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मोदी सरकार के नेतृत्व में भारतीय भाषाओं के विकास और संरक्षण पर जोर: केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी

केंद्र की मोदी सरकार देश की समृद्ध भाषाई विरासत के संरक्षण और विकास को लेकर कटिबद्ध है- आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी ने यह बात कही है. उन्होंने साल 2047 तक यानी आजादी के सौवां बरस पूरा होने पर विकसित भारत के लिए सरकार के विजन सामने रखे. उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक विकास और राष्ट्रीय एकता में भाषाओं की भूमिका काफी अहम है.

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केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा कि भारतीय भाषाओं की विविधताएं अनोखी हैं, यह दुनिया में एक अनूठा मॉडल है. भारत में भाषाएं केवल संचार के साधन नहीं हैं, बल्कि ज्ञान, संस्कृति और परंपराओं का अमूल्य भंडार भी हैं. उन्होंने कहा कि 1835 में मैकाले की नीतियों ने भारतीय भाषाओं को दबाने का काम किया, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया. लेकिन मोदी सरकार ने क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित करने की दिशा में लगातार काम करके दिखाया है.

पीएम मोदी ने आगे बढ़ाई परंपरा

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि परंपरा को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय भाषाओं के विकास पर विशेष जोर दिया गया है. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू और कश्मीर में कश्मीरी, डोगरी, उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी को आधिकारिक भाषाओं के रूप में मान्यता दी गई है. यह फैसला स्थानीय समुदायों की भावना और सशक्तिकरण के लिए काफी महत्वपूर्ण है.

जी. किशन रेड्डी के मुताबिक आज भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने वाली शास्त्रीय भाषाओं पर भी विशेष ध्यान दिया गया है. सरकार ने प्राचीन भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए लगातार काम किया है. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अक्टूबर 2024 में मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में नामित करने को मंजूरी दी. इसकी कुल संख्या बढ़कर 11 हो गई है.

11 शास्त्रीय भाषाओं को मान्यता

उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र देश है जिसने 11 शास्त्रीय भाषाओं को मान्यता दी है. इससे पहले 2020 में संस्कृत के लिए तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना, अनुसंधान और अनुवाद के लिए केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना और केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर के तहत कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया के लिए विशेष अध्ययन केंद्र बनाना भी इसी दिशा में प्रगति है.

जी. किशन रेड्डी ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में भाषाओं को शामिल करना इस दिशा में एक अहम कदम है. शुरू में आठवीं अनुसूची में 14 भाषाएं थीं, जो अब बढ़कर 22 हो गई हैं. यह कदम भारत की विविधता को दर्शाता है. 1967 में सिंधी को आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया. अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- मैं हिंदी बोलता हूं, लेकिन सिंधी मेरी मौसी है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मिली मजबूती

इसी तरह सन् 1992 में कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया. बाद में 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भारत की क्षेत्रीय भाषाओं के विकास को प्रोत्साहित किया गया. तत्कालीन उपप्रधान मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के पेश संशोधन के माध्यम से बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली भाषाओं को इसमें शामिल किया. संथाली को शामिल करना आदिवासी संस्कृति और मूल्यों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता और सम्मान को दर्शाता है.

रेड्डी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने में एक परिवर्तनकारी कदम है.

वैश्विक मंच पर भारत की विविधता

सरकार का लक्ष्य सभी भारतीय भाषाओं को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना और आधुनिक शिक्षा को क्षेत्रीय भाषाओं में सुलभ कराना है. भाषा आधारित पर्यटन, साहित्य उत्सव और भाषाई शोध जैसी पहल का मकसद वैश्विक मंच पर भारत की विविधता को प्रदर्शित करना है. पीएम मोदी ने मन की बात में कहा भी था- जिस तरह हम अपनी मां को नहीं छोड़ सकते, उसी तरह हम अपनी मातृभाषा को भी नहीं छोड़ सकते.

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