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सीओ की कार साइड न देने पर फर्जी मुकदमा, कोर्ट ने लगाई फटकार

हरदोई: जिले में पुलिस की कार्यवाही पर सवाल उठे हैं। यहां दो युवकों को पुलिस ने आर्म्स एक्ट के मामले में जेल भेजा था, आरोपियों की पैरवी करते हुए उनके अधिवक्ता ने बताया कि सीओ की कार को साइड न देने पर पुलिसकर्मियों ने दोनों युवकों को जमकर पीटा और उसके बाद फर्जी असलहा की धारा लगाकर उनको जेल भेज दिया.

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इसके बाद आज पुलिस ने उनकी रिमांड अदालत से मांगी थी. जहां पर विद्वान न्यायाधीश ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद पुलिस कार्यवाही पर ही सवाल उठाए हैं और एसपी से पूरे मामले की जांच की बात कही है.

कोर्ट ने टिप्पणी भी की है कि इस मामले में पुलिस द्वारा जो पांच वीडियो प्रस्तुत किए गए हैं, वह कूट रचित और किसी को फंसाए जाने के उद्देश्य से बनाए गए मालूम होते हैं।

ये है पूरा मामला

पुलिस ने 26 सितम्बर को समीम और मुलायम यादव निवासी हकीमखेड़ा थाना- सण्डीला को गिरफ्तार कर न्यायालय के में पेश किया था.

इस मामले में विवेचक ने रिमाण्ड शीट मे केस डायरी, मेडिकल प्रपत्र तथा गिरफ्तारी सूचना मेमो को लगाकर आरोपियों की 14 दिन के न्यायिक अभिरक्षा रिमाण्ड की मांग की. पुलिस ने तर्क दिया कि आरोपी की गिरफ्तारी के 24 घण्टे के भीतर विवेचना की कार्यवाही पूर्ण नहीं हो पायी है. साक्ष्य संकलन की कार्यवाही अभी बाकी है.

आरोपियों के अधिवक्ता अभिषेक बाजपेयी ने आपत्ति लगाते हुए कोर्ट को बताया कि सीओ ने मोहम्मदपुर रोड पर गाड़ी को साइड न देने की वजह से दोनों युवकों को पकड़ा व दोनों को मारा-पीटा. जिसके बाद सीओ ने स्थानीय दरोगा को फोन कर बुलाया  जिस पर दरोगा व स्थानीय थाने की पुलिस आ गयी.

जिन्होंने आरोपियों को मारा-पीटा व शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक वहीं पर सात आठ बार वीडियो बनाए व दोनों के तमंचा लगाकर भी वीडियो बनाया और थाने लेकर चले गये.

कोर्ट ने ये की टिप्पणी

मामले में अपर मुख्य न्यायाधीश (रिमांड मजिस्ट्रेट) देवेंद्र प्रताप सिंह ने दोनो पक्षों को सुनने के बाद प्रकरण में धारा 105 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता का अनुपालन नहीं किया जाना बताया है. धारा में प्रावधान है कि तलाशी एवं जब्ती की कार्यवाही का ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग किया जाना अनिवार्य है.

उन्होंने कहा प्रपत्रों के अवलोकन एवं विवेचक से ली गयी जानकारी के अनुसार यह स्पष्ट होता है कि उनके द्वारा धारा 105 के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया गया है जो कि अनिवार्य है .

तमंचा आरोपियों के पास से बरामद होना बताया गया है. आरोपियों के पास से बरामदगी का वीडियो बनाया गया, जिसे न्यायालय के समक्ष पेश किया गया, वीडियो 5 भागों में है. पहला वीडियो 01 मिनट 32 सेकण्ड, दूसरा 0.07 सेकण्ड, तीसरा 1 मिनट 25 सेकण्ड, चौथा वीडिया 6 मिनट 2 सेकण्ड ओर आखिरी पांचवा वीडियो 12 मिनट 36 सेकण्ड का है.

विद्वान न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सभी वीडियों के अवलोकन से प्रथम दृष्टया यह ये मालूम होता है कि आरोपियों के पास से बरामदगी की कार्यवाही उन्हें मात्र फर्जी तरीके से पुलिस कार्यवाही में फँसाने के उद्देश्य से की गयी है. वीडियो देखने से यह भी परिलक्षित हो रहा है कि पुलिस पूर्व से तमंचो को सील करने के उद्देश्य से डिब्बे एवं अन्य सामग्री लेकर गयी है.

यह दर्शाता है कि संपूर्ण कार्यवाही पूर्व से सुनियोजित तरीके से की गयी है. जो  मौके पर तैयार किया गया हो उसका भी कोई स्पष्ट वीडियोग्राफी या चित्रण नहीं है.

उक्त कार्यवाही धारा 105 B.N.S के प्रावधानों को दूषित करती है एवं उसके उद्देश्य को विफल करती है, जिसमें पुलिस को फर्जी साक्ष्य के सृजन को रोकना था.

एसपी से मामले की जांच के आदेश

ACJM देवेंद्र प्रताप सिंह ने पुलिस रिमांड की याचना को खारिज करते हुए कहा कि प्रकरण में पुलिस पर अति गंभीर आरोप लगाया गया है.

जिसमें निष्पक्ष जाँच कर आवश्यक कार्यवाही विधि सम्मत होगा. पुलिस अधीक्षक हरदोई को आदेशित किया जाता है कि अभियुक्तगण द्वारा पुलिस पर लगाये गये आरोपों की निष्पक्ष जाँच कर विधि सम्मत कार्यवाही करें.

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