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Ebrahim Raisi Death: कौन थे ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी? जिन्हें दुनिया कहती थी ‘तेहरान का कसाई’

Ebrahim Raisi Dead ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलीकॉप्टर क्रैश में मौत होने की बात सामने आई है. रविवार को इब्राहिम रईसी और कई ईरानी अधिकारियों को लो जा रहा हेलीकॉप्टर एक ग्रामीण इलाके में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. हालांकि, कोहरे और खराब मौसम के कारण हेलीकॉप्टर का पता लगाना काफी मुश्किल भरा रहा, जिसे 17 घंटे की खोज के बाद जला हुआ पाया गया.

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ईरानी अधिकारियों की मानें तो हेलीकॉप्टर पूरी तरह से जल चुका है और उसमें सवार किसी व्यक्ति के जीवित होने की उम्मीद नहीं है। ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी (Ebrahim Raisi Death) अत्याचार के कई आरोपों से घिरे रहे हैं और उनका अति-रूढ़िवादी इतिहास रहा है।

रईसी को ईरान का संभावित भावी सर्वोच्च नेता माना जाता था, जिन्हें तेहरान का कसाई तक कहा जाता था। आइए, इब्राहिम रईसी के बारे में जानें….

कौन थे इब्राहिम रईसी

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का जन्म 1960 में उत्तरी पूर्वी ईरान के मशहद शहर में हुआ था. रईसी के पिता एक मौलवी थे, लेकिन रईसी जब सिर्फ पांच साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था. रईसी की शुरुआत से ही धर्म और राजनीति की ओर झुकाव रहा और वो छात्र जीवन में ही मोहम्मद रेजा शाह के खिलाफ सड़कों पर उतर गए. रेजा शाह को पश्चिमी देशों को समर्थक माना जाता था.

15 साल की उम्र में ही शुरू की थी पढ़ाई

पूर्वी ईरान के मशहद शहर में शिया मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र मानी जाने वाली मस्जिद भी है. वे कम उम्र में ही ऊंचे ओहदे पर पहुंच गए थे. अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए उन्होंने 15 साल की उम्र से ही कोम शहर में स्थित एक शिया संस्थान में पढ़ाई शुरू कर दी थी. अपने छात्र जीवन में उन्होंने पश्चिमी देशों से समर्थित मोहम्मद रेजा शाह के खिलाफ प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था. बाद में अयातोल्ला रुहोल्ला खुमैनी ने इस्लामिक क्रांति के जारिए साल 1979 में शाह को सत्ता से बेदखल कर दिया था.

इब्राहिम रईसी (Iran’s President) ने 2021 में एक चुनाव के बाद ईरान के राष्ट्रपति का पद संभाला था. उनके राष्ट्रपति बनने का पूरे देश में व्यापक रूप से विरोध हुआ था, क्योंकि उन्हें रूढ़िवादी मानसिकता का पक्षकार माना जाता था और चुनावों में धांधली होने की बात कही गई थी. हालांकि, अंत में रईसी को विजयी माना गया, जिसमें केवल 62 फीसद वोट ही डाले गए थे. यह चार दशकों में ईरानी चुनाव के लिए सबसे कम मतदान था. रईसी को ईरान के सर्वोच्च नेता और सबसे शक्तिशाली धार्मिक गुरू अली खामेनेई का राजनीतिक सहयोगी और उनका संभावित उत्तराधिकारी भी माना जाता था. निर्वाचित होने के बाद से रईसी ने गंभीर आर्थिक संकट और इजरायल के साथ देश के संघर्ष में ऐतिहासिक वृद्धि के दौरान शासन करते हुए, मध्य पूर्व में ईरान के प्रभाव का विस्तार करने के लिए काम किया. इस कारण इजरायल और ईरान में जंग जैसे हालात भी हो गए थे. हालांकि, दोनों तरफ से कई बार मिसाइल छोड़े जाने के बाद अब हालात थोड़े स्थिर हैं.

हिजाब कानून पर हुआ था बड़ा विवाद

रईसी के शासनकाल में ही ईरान में हिजाब विवाद भी गहराया था. ईरान के ‘हिजाब और पवित्रता कानून’ का जबरन पालन करवाना भी रईसी प्रशासन को भारी बड़ा था, जिसका कड़ा विरोध हुआ. इसी का विरोध करते हुए वहां कि महिलाएं महसा अमिनी और अर्मिता गेरावंद की मौत हो गई थी, जिसके बाद सरकार का विरोध तेज हो गया और लोगों ने हिजाब पहनने से मना करते हुए बाल तक काटने शुरू कर दिए. दोनों महिलाओं की कथित तौर पर हिजाब कानून का उल्लंघन करने के बाद हिरासत के दौरान पुलिस की बर्बरता के चलते मृत्यु हो गई थी.

अमेरिका ने लगा रखा था बैन

अमेरिका के ट्रेजरी विभाग ने भी रईसी पर साल 2019 से बैन लगा रखा था. दरअसल, ईरान में रईसी कार्यकाल में ही बच्चों को फांसी, प्रमुख मानवाधिकारों वकीलों को कैद की सजा दी गई, जिसके चलते अमेरिका ने रईसी पर प्रतिबंध भी लगा दिया था.

‘तेहरान का कसाई’ नाम से जाने जाते थे रईसी

इस्लामिक क्रांति के बाद उन्होंने न्यायपालिका में काम करना शुरू किया और कई शहरों में वकील के तौर पर काम किया. इस दौरान उन्हें ईरानी गणतंत्र के संस्थापक और साल 1981 में ईरान के राष्ट्रपति बने अयातोल्ला रुहोल्ला खुमैनी से प्रशिक्षण भी मिल रहा था. रईसी जब महज 25 साल के थे तब वो ईरान के डिप्टी प्रोसिक्यूटर (सरकार के दूसरे नंबर के वकील) बन गए. बाद में वो जज बने और साल 1988 में बने उन खुफिया ट्रिब्यूनल्स में शामिल हो गए जिन्हें ‘डेथ कमेटी’ के नाम से जाना जाता है.

इन ट्रिब्यूनल्स ने उन हज़ारों राजनीतिक क़ैदियों पर ‘दोबारा मुक़दमा’ चलाया जो अपनी राजनीतिक गतिविधियों के कारण पहले ही जेल की सजा काट रहे थे. इन राजनीतिक कैदियों में से ज्यादातर लोग ईरान में वामपंथी और विपक्षी समूह मुजाहिदीन-ए-ख़ल्क़ा (MEK) या पीपुल्स मुजाहिदीन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ ईरान (PMOI) के सदस्य थे. इन ट्रिब्यूनल्स ने कुल कितने राजनीतिक क़ैदियों को मौत की सज़ा दी, इस संख्या के बारे में ठीक-ठीक मालूम नहीं है लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि इनमें लगभग 5,000 पुरुष और महिलाएं शामिल थीं.

फांसी के बाद इन सभी को अज्ञात सामूहिक कब्रों में दफना दिया गया था. मानवाधिकार कार्यकर्ता इस घटना को मानवता के विरुद्ध अपराध बताते हैं. इब्राहिम रईसी ने इस मामले में अपनी भूमिका से लगातार इनकार किया है लेकिन साथ ही उन्होंने एक बार यह भी कहा था कि ईरान के पूर्व सर्वोच्च नेता अयातोल्ला ख़ुमैनी के फतवे के मुताबिक यह सजा ‘उचित’ थी.

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