एक्सट्रा मैरिटल अफेयर क्रूरता नहीं’, दहेज के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला

हाईकोर्ट ने मंगलवार (13 मई) एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति का एक्सट्रा मैरिटल अफेयर (पारिवारिक संबंध के बाहर का रिश्ता) तब तक क्रूरता या आत्महत्या के उकसाने का कारण नहीं बनता, जब तक यह साबित नहीं हो कि वह संबंध पत्नी को परेशान या उत्पीड़ित करने के लिए था.

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अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एक्सट्रा मैरिटल अफेयर के आधार पर पति को दहेज मृत्यु के मामले में आरोपी नहीं बनाया जा सकता, जब तक कि वह संबंध दहेज मांग से जुड़ा न हो. कोर्ट ने यह आदेश उस व्यक्ति को जमानत देते हुए दिया, जिसे मार्च 2024 में अपनी पत्नी की अस्वाभाविक मौत के बाद दहेज मृत्यु और आत्महत्या के उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. कोर्ट ने माना कि आरोपित व्यक्ति के खिलाफ दायर चार्जशीट के आधार पर उसका लगातार हिरासत में रहना अब कोई उद्देश्य नहीं पूरा करता.

‘एक्सट्रा मैरिटल अफेयर अकेले दोष नहीं बन सकता’

जस्टिस संजीव नारुला ने अपने आदेश में कहा प्रवृत्ति यह है कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने के लिए सबूत पर निर्भर है कि अभियुक्त का एक एक्सट्रा मैरिटल संबंध था. कुछ वीडियो और चैट रिकॉर्ड इस बात के समर्थन में प्रस्तुत किए गए हैं. हालांकि, यह मानते हुए कि ऐसा संबंध था, कानून यह स्पष्ट करता है कि एक एक्सट्रा मैरिटल संबंध अपने आप में 498A आईपीसी (क्रूरता) या 306 आईपीसी (आत्महत्या के लिए उकसाना) का कारण नहीं बनता, जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि वह संबंध इस तरीके से किया गया था कि उसने मृतका को उत्पीड़ित किया.

कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में उत्पीड़न या क्रूरता को दहेज मांगों या मौत के कुछ समय पहले होने वाली मानसिक क्रूरता से जोड़ना जरूरी है. इस फैसले ने यह भी साफ किया कि एक्सट्रा मैरिटल अफेयर को दहेज मृत्यु के आरोप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

महिला के परिवार ने लगाया था ये आरोप

महिला के परिवार ने आरोप लगाया था कि पति का एक सहकर्मी के साथ अफेयर था और जब पत्नी ने इसका सामना किया तो उसने शारीरिक उत्पीड़न किया. इसके अलावा, पति पर यह भी आरोप था कि वह पत्नी को नियमित रूप से घरेलू हिंसा का शिकार बनाता था और उसे अपने परिवार से कार की ईएमआई का भुगतान करने के लिए दबाव डालता था. हालांकि, अदालत ने यह ध्यान में रखा कि महिला या उसके परिवार द्वारा उसकी जीवित अवस्था में कोई शिकायत नहीं की गई थी, जिससे दहेज उत्पीड़न के आरोपों की गंभीरता और तत्कालिता पर सवाल उठते हैं.

जमानत पर रिहाई का आदेश

कोर्ट ने यह भी कहा कि व्यक्ति को जमानत दी जानी चाहिए क्योंकि अब तक मामले की जांच पूरी हो चुकी थी और ट्रायल के दौरान कोई साक्ष्य नष्ट करने या न्याय से भागने का खतरा नहीं था. अदालत ने उसे 50 हजार रुपये के व्यक्तिगत बांड पर और उसी राशि के दो जमानतदारों के साथ रिहा करने का आदेश दिया. यह फैसला उस व्यक्ति को राहत देने वाला साबित हुआ, जो मार्च 2024 से हिरासत में था और अदालत ने यह किया कि उसकी हिरासत का अब कोई उद्देश्य नहीं रह गया था.

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