लखीमपुर खीरी: शहर की दत्ता कोठी स्वतंत्रता आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र रही. 12 नवंबर, 1929 को महात्मा गांधी कस्तूरबा गांधी के साथ इस कोठी में आए थे. उन्होंने सत्याग्रह और हरिजन उत्थान के लिए जनसभा आयोजित की थी. लखीमपुर शहर के नौरंगाबाद मोहल्ले में जोड़ी बंगला के पास स्थित दत्ता कोठी (जिसे लोग पीली कोठी के नाम से भी जानते हैं) स्वतंत्रता संग्राम की गौरवशाली गाथा की गवाह है. यहां महात्मा गांधी सहित कई प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी के लिए रणनीति बनाई थी.
लखीमपुर के इतिहासकार डॉ. रामपाल सिंह ने बताया कि दत्ता कोठी का इतिहास ब्रिटिशकाल से शुरू होता है. पड़ोसी जिला पीलीभीत के बीसलपुर निवासी बाबू सीताराम दत्ता पेशे से वकील थे. उन्होंने इस कोठी को 1874 में ब्रिटिश सिविल सर्जन कैप्टन जॉर्ज माइकल से खरीदा था. वर्ष 1905 में इसका पुन: निर्माण कर भव्य रूप दिया गया, जिसके बाद यह दत्ता साहब की कोठी के नाम से प्रसिद्ध हुई. इसके अंदर काली देवी का एक मंदिर भी मौजूद है.
डॉ. रामपाल का कहना है कि दत्ता कोठी केवल एक इमारत नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की एक जीवंत गवाह है. यह कोठी हमें उन महान नेताओं के बलिदान और संघर्ष की याद दिलाती है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए जीवन समर्पित कर दिया.
बरामदे में दत्ता साहब का कक्ष आज भी मौजूद
दत्ता कोठी स्वतंत्रता आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र रही. 12 नवंबर, 1929 को महात्मा गांधी कस्तूरबा गांधी के साथ इस कोठी में आए थे. यहां उन्होंने सत्याग्रह और हरिजन उत्थान के लिए जनसभा आयोजित की थी. बाद में महात्मा गांधी ने दुखहरण नाथ मंदिर में बैठक कर चंदा भी एकत्र किया था. यहां डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, शौकत अली, मोहम्मद अली, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, लाला लाजपत राय, लाल बहादुर शास्त्री, पंडित गोविंद बल्लभ पंत, मीरा बेन, डॉ.सम्पूर्णानंद, एमएलसी भगवान सिंह, सेठ दामोदर दास और रानी विद्यावती जैसे समेत तमाम स्वतंत्रता सेनानियों ने भी इस कोठी में बैठकें कर आजादी की रणनीतियों पर चर्चा की.
कोठी के बरामदे में दत्ता साहब का कक्ष आज भी मौजूद है, जहां स्वतंत्रता सेनानियों के नाम का शिलापट लगा हुआ है. यह कोठी आज भी स्वतंत्रता संग्राम की गौरवशाली यादों को संजोए हुए है.