बिलासपुर संभाग के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज सिम्स में उपकरणों की खरीदी के लिए राज्य शासन ने 15 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। इसके बाद भी यहां अब तक नई मशीनें नहीं लग पाई हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले को लेकर जनहित याचिका पर राज्य शासन से पूछा है कि राशि स्वीकृत होने के बाद भी उपकरणों की खरीदी क्यों नहीं की जा रही है। कोर्ट ने मामले में शासन से शपथपत्र के साथ जवाब मांगा है।
दरअसल, सिम्स में मरीजों की जांच पुराने उपकरणों से हो रही है। पिछली सुनवाई के दौरान सिम्स प्रबंधन ने चिकित्सा सेवाओं को आधुनिक बनाने और जांच प्रक्रिया को तेज करने के लिए शासन को 15 करोड़ रुपए के दो अलग-अलग प्रस्ताव भेजने की जानकारी दी थी। साथ ही बताया था कि शासन से मंजूरी मिल गई है। लेकिन, चार माह बाद भी सिम्स में उपकरणों की खरीदी नहीं की गई है। जिसके कारण मजबूरी में डाक्टरों को पुरानी मशीनों से ही काम चलाना पड़ रहा है। मंगलवार को हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की। साथ ही राज्य शासन को शपथ पत्र के साथ जवाब देने कहा है, जिसमें यह बताना होगा कि अब तक उपकरणों की खरीदी क्यों नहीं की गई है।
हाईकोर्ट ने पूछा- मंजूरी के बाद अब देरी क्यों चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि सिम्स इस क्षेत्र का एकमात्र शासकीय मेडिकल कालेज अस्पताल है, जहां दूर-दराज से मरीज इलाज के लिए आते हैं। जब सरकार ने बजट दे दिया है, तो मशीनें लगाने में देरी क्यों हो रही है। डिवीजन बेंच ने यह भी कहा कि पुरानी मशीनों से जांच परिणाम प्रभावित हो सकते हैं, जिससे आम मरीजों के इलाज पर असर पड़ेगा। कोर्ट ने शासन से पूछा कि चिकित्सा व्यवस्था में सुधार कब होगा और आमजन को राहत देने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है।
एसईसीएल की मदद से खरीदी गई सीमित मशीनें जरूरत को देखते हुए सिम्स ने एसईसीएल के सीएसआर मद और अन्य स्रोतों से 66 लाख रुपये की लागत से सोनोग्राफी, डायलिसिस सहित कुछ मशीनें खरीदी हैं। हालांकि, यह संख्या अस्पताल की आवश्यकताओं की तुलना में बहुत कम है। डाक्टरों का कहना है कि नई मशीनें मिलने से कम समय में अधिक मरीजों की जांच संभव होगी और इलाज की गुणवत्ता में सुधार आएगा।