राम मंदिर में गूंजेगी हर कहानी: आंदोलन के नायकों को मिलेगी अमर पहचान, इन नामों से जाने जाएंगे राम जन्मभूमि परिसर के भवन

अयोध्या: अयोध्या की पावन धरा, जहां हर कण में प्रभु श्रीराम का वास है. अब संघर्ष, तपस्या और बलिदान की अमर कथाओं को जीवित रखने की दिशा में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट एक ऐतिहासिक कदम उठाने जा रही है. ट्रस्ट ने यह निर्णय लिया है कि राम मंदिर परिसर में निर्मित हो रहे प्रमुख भवनों, विश्राम गृहों और सांस्कृतिक केंद्रों का नाम उन महान विभूतियों के नाम पर रखा जाएगा, जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी.

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प्रेरणा बनेंगे आंदोलन के महानायक

7 मार्च को हुई ट्रस्ट की बैठक में यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया कि मंदिर आंदोलन से जुड़े प्रमुख महापुरुषों की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए विभिन्न स्थलों का नामकरण उनके नाम पर किया जाएगा. यह निर्णय न केवल इतिहास को जीवंत बनाएगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा.

इन भवनों को मिलेंगे स्मरणीय नाम

अशोक सिंहल सभागार: दक्षिण दिशा में बन रहा यह 500 सीटों वाला भव्य सभागार विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख रणनीतिकार अशोक सिंहल जी के नाम से जाना जाएगा इसका निर्माण अप्रैल 2026 तक पूर्ण होगा.

बाबा अभिराम दास प्रवेश द्वार: यात्री सुविधा केंद्र का प्रवेश द्वार उन बाबा अभिराम दास के नाम पर होगा, जिन्होंने 22-23 दिसंबर 1949 की रात रामलला की मूर्ति को विवादित स्थल में प्रतिष्ठित किया था.

महंत अवेद्यनाथ यात्री सुविधा केंद्र: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु और राम मंदिर आंदोलन के अग्रदूत महंत अवेद्यनाथ के नाम पर यह सुविधा केंद्र होगा, जो दर्शन पथ पर स्थित है.

रामचंद्र दास परमहंस सेवा केंद्र: राम जन्मभूमि न्यास के प्रथम अध्यक्ष और 1989 में शिलान्यास के प्रमुख अगुवा रहे परमहंस के नाम से यह सेवा केंद्र समर्पित किया गया है.

चारों प्रवेश द्वार होंगे शंकराचार्यों के नाम पर

ट्रस्ट पूर्व में ही यह निर्णय ले चुका है कि मंदिर परिसर के चारों भव्य प्रवेश द्वार भारत के चार प्रमुख पीठों के शंकराचार्यों के नाम पर होंगे. यह न केवल धार्मिक आदर का प्रतीक होगा, बल्कि सांस्कृतिक समरसता और एकता का संदेश भी देगा.

श्रद्धा, स्मृति और संकल्प का संगम

महंत रामशरण दास ने इसे श्रद्धा, सम्मान और स्मृति का संगम बताया और कहा कि यह निर्णय आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा. वहीं, महंत नृत्यगोपाल दास, जो 5 जून की प्राण-प्रतिष्ठा में शामिल नहीं हो सके, उन्होंने राम दरबार में उपस्थित होकर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि रामभक्तों की तपस्या अब फलित हो रही है. यह मंदिर सामाजिक समरसता का प्रतीक है.

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