6 साल से जेल में बंद ड्राइवर को मिली जमानत, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- ‘संविधान की आजादी MCOCA से…’

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में 6 वर्षों से जेल में बंद एक आरोपी को जमानत देते हुए यह स्पष्ट किया कि ट्रायल में अत्यधिक देरी व्यक्ति के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और सशर्त स्वतंत्रता (Conditional Liberty) को कठोर कानूनों के प्रावधानों से ऊपर माना जाना चाहिए. यह मामला राजेश कुमार उर्फ राजे से जुड़ा है, जिसे दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने वर्ष 2018 में 3 किलोग्राम हेरोइन के साथ गिरफ्तार किया था.

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आरोपी पर संगठित अपराधों से संबंधित महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) की धाराएं लगाई गई थीं. पुलिस का दावा था कि राजेश एक कुख्यात अपराधी की कार में यात्रा कर रहा था और पूछताछ में उसने ड्रग सिंडिकेट से जुड़े अन्य लोगों के नाम उजागर किए थे.

6 साल की हिरासत, ट्रायल अभी भी अधूरा

राजेश कुमार पिछले छह वर्षों से न्यायिक हिरासत में है. हाईकोर्ट के समक्ष यह तर्क रखा गया कि आरोपी को अब तक जमानत नहीं दी गई है, जबकि ट्रायल में अब तक केवल 11 गवाहों की ही गवाही हो सकी है, जबकि कुल 100 गवाह बुलाए जाने हैं. अदालत ने माना कि इस दर से ट्रायल पूरा होने में अभी कई साल और लग सकते हैं और यह स्थिति आरोपी के संविधान के अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है.

जस्टिस अमित महाजन की अहम टिप्पणी

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस अमित महाजन ने कहा यह सच है कि MCOCA जैसी विधि में जमानत के लिए कठोर मानदंड निर्धारित हैं, लेकिन कानून का उद्देश्य न्याय को सुनिश्चित करना है, ना कि व्यक्ति को अनिश्चितकाल तक कैद में रखना. जब ट्रायल में अनावश्यक और अत्यधिक देरी हो रही हो, तो संविधान की गारंटी को प्राथमिकता मिलनी चाहिए.

ड्राइवर या अपराधी ? बचाव पक्ष की दलील

राजेश के वकील ने कोर्ट को बताया कि वह केवल कार का ड्राइवर था और उसे गाड़ी में छिपाए गए मादक पदार्थों की जानकारी नहीं थी. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जिस कार से ड्रग्स मिला, वह एक सह-आरोपी के नाम पर पंजीकृत थी, जो पहले से 20 मामलों में शामिल है. वकील ने MCOCA की धाराएं लगाने को भी अनुचित करार दिया.

सकारी वकील का विरोध और कोर्ट की प्रतिक्रिया

सरकार की ओर से पेश वकील ने जमानत का कड़ा विरोध किया. उनका कहना था कि आरोप गंभीर हैं और आरोपी को राहत नहीं दी जानी चाहिए. उनका सुझाव था कि ट्रायल को तेजी से पूरा किया जाए, लेकिन कोर्ट ने कहा कि वर्तमान स्थिति में ट्रायल का शीघ्र निपटारा संभव नहीं लगता. न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति आरोपी को न्याय से वंचित कर रही है.

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, न्याय में देरी अन्याय है

कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि आरोपी को NDPS एक्ट के तहत दर्ज एक मामले में पहले ही जमानत मिल चुकी है और एक अन्य मामले में वह बरी भी हो चुका है. साथ ही, नामावली रिपोर्ट में उसका व्यवहार संतोषजनक बताया गया और यह भी पाया गया कि जब उसे अंतरिम जमानत दी गई थी, तब उसने उसका कोई दुरुपयोग नहीं किया. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह इस आदेश में मामले के मेरिट पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा है और यह फैसला केवल बेल अर्जी के संदर्भ में लिया गया है.

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