उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में मौजूद ओम पर्वत से बर्फ पिघल गई है. जिसकी वजह से ओम शब्द पूरी तरह से गायब हो गया है. अब यहां पर सिर्फ काला पहाड़ दिख रहा है. यह पर्वत 5900 मीटर यानी 19356 फीट ऊंचा है. इस अनचाही प्राकृतिक घटना से लोग हैरान हैं. वैज्ञानिकों ने इसकी वजह जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान बताया है.
पर्यावरण के लिए काम करने वाले कुंडल सिंह चौहान ने कहा कि पिथौरागढ़ जिले में चीन सीमा के पास नाभीढांग से ओम पर्वत के भव्य और दिव्य दर्शन होते थे. मौजूदा समय में वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के चलते इस हिमालयी क्षेत्र से बर्फ तेजी से पिघल रही है. इसलिए ओम पर्वत से भी बर्फ गायब हो चुकी है. हिमालय की इस घटना से हर कोई सकते में है. हिमालय में लगातार हो रहे निर्माणकार्य, बढ़ते तापमान और मानवीय हस्तक्षेप को इस घटना के पीछे की वजह बताई जा रही है.
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
स्थानीय पर्यावरणविद भगवान सिंह रावत ने कहा कि ओम पर्वत से बर्फ का पिघल जाना गंभीर घटना है. भविष्य के लिए चेतावनी भी है. वैज्ञानिकों को इस पर डिटेल में स्टडी करनी चाहिए. ताकि समय पर हिमालय की बर्फ को बचाया जा सके. पिथौरागढ़ में लंबे समय से निर्माण कार्य हो रहा है. पर्यटन की वजह से भीड़ भी बढ़ी है. इससे जलवायु बदल रहा है.
स्टडी में खुलासा… 3 डिग्री पारा चढ़ा तो सूख जाएगा हिमालय
अगर देश का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया तो 90 फीसदी हिमालय साल भर से ज्यादा समय के लिए सूखे का सामना करेगा. एक नए रिसर्च में यह डराने वाला खुलासा हुआ है. इसके आंकड़े क्लाइमेटिक चेंज जर्नल में प्रकाशित हुए हैं. सबसे बुरा असर भारत के हिमालयी इलाकों पर पड़ेगा. पीने और सिंचाई के लिए पानी की किल्लत होगी.
80% भारतीय हीट स्ट्रेस का सामना कर रहे हैं. अगर इसे रोकना है तो पेरिस एग्रीमेंट के तहत तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर रोकना होगा. अगर यह 3 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे. यह स्टडी इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट आंग्लिया (UEA) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में की गई है.
आध अलग-अलग स्टडी को मिलाकर यह नई स्टडी की गई है. यह सारी आठों स्टडीज भारत, ब्राजील, चीन, मिस्र, इथियोपिया और घाना पर फोकस करती हैं. इन सभी इलाकों में जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग और बढ़ते तापमान की वजह से सूखे, बाढ़, फसल की कमी, बायोडायवर्सिटी में कमी की आशंका जताई गई है.