हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा ‘जादुई गोली’ नामक गाना युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, लेकिन इसके बोल और संदेश को लेकर समाज में चिंता बढ़ती जा रही है। गीत में बार-बार ‘जादुई गोली’, ‘नशे में टोली’, ‘दारू की बोली’, ‘खून की नदी’, ‘हड्डी तोड़े’, जैसी पंक्तियों का इस्तेमाल किया गया है, जो सीधे तौर पर नशे, हिंसा और अपराध को ग्लैमराइज करता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे गाने युवाओं को नशे और अपराध के रास्ते पर धकेल सकते हैं। गीत में नशे को मजेदार और ताकतवर बनाने वाला बताया गया है, जिससे किशोरों और युवाओं के मन में गलत संदेश जा रहा है। गाने के बोल—”बाकी नशे में है रखा ही क्या है गोली जवा अरे इसमें मजा है”, “रगों में गोली तो नशे में टोली”, “खून की नदी बहे रायपुर के नाली में, मुंडी फोड़े हड्डी तोड़े बातें करे गाली में”—जैसी बातें समाज में हिंसा और अपराध को सामान्य बना रही हैं।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह के कंटेंट से युवा वर्ग की सोच पर गहरा असर पड़ सकता है और वे नशे तथा अपराध को कूल या सामान्य मानने लगते हैं। अभिभावकों और शिक्षकों को भी सतर्क रहने की जरूरत है कि उनके बच्चे इस तरह के गानों से प्रभावित न हों।
सवाल यह उठता है कि क्या ऐसे गानों को सोशल मीडिया और यूट्यूब पर प्रमोट करना सही है? क्या सेंसर बोर्ड और प्रशासन को ऐसे कंटेंट पर रोक नहीं लगानी चाहिए? समाज के जागरूक वर्ग का कहना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर नशे और अपराध को बढ़ावा देने वाले गानों को रोका जाना चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रह सके।