सुप्रीम कोर्ट ने CRPC के तहत लोक सेवकों के खिलाफ जांच और मुकदमे से पहले ईडी को मंजूरी लेने का फैसला सुनाया है. जस्टिस अभय ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की याचिका खारिज कर दी, जिसमें हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी. उच्च न्यायालय के फैसले में दो आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारियों के खिलाफ एजेंसी की शिकायत (आरोपपत्र) के संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया गया था. अदालत ने माना कि सीआरपीसी की धारा 197(1) के प्रावधान पीएमएलए की धारा 44(1)(बी) के तहत शिकायतों पर लागू होते हैं.
सीआरपीसी की धारा 197(1) के मुताबिक, किसी लोक सेवक, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट पर अगर किसी ऐसे अपराध का आरोप है, जो उसने अपने पदीय कर्तव्यों का निर्वहन करते समय किया है, तो कोई भी अदालत बिना पूर्व मंजूरी के उस अपराध पर कार्रवाई नहीं कर सकती. यह मंजूरी केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रपति और राज्य सरकार की ओर से राज्यपाल देते हैं. मंजूरी अगर लोक सेवक केंद्र सरकार में नियोजित है, तो केंद्र सरकार से ही ली जानी होगी. अगर लोक सेवक किसी राज्य सरकार में नियोजित है, तो राज्य सरकार से ही मंजूरी ली जानी होगी.
क्या कहती है CRPC?
सीआरपीसी के अनुसार, अधिनियम के तहत किसी अधिकारी से शिकायत प्राप्त होने पर एक विशेष अदालत धारा 3 के तहत अपराध का संज्ञान ले सकती है. अदालत के आदेश का मतलब है कि सीआरपीसी की धारा 197(1) के तहत आवश्यक पूर्व मंजूरी पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग क्राइम का संज्ञान लेने से पहले एक विशेष अदालत द्वारा प्राप्त की जानी चाहिए.
पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 197(1) का उद्देश्य लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों के दौरान किए गए कार्यों के लिए अभियोजन से बचाना है. कोर्ट ने आगे टिप्पणी की कि धारा के पीछे की मंशा को देखते हुए आवेदन को तब तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जब तक कि पीएमएलए के भीतर कोई विरोधाभासी प्रावधान न हो. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में ऐसा कोई प्रावधान नहीं पाया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
पीठ ने कहा, धारा 197 (1) में कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति, जो न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या लोक सेवक है या था, जिसे सरकार की मंजूरी के बिना उसके पद से हटाया नहीं जा सकता, उस पर किसी ऐसे अपराध का आरोप लगाया जाता है जो उसके द्वारा अपने कर्तव्य निर्वहन के दौरान किया गया है, तो कोई भी न्यायालय पूर्व मंजूरी के बिना ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 197 (1) का उद्देश्य लोक सेवकों को अभियोजन से बचाना है और यह सुनिश्चित करता है कि उनके कर्तव्यों के निर्वहन में उनके द्वारा की गई किसी भी गलती के लिए उन पर मुकदमा न चलाया जाए.
पीठ ने कहा, यह प्रावधान ईमानदार और निष्ठावान अधिकारियों की रक्षा के लिए है. हालांकि, यह सुरक्षा बिना किसी शर्त के नहीं है. उपयुक्त सरकार से पूर्व मंजूरी मिलने पर उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है.
पीठ ने कहा, सीआरपीसी की धारा 197(1) के उद्देश्य पर विचार करते हुए, इसकी प्रयोज्यता को तब तक खारिज नहीं किया जा सकता जब तक कि पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) में ऐसा कोई प्रावधान न हो जो धारा 197(1) के साथ असंगत हो. हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि ईडी अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी प्राप्त करने के बाद दोनों वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है.