झूठे केस अब नहीं चलेंगे” – कोर्ट ने लड़की के पिता को सुनाई सजा, 2.5 लाख का जुर्माना भी ठोका

बरेली : जज ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने एक ऐतिहासिक फैसले में झूठे दहेज हत्या के मुकदमों पर गंभीर चिंता जताते हुए लड़की के पिता को ही सजा सुनाई. अदालत ने अपने फैसले में बैंगलोर के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या और बदलते सामाजिक परिवेश का उदाहरण देते हुए कहा कि वैवाहिक विवादों में झूठे आरोपों के कारण निर्दोष लोगों का जीवन बर्बाद हो रहा है.

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जज ने टिप्पणी की कि अब विवाह के बाद लड़कियां पति पर परिवार से अलग रहने का दबाव डालती हैं, और जब इच्छाएं पूरी नहीं होती, तो झूठे मुकदमों का सहारा लिया जाता है. उन्होंने हरिवंशराय बच्चन की कविता और रामचरितमानस के दोहे का उल्लेख करते हुए कहा कि स्वप्न देखने चाहिए, लेकिन उनकी वास्तविकता को भी समझना जरूरी है.अदालत ने स्पष्ट किया कि इस तरह के झूठे मुकदमे न केवल निर्दोषों को सजा दिलाते हैं, बल्कि न्याय व्यवस्था पर भी गंभीर प्रभाव डालते हैं.

सुसाइड का पूरा मामला, कब और कैसे हुई घटना

बरेली के विशारतगंज थाना क्षेत्र की रहने वाली शालू की शादी 2019 में सोनू से हुई थी. 20 जुलाई 2023 को शालू ने अपने ससुराल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.इस घटना के बाद, उसके पिता बाबूराम ने ससुराल वालों पर गंभीर आरोप लगाते हुए नवाबगंज थाने में पति सोनू, ससुर पोशाकीलाल, देवर भारत, देवर सुमित, ननद अंजलि और दादिया सास के खिलाफ दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था.

बेटी गुस्सैल स्वभाव की थी उसने खुद आत्महत्या की

इस केस में पुलिस ने पति सोनू और ससुर पोशाकीलाल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.मामला अदालत में पहुंचा, लेकिन सुनवाई के दौरान लड़की के पिता ने अपने ही आरोपों से मुकरते हुए कहा कि उसकी बेटी गुस्सैल स्वभाव की थी और उसने खुद ही आत्महत्या की थी. इस नए खुलासे के बाद, कोर्ट ने झूठा केस करने के लिए लड़की के पिता को ही सजा सुनाई.

 

जज ने दिया एआई इंजीनियर अतुल और हरिवंशराय की कविता का उदाहरण

 

कोर्ट ने अपने फैसले में बैंगलोर के चर्चित इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के मामले का उदाहरण दिया। अतुल ने वैवाहिक विवादों और कानूनी परेशानियों से तंग आकर जान दे दी थी.जज ने कहा कि वैवाहिक विवादों में झूठे आरोपों की वजह से निर्दोष लोगों को बड़ी मानसिक और आर्थिक पीड़ा झेलनी पड़ती है.

इसके अलावा, कोर्ट ने हरिवंशराय बच्चन की प्रसिद्ध कविता “पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले” की इन पंक्तियों का भी उल्लेख किया:

 

“स्वप्न आना स्वर्ग का, दृग-कोरकों में दीप्ति आती,

पंख लग जाते पगों को, ललकती उन्मुक्त छाती।

“आँख में हो स्वर्ग लेकिन, पॉव पृथ्वी पर टिके हो,”

“कंटकों की इस अनोखी सीख का सम्मान कर ले।”

 

न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि जीवन में कल्पनाएं और महत्वाकांक्षाएं होना अच्छी बात है, लेकिन उन्हें वास्तविकता के धरातल पर समझना भी जरूरी है।

 

लड़की के पिता को सुनाई गई सजा

सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने बताया कि झूठे आरोपों के कारण पति सोनू, ससुर पोशाकीलाल और दादिया सास को 17 महीने तक जेल में रहना पड़ा.अदालत ने इस आधार पर फैसला सुनाया कि लड़की के पिता बाबूराम को उतने ही दिन जेल में रहना पड़ेगा, जितने दिन निर्दोष लोग जेल में थे.

 

एडीजीसी सुनील पांडे ने बताया कि अपर सत्र न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मृतका के पिता बाबूराम को 800 दिन (दो वर्ष दो माह 10 दिन) की सजा और 2,54,352.35 रुपए जुर्माना लगाया है.

 

मिथ्या आरोप और झूठे मुकदमों का बढ़ता प्रचलन

 

न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा कि झूठे दहेज उत्पीड़न के मुकदमे अब आम होते जा रहे हैं.कई मामलों में, पत्नी या उसके परिवार वाले ससुराल पक्ष पर झूठे आरोप लगाकर आर्थिक लाभ उठाने की कोशिश करते हैं.

 

न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने इस संदर्भ में कहा “पति पक्ष दहेज का सामान लौटाने को तैयार होता है, लेकिन जब अतिरिक्त धनराशि की मांग होती है और वह उसे देने से इनकार करता है, तो दहेज हत्या का झूठा केस दर्ज कर दिया जाता है.बाद में, जब समझौता होता है, तो लड़की के माता-पिता अदालत में गवाही बदल देते हैं.”

 

ऐसे मामलों में ससुराल पक्ष की महिलाएं भी झूठे मुकदमों में फंस जाती हैं.इस केस में भी ननद, देवरानी और दादिया सास जैसी वृद्ध महिलाओं को जेल जाना पड़ा.

 

समाज में वैवाहिक संबंधों का बदलता स्वरूप

 

अदालत ने अपने फैसले में समाज में बदल रहे पारिवारिक संबंधों पर भी चिंता जताई.न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि पहले लड़कियां संयुक्त परिवार में घुल-मिलकर रहती थीं, लेकिन अब अधिकांश नवविवाहिताएं पति को परिवार से अलग करने का दबाव डालने लगी हैं.

 

कोर्ट ने कहा “यदि पति माता-पिता से संबंध बनाए रखता है, तो पत्नी को यह पसंद नहीं आता और इससे वैवाहिक विवाद बढ़ जाते हैं.परिणामस्वरूप, झूठे मुकदमे दर्ज कराए जाते हैं, जिनमें पूरे परिवार को प्रताड़ित किया जाता है.”

 

अदालत में पिता का कबूलनामा

 

सुनवाई के दौरान बाबूराम ने कोर्ट में स्वीकार किया कि उसकी बेटी गुस्सैल स्वभाव की थी और ससुराल में भी झगड़ा करती थी.उसने कहा “मेरी बेटी खुद ही अपने पति को लेकर ससुराल से अलग हो गई थी. वह मुझसे और मेरी पत्नी से भी झगड़ा करती थी और कहती थी कि उसकी शादी गरीब परिवार में कर दी गई. गुस्से में वह मारपीट भी कर देती थी.” बाबूराम ने यह भी कबूल किया कि उसने पहले झूठे बयान दिए थे और यह नहीं समझा था कि कोर्ट में झूठ बोलना अपराध है.

 

रामचरितमानस के दोहे का संदर्भ

 

कोर्ट में अभियोजन पक्ष के वकील ने रामचरितमानस के इस दोहे का भी उल्लेख किया

 

“सचिव, वैद्य, गुरु जो प्रिय बोलहिं भय आश,”

“राज, धर्म, तन तीनि कर होइ नास।”

 

इसका अर्थ है कि यदि मंत्री, चिकित्सक और गुरु केवल भय या लालच में आकर मीठी बातें करते हैं, तो राज्य, धर्म और शरीर तीनों का नाश हो जाता है.

 

वकील ने कहा कि झूठे मुकदमे न केवल निर्दोषों को सजा दिलाते हैं, बल्कि समाज में न्याय व्यवस्था को भी प्रभावित करते हैं.

 

झूठे मुकदमे और उनके दुष्परिणाम

 

अदालत ने इस फैसले के माध्यम से एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि झूठे मुकदमे दर्ज कर निर्दोष लोगों को फंसाना एक गंभीर अपराध है.न्यायाधीश ने कहा कि ऐसे मामलों में कानून को और कठोर होने की आवश्यकता है, ताकि झूठे आरोप लगाने वाले लोगों को भी सख्त सजा मिल सके। इस ऐतिहासिक फैसले से भविष्य में झूठे मुकदमों पर लगाम लगाने की उम्मीद की जा रही है.

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