दोनों के रूप में जानी जाती है. यह न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि बांग्ला साहित्य और संस्कृति का एक जीवित प्रतीक है.

रवींद्रनाथ टैगोर 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय व्यक्ति बने थे. इस स्थान से उनका गहरा नाता रहा है, और इसी भवन में उन्होंने गोरा, घरे बाहिरे, और कई गीतों और कविताओं की रचना की थी.

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