जयपुर में अब अगस्त में होगा ड्रोन बारिश का प्रयोग:भारी बारिश के अलर्ट के चलते किया बदलाव, केंद्र-राज्य से मिली सभी मंजूरियां

जयपुर में रामगढ़ बांध के इलाके में ड्रोन से होने वाली कृत्रिम बारिश के प्रयोग को टाल दिया गया है। गुरुवार से कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा इसकी शुरुआत करने वाले थे। लेकिन, भारी बारिश की चेतावनी को देखते हुए इसे स्थगित किया गया।

देश में पहली बार ड्रोन के जरिए रामगढ़ बांध पर कृत्रिम बारिश करवाने के प्रयोग की शुरुआत 31 जुलाई से होनी थी। अब अगस्त महीने में यह प्रयोग शुरू होने के आसार हैं। अब तक कृत्रिम बारिश के लिए प्लेन काम में लिया जाता था, लेकिन जयपुर में ड्रोन को चुना गया।

कृत्रिम बारिश के प्रयोग के लिए ताइवान से विशेष ड्रोन दो दिन पहले ही जयपुर पहुंच चुका था। वैज्ञानिकों की टीम भी जयपुर में है, टीम को नए सिरे से प्रयोग की तारीख का इंतजार है।

डीजीसीए सहित सभी विभागों से कृत्रिम बारिश की मंजूरियां मिलीं रामगढ़ बांध पर ड्रोन से कृत्रिम बारिश के लिए केंद्र औ राज्य सरकार के संबंधित विभागों और एजेंसियों से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। कृषि विभाग पहले ही मंजूरी दे चुका था, इसके बाद मौसम विभाग, जिला प्रशासन भी मंजूरियां दे चुका है।

ड्रोन से प्रयोग के लिए डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) की मंजूरी भी मिल चुकी है।

रामगढ़ बांध पर एक महीने तक ड्रोन से कृ​त्रिम बारिश का प्रयोग चलेगा रामगढ़ बांध इलाके में ड्रोन से कृत्रिम बारिश का प्रयोग एक महीने तक चलेगा। अमेरिका और भारत की टेक कंपनी जेन एक्स एआई कृषि विभाग के साथ मिलकर यह प्रयोग करने जा रही है। जेन एक्स एआई कंपनी सरकार के साथ मिलकर यह पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह ट्रायल कर रही है।

इसके तहत रामगढ़ में 60 क्लाउड सीडिंग की टेस्ट ड्राइव करवाई जाएगी। अब तक प्लेन से क्लाउड सीडिंग करवाई जाती रही है, ड्रोन से देश का पहला प्रयोग होगा। छोटे इलाके के सीमित दायरे में होने वाला यह पहला प्रयोग है, अब तक कृत्रिम बारिश के लिए बड़ा क्षेत्र चुना जाता रहा है। इस टेस्ट का पूरा खर्च कंपनी उठाएगी।

क्लाउड सीडिंग तकनीक में बादलों पर छिड़का जाता है रसायन, इससे होती है बारिश क्लाउड सीडिंग तकनीक बादलों पर रसायन छिड़कर कर कृत्रिम बारिश करवाने की तकनीक है। बादलों पर पर सिल्वर आयोडाइज, सोडियम क्लोराइड या ड्राई आइस का छिड़काव किया जाता है।

हवाई जहाज, हेलिकॉप्टर या ड्रोन से ये रसासन बादलों पर छिड़के जाते हैं। जब रसायन के ये कण बादलों में मिलते हैं तो पानी की छोटी-छोटी बूंदें उनके चारों ओर जमने लगती हैं, ये बूंदें धीरे-धीरे भारी होकर बारिश के रूप में गिरती हैं।

प्रयोग सफल हुआ तो छोटे इलाकों के एनिकट-तालाब भरने के लिए कृत्रिम बारिश करवाई जा सकेगी ड्रोन से कृत्रिम बारिश का यह ट्राइल सफल हुआ तो राजस्थान को इससे फायदा होगा। कई बार मानसूनी बादल होने के बावजूद बारिश नहीं होती, इससे पीने के पानी की कमी के अलावा फसलें भी सूख जाती हैं।

अब यह प्रयोग सफल हुआ तो छोटे इलाकों में कृ़त्रिम बारिश करवाकर पानी की कमी दूर की जा सकेगी। कृत्रिम बारिश के लिए बादल और नमी होना जरूरी होता है।

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