Supreme Court Decision on Hyundai: सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसमें एक कर्मचारी को बिना किसी नोटिस के कंपनी से निकाल दिया गया था. इस मामले में हुंडई ऑटोएवर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का नाम सामने आया जो कि हुंडई मोटर की सहायक कंपनी है. ये मामला जिला न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट के मध्यस्थता के निर्णय को बदलकर फैसला कर्मचारी के पक्ष में सुनाया. इसके साथ ही कंपनी पर पांच लाख रुपये भुगतान के रूप में कर्मचारी को देने का आदेश दिया.
क्या है पूरा मामला?
हुंडई की इस सहयोगी कंपनी ने 21 जनवरी, 2021 को अपने एक कर्मचारी को निकाल दिया था. कंपनी ने नौकरी से निकालने का कारण कर्मचारी की अनुपस्थिति और असहयोग बताया. हालांकि कंपनी से किए समझौते के मुताबिक एंप्लॉय ने किसी भी गोपनीय बात को कंपनी से बाहर किसी को नहीं बताया था. इसलिए कंपनी के पास एग्रीमेंट के मुताबिक कोई कर्मचारी को निकालने का कोई वैध कारण नहीं था.
साल 2021 में, कर्मचारी ने PW एक्ट के तहत औद्योगिक विवाद अधिनियम (आईडी अधिनियम) से संपर्क किया. इसी बीच हुंडई ऑटोएवर ने कर्मचारी के साथ मध्यस्थता करने की कोशिश की. मध्यस्थता ने विवाद पर शासन के अधिकार क्षेत्र की कमी का हवाला देते हुए कार्यवाही बंद कर दी गई. इसके बाद हुंडई ने सेक्शन 11(6) के तहत मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया. हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थ की नियुक्ति का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया फैसला
मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में मध्यस्थता नहीं की जा सकती. इसके साथ ही कोर्ट ने हुंडई ऑटोएवर के अंतिम समय में क्लॉज 19 लागू कर 14.02 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर देने की भी आलोचना की और कहा कि यह बाद में सोचा गया कदम था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खंड 19 को लागू करने का कोई आधार नहीं है जब तक यह स्थिति सामने आई ही नहीं. हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया और आदेश दिया कि याचिकाकर्ता तो तीन महीने के अंदर पांच लाख रुपये देने होंगे.