इनकम बढ़ने के साथ ही बैंकों से लोन लेने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है. कोई घर बनवाने के लिए लोन ले रहा है तो कोई अपने लाइफस्टाइल को सुधारने के लिए लोन का सहारा ले रहा है, लेकिन दिक्कत लोन लेने में नहीं, बल्कि चुकाने में आ रही है. ज्यादातर लोन हर महीने मिलने वाली सैलरी का 50 फीसदी हिस्सा खा जा रहे हैं.
लिंक्डइन पर एक पोस्ट में इसी बात को लेकर चिंता जाहिर की गई है, जिसने नई बहस छेड़ दी है. रेनबो मनी के संस्थापक सिद्धार्थ मुकुंद ने भारत के शहरी कारोबारी के बीच एक अस्थिर बदलाव की चेतावनी देते हुए कहा कि भारत के प्रमुख शहरों में आर्थिक तौर पर कुछ डरावना पैदा हो रहा है. हालांकि इकोनॉमी उतार-चढ़ाव तो एक सर्किल का हिस्सा है, लेकिन मुकुंद कहते हैं कि इस बार का एहसास अलग है.
स्टार्टअप फाउंडर ने लिखा कि नौकरी बदलने के पीछे की प्रेरणा पूरी तरह बदल गई है. महामारी से पहले दो अंकों की ग्रोथ आम बात थी और EMI देने या लोन लेने की योजना आत्मविश्वास से बनाई जाती थी. लेकिन आज कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं और बड़ी टेक कंपनियों में सैलरी ग्रोथ 5 फीसदी से भी कम हो चुकी है, जिस कारण कर्मचारी भी तनाव में आ चुके हैं.
तेजी से बढ़ रहा वित्तीय दबाव
अब सैलरी का 40-50% हिस्सा EMI और बीमा प्रीमियम में जा रहा है, जो कि स्वस्थ माने जाने वाले 25-30% से कहीं ज्यादा है. नौकरी करने वाले लोग स्कूल की फीस, स्वास्थ्य सेवा और जरूरी खर्चों को लेकर अपनी कमाई से ज्यादा चिंतित हैं. सपनों का घर बोझ बन गया है और नौकरी बदलने के कारण महत्वाकांक्षा से ज्यादा जीवनयापन है. कई लोग सिर्फ अपनी आजीविका चलाने के लिए 25-30% सैलरी ग्रोथ चाहते हैं.
फाउंडर्स ने दी चेतावनी
मुकुंद ने चेतावनी देते हुए कहा कि पिछले 10 से 15 सालों से कर्मचारी के जीवन की अपेक्षाएं अब बरकरार नहीं है. इस पोस्ट पर कई तीखी प्रतिक्रियाएं आईं. एक ने लिखा, नौकरी बदलना अब महत्वाकांक्षा से कम और लाइफस्टाइल से ज्यादा जुड़ा हुआ है. परिवार अपनी इनकम में कटौती कर रहे हैं और महत्वाकांक्षा की बजाय सामथ्ये और व्यावहारिकता को तरजीह दे रहे हैं.
एक अन्य ने इसे ‘एक ऐसा संकट जो होने ही वाला है’ बताया और कर्मचारियों को बुनियादी बातों पर लौटने की सलाह दी. कम खर्च करें, ज़्यादा बचत करें और परिवार व स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें.