बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग बिहार में गुप्त तरीके से NRC लागू कर रहा है.
ओवैसी ने कहा कि इस प्रक्रिया के तहत हर नागरिक को यह साबित करना होगा कि वह कब और कहां पैदा हुआ था और उसके माता-पिता की जन्म तिथि और स्थान क्या था. उन्होंने इस कदम को गरीबों और खासतौर पर सीमांचल क्षेत्र के लोगों के लिए “क्रूर मजाक” बताया.
ओवैसी ने कहा कि सीमांचल जैसे बाढ़ प्रभावित और पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोग बेहद गरीब हैं और उन्हें दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल होता है. ऐसे में उनसे अपेक्षा करना कि वे अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र या अन्य दस्तावेज़ जुटाएंगे, एक अन्यायपूर्ण और असंवेदनशील कदम है.
उन्होंने कहा, “विश्वसनीय आंकड़ों के अनुसार भारत में सिर्फ तीन-चौथाई जन्म ही पंजीकृत होते हैं. अधिकतर सरकारी दस्तावेजों में भारी गलतियां होती हैं. ऐसे में इस नई प्रक्रिया का असर यह होगा कि बड़ी संख्या में गरीबों और हाशिए पर खड़े समुदायों को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा.”
तीन वर्गों में बांटी गई प्रक्रिया
ओवैसी ने बताया कि चुनाव आयोग द्वारा जारी निर्देशों के मुताबिक: अगर किसी व्यक्ति का जन्म 1 जुलाई 1987 से पहले हुआ है, तो उसे जन्म तिथि या जन्म स्थान का कोई एक वैध दस्तावेज़ देना होगा.
1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्म लेने वालों को खुद के साथ-साथ अपने माता या पिता में से किसी एक की जन्म तिथि और स्थान से संबंधित दस्तावेज देना होगा
2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे लोगों को अपने साथ-साथ दोनों माता-पिता के जन्म से संबंधित दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे. अगर माता-पिता में से कोई भारतीय नागरिक नहीं है, तो उस समय का पासपोर्ट और वीजा भी दिखाना होगा।
ओवैसी ने लगाए ये आरोप
ओवैसी ने इस प्रक्रिया को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 1995 के लाल बाबू हुसैन बनाम चुनाव आयोग मामले में स्पष्ट कहा था कि जो व्यक्ति पहले से मतदाता सूची में दर्ज है, उसे बिना नोटिस और उचित प्रक्रिया के सूची से हटाया नहीं जा सकता.
उन्होंने आगे कहा, “चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह साबित करे कि कोई व्यक्ति विदेशी है, न कि नागरिक. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि नागरिकता सिद्ध करने के लिए दस्तावेज़ों की सीमित सूची नहीं हो सकती. हर तरह के सबूत को स्वीकार किया जाना चाहिए.”
एक महीने में पूरी प्रक्रिया पर सवाल
AIMIM प्रमुख ने सवाल उठाया कि इतनी जटिल प्रक्रिया को महज एक महीने में कैसे निष्पक्ष रूप से अंजाम दिया जा सकता है. उन्होंने कहा, “बिहार जैसे बड़े और कम कनेक्टिविटी वाले राज्य में यह प्रक्रिया ईमानदारी से संभव नहीं है। इससे लोगों का चुनाव आयोग पर से भरोसा डगमगा सकता है.”
ओवैसी ने दावा किया कि इस पूरी कवायद का मकसद चुनाव से पहले जानबूझकर कुछ समुदायों के लोगों को मतदाता सूची से बाहर करना है. उन्होंने कहा कि यह कदम न केवल संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक विभाजन को भी बढ़ावा देता है.