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प्रतापपुर में शिक्षा व्यवस्था चरमराई: 5 साल से जमे बीईओ पर उठे सवाल, जनता और शिक्षक बोले- हटाओ, सुधार लाओ, न फील्ड दौरा और न ही योजना की सुध

सूरजपुर: विभागीय निष्क्रियता के कारण इन दिनों जिले के प्रतापपुर विकासखण्ड में शिक्षा व्यवस्था काफी चर्चा में है. जहां विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) मुन्नूलाल धुर्वे की लगातार 5 वर्षों से एक ही स्थान पर जमे रहने की स्थिति ने व्यवस्था में निष्क्रियता का ऐसा जाल बिछा दिया है, जिससे क्षेत्र के शिक्षक, छात्र और पालक सभी प्रभावित हो रहे हैं. प्रदेश शासन की स्थानांतरण नीति स्पष्ट है कि कोई भी अधिकारी तीन वर्ष से अधिक एक ही जगह पदस्थ नहीं रह सकता, लेकिन प्रतापपुर जैसे पिछड़े और दूरस्थ अंचल में यह नीति कहीं खो गई लगती है.

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बीईओ मुन्नूलाल धुर्वे का वर्षों से एक ही स्थान पर बने रहना, न सिर्फ नियमों के विपरीत है, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में गतिशीलता और पारदर्शिता को भी बाधित करता है. स्थानीय विद्यालयों में निरीक्षण के अभाव ने कई स्तरों पर शैक्षणिक अनुशासन को क्षति पहुंचाई है. शिक्षकों का कहना है कि विभागीय प्रमुख का विद्यालयों से जुड़ाव सीमित है, जिसके कारण शासन की योजनाएं जैसे– मध्यान्ह भोजन योजना, पुस्तक वितरण, शैक्षणिक मूल्यांकन इत्यादि केवल कागज़ों में पूर्ण हो रही हैं.

मध्यान्ह भोजन योजना सबसे अधिक प्रभावित

मध्यान्ह भोजन योजना का हाल सबसे खराब बताया जा रहा है. कई विद्यालयों में भोजन की गुणवत्ता और मात्रा पर कोई निगरानी नहीं है, जिससे बच्चों की उपस्थिति पर भी असर पड़ रहा है. भोजन कभी मिलता है, कभी नहीं, और जब मिलता है तो मानक से नीचे होता है. जब नेतृत्व निष्क्रिय हो तो निचले स्तर पर ऊर्जा और प्रेरणा का अभाव स्वाभाविक है. शिक्षकों में विभाग को लेकर गंभीरता कम हुई है. बीईओ से संवाद की प्रक्रिया नाम मात्र रह गई है, जिससे समस्याएँ समाधान की ओर नहीं बढ़ पा रही हैं.

संभागीय आयुक्त को सौंपा ज्ञापन

क्षेत्र के जागरूक नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस स्थिति पर नाराज़गी जताते हुए संभागीय आयुक्त को एक ज्ञापन सौंपा है. उन्होंने मांग की है कि शासन की स्थानांतरण नीति के अनुरूप मुन्नूलाल धुर्वे को तत्काल प्रतापपुर से स्थानांतरित किया जाए और किसी नये, ऊर्जावान व सक्रिय अधिकारी की पदस्थापना की जाए. ज्ञापन में उल्लेख है कि बीईओ की लंबे समय तक एक ही पदस्थापना से न सिर्फ नियमों का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि क्षेत्र की शिक्षा व्यवस्था भी स्थगित सी हो गई है. यदि शिक्षा के क्षेत्र में फिर से गति और गंभीरता लानी है तो बदलाव आवश्यक है.

जागरूक नागरिकों का कहना है कि यह केवल स्थानांतरण की मांग नहीं है, बल्कि शिक्षा के मूल अधिकार की रक्षा की मांग है. प्रतापपुर की नई पीढ़ी को सही दिशा तभी मिलेगी जब जिम्मेदार अधिकारी सही समय पर कार्रवाई करें. प्रतापपुर जैसे दूरस्थ अंचल में शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए केवल योजनाओं और बजट की नहीं, बल्कि सक्रिय और संवेदनशील नेतृत्व की आवश्यकता है.

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