भारत सरकार बजट सत्र में एक विधेयक लाने की तैयारी में है. जिससे 1968 के शत्रु संपत्ति कानून में कुछ संशोधन किए जा सकते हैं. एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक इसके सहारे केंद्र सरकार को शत्रु संपत्तियों का मालिकाना हक खुद के हाथ में लेने की ताकत मिल जाएगी. सरकार इसका इस्तेमाल जनता के हित के लिए कर सकती है.
2023 की एक रपोर्ट के मुताबिक देश में कुल 12 हजार 611 शत्रु संपत्ति है. इनमें 12 हजार 485 पाकिस्तानी नागरिकों की छोड़ी संपत्ति है जबकि 126 संपत्ति चीनी लोगों की है. इस तरह, कुल तीन हजार करोड़ रुपये के कीमत की संपत्ति इससे जनता के काम आ सकती है. आइये जानें शत्रु संपत्ति क्या है, सरकार की इसको लेकर पूरी योजना क्या है.
शत्रु संपत्ति और उससे जुड़े संशोधन
हम आगे बढ़ें, उससे पहले आइये यहीं जान लें कि शत्रु संपत्ति क्या है. किसी देश से तनाव, संघर्ष के समय जब कोई शख्स अपनी संपत्ति छोड़ उस ‘दुश्मन देश’ को चला जाए तो वह शत्रु संपत्ति कहलाती है. फिलहाल शत्रु संपत्ति को लेकर 1968 का कानून है, उसके मुताबिक सरकार की ओर से घोषित शत्रु संपत्ति हमेशा के लिए संपत्ति के मालिक के ही नाम होती है. पांच दशक से भी ज्यादा पुराने कानून में इस संपत्ति के ट्रांसफर और उत्तराधिकार की कोई गुंजाइश नहीं है. इस कानून को साल 2017 में एक दफा संशोधित किया गया था. तब के संशोधन में शत्रु संपत्ति क्या है और शत्रु संस्थान की परिभाषा को विस्तार दिया गया था.
शत्रु संपत्ति को लेकर सरकार की योजना
अब अगर सरकार नए सिरे से संशोधन करती है तो कहा जा रहा है कि वह शत्रु संपत्ति का नियंत्रण अपने पास लेना चाहेगी. लखनऊ नगर निगम से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भारत सरकार इस दिशा में बढ़ रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार संशोधन के जरिये सार्वजनिक हित का वास्ता देते हुए संपत्तियों को अपने हाथ में ले सकती है. पिछले 6 सालों में, केंद्र सरकार ने 3 हजार 494 करोड़ रूपये की शत्रु संपत्तियों को भुनाया है.
1965 और 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान के बीच के युद्ध और 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद, सरकार ने पाकिस्तान या चीन की राष्ट्रीयता अपनाने वालों के स्वामित्व वाली संपत्तियों और व्यवसायों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था. पर 1962 के भारत रक्षा कानून के तहत शत्रु संपत्तियों के संरक्षण का हक उसके असल मालिकों के पास ही रह गया. मगर अब सरकार इनका मालिकाना हक लेते हुए देश की आवश्यकताओं के हिसाब से काम में लेना चाहती है.