‘क्या कोर्ट के पास इतनी फुर्सत है 94000 रुपए पर चर्चा करे’, हाईकोर्ट की एमपी सरकार को फटकार

इंदौर: ‘तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को विभाग के उच्च अधिकारियों के गलत एवं अड़ियल रवैये का शिकार क्यों होना पड़ रहा है. क्या कोर्ट के पास इतनी फुर्सत है कि वह 94 हजार रुपए के मामले में चर्चा करे. मध्य प्रदेश कैबिनेट इस मामले की जांच करे.” एक मामले की सुनवाई करते हुए इंदौर हाईकोर्ट ने यह बात कही.

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दरअसल पिछले दिनों चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने एक याचिका इंदौर हाईकोर्ट में लगाई थी. जिसमें कर्मचारी ने कोर्ट के समक्ष यह बात रखी कि उसके सेवानिवृत्त होने के बाद उससे 94 हजार रुपए वसूले गए. उसने आरोप लगाया था कि रिटायर होने के बाद मुझे क्यों परेशान किया जा रहा है. 29 नवंबर 2022 को उसने कोर्ट में याचिका लगाई थी. उसी मामले को लेकर कोर्ट ने मामले ने सुनवाई कर यह आदेश निकाले हैं.

वरिष्ठ अधिकारियों के फैसले से प्रभावित निचले कर्मचारी

मामले की सुनवाई इंदौर हाई कोर्ट में हुई. प्रशासनिक जज विवेक रूसिया और जस्टिस गजेंद्र सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि, ”कई मामले अभी तक सामने आए जिसमें विभिन्न विभागों के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी वरिष्ठ अधिकारियों के फैसले से प्रभावित हुए हैं. अधिकतर मामले बढ़ा हुआ वेतनमान वापस लेने, सेवा निवृत्ति के समय वसूली, समान लाभ न देने और पदोन्नति में देरी से जुड़े संबंधित हैं.”

2018 में बनाई गई नीति का पालन क्यों नहीं

वहीं, न्यायालय ने राज्य की 2018 में बनाई गई मुकदमा नीति का हवाला दिया. जिसमें छोटे विवादों के निपटारे के लिए राज्य, जिला और विभागीय स्तर पर समिति के गठन का प्रावधान था. कोर्ट ने इस पूरे मामले में सुनवाई करते हुए आगे कहा कि ऐसा कोई मामला नहीं आया जिसमें प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारी इस तरह के विवाद लेकर हाईकोर्ट पहुंचे हैं. मंत्री परिषद को विचार करना चाहिए कि निचले कर्मचारियों को ही क्यों परेशान किया जा रहा है और इस कारण से कोर्ट का बहुमूल्य समय बर्बाद हो रहा है. साथ ही कोर्ट ने आगे कहा कि जो नीति मध्य प्रदेश में लागू की गई है वह नीति सिर्फ कागजों पर सीमित रह गई है.

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