रीवा: बिना पूंजी के करोड़ों के खेल करने वाले गिरोह का पर्दाफाश हुआ है. 15 करोड़ रुपये की फर्जी बैंक गारंटी मामले में जिला आबकारी अधिकारी सहित सात लोगों पर मामला दर्ज किया गया है. आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 (सी) के तहत केस दर्ज किया गया है.
ये हैं आरोपी:
1. उपेन्द्र सिंह बघेल – मऊगंज शराब दुकान समूह
2. नृपेन्द्र सिंह – मेसर्स माँ लक्ष्मी इंटरप्राइजेज, हनुमना-नईगढ़ी-बैकुंठपुर-देवतालाब शराब दुकान समूह
3. अजीत सिंह – मेसर्स आशा इंटरप्राइजेज, इटौरा शराब दुकान समूह
4. नागेन्द्र सिंह – तत्कालीन प्रभारी शाखा प्रबंधक, जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक, मोरबा
5. आदित्य प्रताप सिंह – रायपुर कर्चुलियान शराब दुकान समूह
6. विजय बहादुर सिंह – मे. आर्याग्रुप, समान नाका शराब दुकान समूह
7. अनिल जैन – तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी, रीवा
फर्जीवाड़े का तरीका और प्रशासन की मिलीभगत
इस घोटाले में बिना किसी पूंजी के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर 15 करोड़ का अवैध कारोबार किया गया. सरकारी राजस्व की भारी हानि के साथ प्रशासन की नाक के नीचे भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया. कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के संरक्षण में इस तरह के घोटाले होना इस बात को दर्शाता है कि करप्ट सिस्टम किस हद तक जड़ें जमा चुका है.
आरटीआई एक्टिविस्ट की मेहनत से हुआ खुलासा
इस मामले का पर्दाफाश आरटीआई कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों के प्रयासों से हुआ. वर्षों की मेहनत, दस्तावेजी साक्ष्य जुटाने और कानूनी लड़ाई के बाद पूरा मामला न्यायालय में उजागर हुआ.
अब बड़ा सवाल-क्या असली सरगना बच जाएंगे?
इस पूरे घोटाले से यह सवाल उठता है कि क्या केवल छोटे मोहरे ही कुचले जाएंगे या फिर इस गिरोह के असली संरक्षकों पर भी कार्रवाई होगी? प्रशासन और सरकार को जवाबदेह बनाना अब जनता की जिम्मेदारी बन गई है. क्या शासन दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करेगा, या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा?