बिलासपुर में फर्जी EWS सर्टिफिकेट के जरिए MBBS में एडमिशन का मामला अब गहराने लगा है। भाजपा नेता की भतीजी समेत जिन तीन छात्राओं को प्रमाण पत्र जारी किया गया है, उसमें अलग-अलग सील लगा है। वहीं, तीनों में तहसीलदार का साइन भी मिस मेच हो रहा है। जबकि जिस समय सर्टिफिकेट जारी किया गया, उस समय एक ही तहसीलदार पदस्थ रही हैं।
तहसीलदार और एसडीएम ने जारी प्रमाणपत्रों को फर्जी बताकर रिपोर्ट चिकित्सा शिक्षा आयुक्त के साथ ही कलेक्टर को भेज दी है। दूसरी तरफ अब बिलासपुर के तहसील कार्यालय से जारी इन प्रमाणपत्रों की गहन जांच की जा रही है। आवेदक और उसके अभिभावकों ने दावा किया है कि उन्होंने प्रकरण के लिए दस्तावेज जमा किए थे, जो गायब हो गया है।
वहीं, तहसीलदार के नाम से जारी सर्टिफिकेट में अलग-अलग सील का इस्तेमाल किया गया है। साथ ही तहसीलदार का साइन भी गलत है। ऐसे में आवेदकों ने दस्तावेज प्रस्तुत किया है। फिर भी सर्टिफिकेट को सही नहीं माना जा सकता। क्योंकि ऐसे प्रमाणपत्र में केवल एक ही तरह का सील-मुहर का इस्तेमाल किया जाता है।
आवेदकों से दोबारा मंगाए दस्तावेज
अब तहसील कार्यालय में उनके दस्तावेज गायब होने के बाद सोमवार को सभी आवेदकों से दोबारा दस्तावेज मंगाया गया। फिर गहन छानबीन की गई। इस दौरान परिजनों ने बयान दिया कि उन्होंने नियमों के तहत ही प्रमाणपत्र हासिल किया है।
इसके लिए ऑनलाइन आवेदन भी जमा किया था। इस दौरान उन्होंने यह भी जोड़ा कि सील या हस्ताक्षर में बदलाव कार्यालय के भीतर हुआ होगा, जिसकी जानकारी उन्हें नहीं है न ही इसके लिए वो जिम्मेदार हैं।
तहसील ऑफिस की कार्यप्रणाली पर सवाल
दूसरी तरफ तहसील कार्यालय में प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगा हैं। आवेदकों ने जब ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत किया है तो उसका रिकार्ड कहां है, उसे गायब करने में किसकी भूमिका है। जांच समिति अब आवेदकों के ऑनलाइन डेटा और कार्यालय की फाइलों के बीच मेल बिठाने में जुट गई है।
हालांकि, इस पूरे कांड में क्लर्क को जिम्मेदार मानकर दोषी ठहराने का प्रयास भी चल रहा है। यही वजह है कि क्लर्क प्रहलाद सिंह नेताम को नोटिस जारी करने के साथ ही उसे प्रभार से हटा दिया गया है।
जानिए कैसे सामने आया EWS का फर्जीवाड़ा
इस पूरे मामले की जांच तब शुरू हुई, जब आयुक्त चिकित्सा शिक्षा ने एमबीबीएस में एडमिशन लेने वाली छात्राओं के EWS सर्टिफिकेट को वेरिफिकेशन के लिए तहसील कार्यालय भेजा। सर्टिफिकेट के साथ दस्तावेज भी शामिल थे।
जांच में तीन आवेदन फर्जी पाए गए। जिनका कोई रिकार्ड तहसील कार्यालय में नहीं है। वहीं, सर्टिफिकेट में अलग-अलग सील और मुहर का उपयोग किया गया है। साथ ही तहसीलदार का साइन भी गलत है।
भाजपा नेता की भतीजी समेत तीन छात्राएं शामिल
चिकित्सा शिक्षा आयुक्त ने जिन छात्राओं की लिस्ट भेजी है और उनका प्रमाणपत्र फर्जी पाया गया है, उनमें सरकंडा के श्रेयांशी गुप्ता पिता सुनील गुप्ता के साथ ही लिंगियाडीह के सीपत रोड निवासी सुहानी सिंह पिता सुधीर सिंह, सरकंडा की भाव्या मिश्रा, पिता सूरज कुमार मिश्रा शामिल हैं।
बता दें कि श्रेयांशी गुप्ता के पिता सुनील गुप्ता डेयरी व्यावसायी हैं और उनका बड़ा कारोबार है। साथ ही वो भाजपा के उत्तर मंडल अध्यक्ष रहे सतीश गुप्ता की भतीजी है।