नक्सलियों के मास्टरमाइंड बसवराजू का खात्मा: ऐसे रची गई थी रणनीति…

छत्तीसगढ़ के अबुझमाड़ के घने, सुनसान जंगल, जहां धरती भी युद्ध और विद्रोह के रहस्यों को बयां करती है. जंगल में तड़के सुबह का सन्नाटा गोलियों की गड़गड़ाहट से टूट जाता है. माओवादियों और जवानों के इस मुठभेड़ में सीपीआई (माओवादी) के सबसे वरिष्ठ नेता नंबला केशव राव उर्फ बसवराजू मारा जाता है.

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लेकिन इस मुठभेड़ के पीछे सुरक्षाबलों की एक सावधानीपूर्वक रची गई योजना थी. जिसे बनाने में कई महीने लगे थे. बस्तर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि तीन महीने से अधिक समय से, नारायणपुर पुलिस की नक्सल विरोधी शाखा अबुझमाड़ के घने जंगलों में छिपे माओवादी नेताओं की पहेली को सुलझाने में लगी हुई थी.

2023 तक अबुझमाड़ को कठिन इलाके और घने जंगल के कारण वरिष्ठ नेताओं के लिए सुरक्षित पनाहगाह माना जाता था. उन्होंने आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों का पता लगाना शुरू किया. विशेष रूप से उनका हाथ था जो DRG के अबुझमाड़ के घने अंदरूनी इलाकों में माओवादी नेताओं के साथ घूमते थे और विभिन्न जिलों में आत्मसमर्पण करना शुरू कर दिया था.

नक्सलियों के आत्मसमर्पण से मिले सुराग

अधिकारी ने कहा, “प्रत्येक आत्मसमर्पण एक कहानी लेकर आया और हर कहानी में कुछ सुराग मिले. पुलिस ने हर पूछताछ रिपोर्ट को स्कैन किया, उन सुरागों के विवरणों को खंगाला जो वरिष्ठ माओवादी नेताओं के ठिकाने और हरकतों के पैटर्न को उजागर कर सकें. विशेष रूप से बसवराजू जो एक शीर्ष कमांडर था और जिसे लंबे समय से पीएलजीए की कंपनी नंबर 7 द्वारा संरक्षित किया गया था.”

कंपनी नंबर 7 के आत्मसमर्पित माओवादियों, जिन्हें बसवराजू जैसे नेताओं की रक्षा के लिए प्रशिक्षित किया गया था, से नारायणपुर पुलिस ने गहन पूछताछ की. कई ने जांचकर्ताओं को गुमराह करने की कोशिश की.

तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश भी किया, धोखे दिए और झूठे निशान दिए, लेकिन पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार के नेतृत्व वाली नक्सल विरोधी शाखा लगातार सबूतों तलाशती रही. पुलिस हर एक सूचना पर अभियान चलाती रही और पीछे हटने या किसी भी सुराग को छोड़ने से इनकार करती रही, चाहे वह जानकारी कितना भी कमजोर क्यों न हो.

पहली मुठभेड़ में भागने में सफल रहा था बसवराजू

अधिकारी ने आगे बताया, कि “एक के बाद एक ऑपरेशन ने धीरे-धीरे उस जगह को कम करना शुरू कर दिया जिसमें माओवादी काम कर सकते थे. अबुझमाड़ का विशाल, अप्रतिबंधित वन क्षेत्र सिकुड़ने लगा.”

फिर आया सोमवार. डीआरजी को बीजापुर, दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिले से जुटाया गया एक ताज़ा स्थानीय सूचना पर कार्रवाई किया गया जो व्यापक निगरानी योजना से संबंधित नहीं थी.

सोमवार को, टीम ने माओवादियों के साथ चार बार मुठभेड़ की. संभवतः बसवराजू के साथ, लेकिन वह भागने में सफल रहा. मंगलवार को फिर से गहन तलाशी अभियान जारी रहा. लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला और न ही वे किसी माओवादी का पता लगा पाए.

मंगलवार शाम को जवानों की चार इकाइयां फाल्कन, विक्टर, ईगल और जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) की लीमा ने रात भर रुकने का विकल्प चुना. घने जंगल के नीचे चुपचाप डेरा डाले रहे.

सुरक्षाबल आगे बढ़े तो माओवादी हो गए तितर-बितर

डीआरजी टीम का नेतृत्व कर रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हमें जो नहीं पता था वह यह था कि मुश्किल से एक किलोमीटर उत्तर में, बसवराजू ने भी रात के लिए आश्रय लिया था, जो 25 सशस्त्र कैडरों और एक अन्य वरिष्ठ माओवादी नेता से घिरा हुआ था.” दोनों समूह – शिकारी और शिकार एक-दूसरे की उपस्थिति से अनजान रात रुकने के लिए डेरा डाल दिया.

बुधवार को सुबह 7 बजे पहली रोशनी में एक टीम के एक माओवादी संतरी, जो परिधि की गश्त कर रहा था, एक डीआरजी जवान से टकरा गया जो आगे तलाशी का नेतृत्व कर रहा था.

अचानक हुई झड़प में संतरी ने जवान को राइफल से लगी संगीन से मार दिया. जवान ने जमकर विरोध किया और हाथापाई में एक गोली चली, जो जंगल में गूंज उठी और जंगल को जीवन में ला दिया. सुरक्षा बल आगे बढ़े और माओवादी तितर-बितर हो गए.

कार्रवाई के दौरान मौजूद अधिकारी ने कहा, “माओवादी पहले दक्षिण की ओर भागे और लीमा टीम को देखा. रास्ता बदलकर वे उत्तर की ओर भागे और ईगल टीम से टकरा गए. एक छोटे पठार से माओवादियों ने जल्दी से खुद को फिर से संगठित किया और एक आदमी के चारों ओर एक रक्षात्मक घेरा बनाया. जिसे डीआरजी ने तुरंत उच्च-मूल्य वाला संदिग्ध माना.”

सुरक्षाबल और नक्सलियों के बीच हुई गोलीबारी

अपनी ऊंची स्थिति से माओवादियों ने जवाबी गोलीबारी की. लेकिन डीआरजी टीमें निडर होकर गोलियों की आड़ में चट्टानी चढ़ाई पर चढ़ गईं. दोनों तरफ से तीस मिनट तक भीषण गोलीबारी जारी रही. सुरक्षा बलों द्वारा लगभग 300 गोलियां चलाई गईं जिससे जंगल गोलीबारी से गड़गड़ा उठा.

अधिकारी ने कहा, “जैसे ही जवान द्वारा रक्षित बूढ़ा आदमी मारा गया. माओवादियों ने नारे लगाए – लाल सलाम, पीएलजीए जिंदाबाद और फिर भागने के लिए अलग-अलग दिशाओं में दौड़ने लगे. लेकिन हमने उन्हें घेर लिया और सभी को मार गिराया.”

जब धुआं छटा और तलाशी शुरू हुई, तो एक पूर्व माओवादी जो डीआरजी जवान बना, जिसने 2022 में आत्मसमर्पण कर दिया था और कभी कंपनी नंबर 7 में सेवा की थी आगे आया.

गिरने वालों में उसने तुरंत उस चेहरे की पहचान की जिसे वर्षों के अभियानों ने खोजा था.वह बसवराजू था. अधिकारी ने कहा, “यह महीनों की योजना पूछताछ और अथक पीछा करने का एक परिणाम था जिसने आखिरकार फल दिया था. किसी ने कभी नहीं सोचा था कि बसवराजू सबसे वरिष्ठ माओवादी इस तरह मारा जाएगा.”

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