इलेक्टोरल बॉन्ड्स- एक ऐसा शब्द जिसको लेकर चर्चा हर जगह और हर वर्ग की जुबान पर है. अब करीब 6 साल बाद इलेक्टोरल बॉन्ड का की जानकारी सबके सामने आई है. राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड्स के जरिए मिले चंदे को सार्वजनिक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना पड़ा और SBI को कई बार फटकार लगी. इसके बाद SBI ने चुनाव आयोग को डेटा दिया और चुनाव आयोग ने 14 मार्च 2024 को पहली बार अपनी वेबसाइट पर साझा किया.
हालांकि, इसके पहले, SBI ने सुप्रीम कोर्ट से इलेक्टोरल बॉन्ड डेटा को 30 जून 2024 तक सार्वजनिक करने की मांग रखी थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति नहीं दी. आगे सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जो डेटा साझा किया गया है वह पूरा नहीं है.
14 मार्च 2024 को इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया ने अपनी वेबसाइट पर दो लिस्ट अपलोड की. पहली लिस्ट में उन लोगों के नाम थे जिन्होंने बॉन्ड खरीदे, ये सभी बॉन्ड 12 अप्रैल 2019 से जनवरी 2024 के बीच खरीदे गए थे. इस लिस्ट में बॉन्ड खरीदने की तारीख और मूल्य वर्ग की जानकारी थी.
इस लिस्ट से खुलासा हुआ था कि लॉटरी कंपनी Future Gaming ने सबसे ज्यादा कीमत के बॉन्ड खरीदे. इसके अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी मेघा इंजीनियरिंग (MEIL) दूसरी सबसे बड़ी डोनर थी. कई फार्मास्युटिकल कंपनियों ने भी बड़ी संख्या में करोड़ों रुपये के बॉन्ड खरीदे. रिलायंस और अडानी ग्रुप जैसी कंपनियों के नाम इस लिस्ट में नहीं थे लेकिन इनसे जुड़ी दूसरी कंपनियों ने पॉलिटिकल पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड दान किए.
वहीं पहले डेटासेट में जारी हुई दूसरी लिस्ट में राजनीतिक पार्टियों के नाम और हर बॉन्ड की रकम व तारीख दी गई थी. इससे लोगों को हर पार्टी को मिले कुल रकम को जोड़ने में मदद मिली. इस सूची से खुलासा हुआ कि राजनीतिक पार्टियों ने कुल 16,492 करोड़ रुपये की कीमत के बॉन्ड कैश कराए. भाजपा को कुल 8,250 करोड़ रुपये का चंदा मिला.
इलेक्टोरल बॉन्ड के पहले डेटासेट के जारी होते ही बवाल मच गया था. लेकिन SBI ने पूरी जानकारी चुनाव आयोग को नहीं दी थी. जो दो लिस्ट जारी की गई थीं, उनमें हर बॉन्ड का यूनिक कोड नहीं था जिससे बॉन्ड खरीदने वाले और उसे कैश कराने वाली पार्टी का मिलान करने में मदद होती.
इसके अलावा पहले डेटासेट में 12 अप्रैल 2019 से पहल खरीदे गए बॉन्ड्स की जानकारी नहीं थी. इन बॉन्ड्स की कीमत करीब 4000 करोड़ रुपये से ज्यादा था.
बता दें कि साल 2018 से कोर्ट में चल रहे इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया और इन बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 12 अप्रैल 2019 को आए अंतरिम आदेश के बाद खरीदे और कैश किए गए बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक की जाए.
चुनाव आयोग ने अप्रैल 2019 से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले कुछ डोनर की पहचान वाले दूसरा डेटासेट रिलीज किया. इस डेटासेट को चुनाव आयोग की वेबसाइट पर 17 मार्च 2024 को अपलोड किया गया. इसमें वो लिस्ट थी जिसे चुनाव आयोग ने 2019 से 2023 के बीच राजनीतिक पार्टियों से डेटा इकट्ठा कर बनाया था और सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट में जमा किया था.
बता दें कि अधिकतर पार्टियों ने बॉन्ड्स को रिडीम कराने की तारीख बताई थी. इसके अलावा रकम की भी जानकारी इस सूची में दी गई थी. BJP, TMC, BJD जैसी पार्टियों ने डोनर के नाम का खुलासा नहीं किया था.
लेकिन DMK, AIDMK और जनसता दल (सेक्युलर) ने उन सभी डोनर के नाम का खुलासा किया था जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड्स दान किए थे.
डीएमके की बात करें तो तमिलनाडु की इस सत्ताधारी पार्टी को सबसे ज्यादा चंदा लॉटरी और गेमिंग कंपनी Future Gaming and Hotel Services Private Limited से मिला. वहीं जनता दल (से्क्युलर) ने बताया कि 2018 में हुए कर्नाटक चुनाव से पहले सबसे ज्यादा चंदा सॉफ्टवेयर दिग्गज इन्फोसिस ने पार्टी को दिया. बता दें कि पहली लिस्ट में इन्फोसिस का नाम नहीं था क्योंकि ये बॉन्ड्स 2019 से पहले खरीदे गए थे.
इसके अलावा आम आदमी पार्टी और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी ने भी 2019 में बॉन्ड्स खरीदने वाले दाताओं के नाम का खुलासा किया.
18 मार्च 2024 को हुए सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने SBI से उन सभी बॉन्ड के ‘alphanumeric number’ जमा करने को कहा जिन्हें खरीदा और रिडीम कराया गया. इस डेटा को जमा करने के लिए कोर्ट ने 21 मार्च की तारीख मुकर्र की और कहा कि बॉन्ड्स से जुड़ा कोई भी डेटा छिपा नहीं रहना चाहिए.
बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड के यूनिक कोड के आने से किस कंपनी ने किस राजनीतिक पार्टी को चंदा दिया है, यह पता चल जाएगा. इससे डोनर और पार्टी के बीच संबंध का पता चलेगा और यह जानकारी मिलेगी कि कंपनियों को सरकार ने किसी तरह का फेवर किया या नहीं, इस जानकारी से यह भी पता चल जाएगा कि जांच एजेंसियों की रेड के बाद जिन कंपनियों ने बॉन्ड खरीदे, क्या वाकई उससे जांच पर असर पड़ा?
लेकिन ज़ाहिर सी बात है कि यूनिक कोड्स का पता चलने के बाद भी डेटा में एक बड़ा फर्क रहेगा. क्योंकि मार्च 2018 यानी इस स्कीम के शुरू होने के बाद से अप्रैल 2019 के बीच का डेटा नहीं है.
आपको बता दें कि साल 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को शुरू किया था. इस स्कीम के तहत कोई भी इंडिविजुअल या कंपनी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से कितने भी अमाउंट के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकती थी.
इन चुनावी बॉन्ड के जरिए कोई भी शख्स और कॉरपोरेट कंपनी किसी भी राजनीतिक पार्टी को बिना पहचान ज़ाहिर करे अनलिमिटेड पैसा डोनेट कर सकती है. इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड्स को SBI से फिक्स्ड डिनोमिनेशन में डोनर द्वारा खरीदा जा सकता है और किसी पॉलिटिकल पार्टी को दे दिया जाता है और फिर वह पार्टी इन बॉन्ड को कैश रकम में बदल सकती है. इन बॉन्ड की सबसे खास बात है कि फायदा लेने वाली पॉलिटिकल पार्टी किसी भी इकाई या शख्स को डोनर का नाम बताने की जरूरत नहीं होती. यहां तक की इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया (ECI) को भी नहीं.
इलेक्टोरल बॉन्ड को अलग-अलग मूल्य वर्गों में उपलब्ध कराया गया। इनकी कीमत 1000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये के बीच होती है। ये 1000, 10000, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपयों के मूल्य में उपलब्ध थे. सबसे ज्यादा अहम बात है कि इलेक्टोरल बॉन्ड एक्सपायरी डेट के साथ आते हैं. इन बॉन्ड की वैलिडिटी सिर्फ 15 दिन होती है.