ऑपरेशन सिंदूर का असर… ISRO चार साल के बजाय एक साल में 52 जासूसी सैटलाइट बनवाएगा

राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए भारत ने एक साहसिक कदम उठाया है. महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष आधारित निगरानी (एसबीएस-3) कार्यक्रम के तहत 52 जासूसी उपग्रहों की तैनाती की समयसीमा को चार साल से घटाकर मात्र एक साल कर दिया गया है.

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अक्टूबर 2024 में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी द्वारा स्वीकृत इस 22500 करोड़ रुपये की परियोजना का उद्देश्य भारत की सीमाओं, विशेष रूप से पाकिस्तान की गतिविधियों की निगरानी को बढ़ाना और बाढ़ व भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करना है.

SBS-3 कार्यक्रम

एसबीएस-3 कार्यक्रम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और निजी उद्योगों के बीच सहयोग का एक शानदार उदाहरण है. इसरो 21 उपग्रहों का विकास करेगा. शेष 31 उपग्रहों के निर्माण का जिम्मा तीन निजी कंपनियों — अनंत टेक्नोलॉजीज, सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स और अल्फा डिज़ाइन—को सौंपा गया है.

रक्षा मंत्रालय ने इन कंपनियों को विकास की समयसीमा को 12-18 महीनों तक संक्षिप्त करने का निर्देश दिया है. अब इन उपग्रहों की तैनाती 2026 के अंत तक या उससे पहले करने का लक्ष्य है, जो कि मूल 2028 की समयसीमा से काफी पहले है. यह तेजी हाल ही में पहलगाम नरसंहार के जवाब में शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़ी क्षेत्रीय तनाव के मद्देनजर आई है.

AI से लैस सैटेलाइट

ये उपग्रह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से लैस होंगे, जो अंतरिक्ष में एक-दूसरे के साथ संचार करने में सक्षम होंगे. यह तकनीक भारत को भू-खुफिया जानकारी (जियो-इंटेलिजेंस) को अभूतपूर्व सटीकता के साथ एकत्र करने में सक्षम बनाएगी. इससे विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन के साथ भारत की अस्थिर सीमाओं पर शत्रुतापूर्ण गतिविधियों की निगरानी में उल्लेखनीय वृद्धि होगी.

स्पेसएक्स और निजी कंपनियों की भूमिका

इस परियोजना में एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स तकनीकी सहायता प्रदान कर रही है, जो उपग्रहों के चरणबद्ध विकास और प्रक्षेपण में मदद करेगी. निजी कंपनियों में अनंत टेक्नोलॉजीज, जिसने वित्त वर्ष 2024 में 270 करोड़ रुपये का राजस्व दर्ज किया. सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स, जिसने वित्त वर्ष 2025 के पहले नौ महीनों में 479 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया.

इस सार्वजनिक-निजी साझेदारी में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं. अल्फा डिज़ाइन, जिसे 2019 में अदानी डिफेंस एंड एयरोस्पेस ने अधिग्रहित किया था, भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) जैसे इसरो के साथ पिछले सहयोगों से अपनी विशेषज्ञता ला रही है. इन कंपनियों की भागीदारी भारत की रणनीतिक अंतरिक्ष उद्देश्यों को पूरा करने के लिए निजी उद्योगों पर बढ़ती निर्भरता को दर्शाती है.

चुनौतियां और चिंताएं

हालांकि यह परियोजना भारत की निगरानी क्षमताओं को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी, लेकिन संक्षिप्त समयसीमा व्यवहार्यता और गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाती है. इतने कम समय में 52 उपग्रहों का विकास, भले ही एआई एकीकरण के साथ हो, एक विशाल कार्य है जो संसाधनों और विशेषज्ञता पर दबाव डाल सकता है. 2026 तक डिलीवरी का दबाव टेस्टिंग और विश्वसनीयता में समझौता कर सकता है, जिससे कार्यक्रम की प्रभावशीलता कम हो सकती है.

क्षेत्रीय भू-राजनीति पर नजर

हाल के तनावों को देखते हुए सीमा निगरानी पर ध्यान देना समझ में आता है, लेकिन पाकिस्तान को प्राथमिक लक्ष्य के रूप में केंद्रित करना क्षेत्रीय भू-राजनीतिक परिदृश्य को सरल बना सकता है. क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति. साथ ही उसकी अपनी अंतरिक्ष आधारित निगरानी में प्रगति, एक अधिक जटिल चुनौती प्रस्तुत करती है, जिसे भारत को समग्र रूप से देखना होगा.

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