इटावा: आजीवन कारावास की सजा काट रही डकैत कुसमा नाइन की तबीयत बिगड़ी, सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी में भर्ती

इटावा: जिला जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रही पूर्व डकैत कुसमा नाइन को गंभीर स्थिति में सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी में भर्ती कराया गया है. शुक्रवार रात करीब 8 बजे उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने के बाद पहले उन्हें जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां से प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें सैफई रेफर कर दिया गया। जेल अधीक्षक कुलदीप सिंह के अनुसार, कुसमा पिछले एक माह से टीबी से पीड़ित हैं और उनका नियमित उपचार चल रहा है.

Advertisement

 

कुसमा का आपराधिक इतिहास

कुसमा पिछले 20 वर्षों से इटावा जेल में बंद हैं. कुसमा का आपराधिक इतिहास काफी लंबा है. वह कुख्यात डकैत रामआसरे उर्फ फक्कड़ की सहयोगी रही हैं. जून 2004 में उन्होंने अपने पूरे गिरोह के साथ मध्य प्रदेश के भिंड जिले में बिना शर्त आत्मसमर्पण किया था.

 

कुसमा के क्रूर कारनामे

डकैतों की खबरों को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शाक्य ने कुसमा नाइन के क्रूरता के किस्से बताए. उन्होंने बताया कि मई 1981 में फूलन देवी डाकू लालाराम और श्रीराम से अपने गैंग रेप का बदला लेने के लिए बेहमई गांव गई. दोनों वहां नहीं मिले, लेकिन फिर भी फूलन ने 22 राजपूतों को लाइन से खड़ा करके गोली मार दी थी. इस घटना ने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी। इस कांड के बाद लालाराम और उसकी माशूका बन चुकी कुसुमा बदला लेने के लिए उतावले होने लगे थे.

 

बेहमई कांड के एक साल बाद यानी साल 1982 में फूलन आत्मसमर्पण कर देती है.लालाराम और कुसुमा का गैंग एक्टिव रहता है। साल 1984 में कुसुमा फूलन देवी के बेहमई कांड का बदला लेती है. फूलन के दुश्मन लालाराम के प्रेम में डूबी कुसुमा अपनी गैंग के साथ बेतवा नदी के किनारे बसे मईअस्ता गांव पहुंचती हैं. उस गांव के 15 मल्लाहों को लाइन से खड़ा कर गोली मार दी और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया.

1996 में इटावा जिले के भरेह इलाके में कुसुमा नाइन ने संतोष और राजबहादुर नाम के मल्लाहों की आंखें निकाल ली थीं और उन्हें जिन्दा छोड़ दिया था. कुसुमा की क्रूरता के कारण डकैत उसे यमुना-चंबल की शेरनी कह कर बुलाने लगे थे.

Advertisements