राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल कल चीन का दौरा करेंगे. वह लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) को लेकर विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता के लिए चीन जा रहे हैं. रक्षा सूत्रों के मुताबिक, भारत और चीन सीमा को लेकर यह बैठक 17 और 18 दिसंबर को होगी. इस दौरान डोभाल चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ चर्चा करेंगे. इस यात्रा को दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में बड़े कदम के तौर पर देखा जा रहा है. गलवान झड़प के बाद यह विशेष प्रतिनिधि स्तर की पहली वार्ता होगी. दोनों देशों के बीच आखिरी बार विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता दिसंबर 2019 में हुई थी.
सूत्रों का कहना है कि विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता का उद्देश्य एलएसी मुद्दे को लेकर व्यापक समझ को बढ़ावा देना और इसके दीर्घकालिक समाधान की रूपरेखा तैयार करना है. जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद यह इस तरह की पहली वार्ता होगी. गलवान झड़प के बाद दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. सूत्रों का कहना है कि इस उच्चस्तरीय वार्ता के नतीजों से अगली कॉर्प्स कमांडर स्तर की वार्ता का रास्ता साफ होगा.
दिल्ली में हुई मीटिंग के बाद हो रही मुलाकात
यह वार्ता हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित हुए वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसल्टेशन एंड कोऑर्डिनेशन (WMCC) बैठक के दौरान आपसी सहमति से आयोजित की जा रही है. एक स्थायी समाधान खोजना दोनों देशों के लिए अहम है, क्योंकि बीते कुछ वर्षों से एलएसी पर तनाव से द्विपक्षीय संबंध खराब हुए हैं.
जानकारों का मानना है कि यह वार्ता दोनों देशों के लिए एक अहम मील का पत्थर साबित हो सकती है, क्योंकि इससे न सिर्फ शांतिपूर्ण समाधान के लिए नए रास्ते खुलेंगे, बल्कि क्षेत्र में स्थिरता भी बढ़ेगी. अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या इस वार्ता से दोनों देशों के बीच ठोस और सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं.
LAC पर पेट्रोलिंग को लेकर हाल ही में हुआ है समझौता
एलएसी पर पेट्रोलिंग को लेकर भारत और चीन के बीच अक्टूबर में ही अहम समझौता हुआ है. समझौते के तहत, एलएसी पर फिर सब कुछ वैसा ही हो जाएगा, जैसा जून 2020 से पहले था. जून 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद से यहां तनाव बना हुआ था. कई जगह ऐसी थीं, जहां पेट्रोलिंग रुक गई थी.
भारत और चीन के बीच एलएसी पर पांच जगहों- देपसांग, डेमचोक, गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा हॉट स्प्रिंग में संघर्ष था. 2020 के बाद कई दौर की बातचीत के बाद गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा हॉट स्प्रिंग से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट गई थीं. हालांकि, देपसांग और डेमचोक में सेनाएं तैनात रहने से टकराव का खतरा बना हुआ था. लेकिन अब समझौते के बाद पांच जगहों से भारत और चीन की सेनाएं हट गई हैं और यहां पहले की तरह पेट्रोलिंग शुरू हो गई है.
देपसांग में पेट्रोलिंग करना भारत के लिहाज से इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि काराकोरम दर्रे के पास दौलत बेग ओल्डी पोस्ट से 30 किलोमीटर दूर है. पहाड़ियों के बीच ये सपाट इलाका भी है, जिसका इस्तेमाल सैन्य गतिविधि में किया जा सकता है. वहीं, डेमचोक सिंधु नदी के पास पड़ता है. अगर यहां पर चीन का नियंत्रण होता है तो इससे उत्तर भारत के राज्यों में पानी की आपूर्ति पर असर पड़ने का खतरा था.
क्या हैं ये पेट्रोलिंग पॉइंट्स?
1976 में भारत ने एलएसी पर 65 पेट्रोलिंग पॉइंट्स तय किए. पेट्रोलिंग पॉइंट 1 काराकोरम पास में है तो 65 चुमार में है. इन पेट्रोलिंग पॉइंट्स को आसानी से पहचाना जा सकता है, लेकिन इन्हें चिन्हित नहीं किया गया है. पेट्रोलिंग पॉइंट्स से भारत-चीन के बीच सीमा तय नहीं हुई है. लेकिन ये विवादित इलाके हैं. इन पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर दोनों देशों के सैनिक गश्त लगाते हैं. इसके लिए कुछ प्रोटोकॉल भी तय हैं.
कभी-कभी दोनों देशों के सैनिक एक ही समय में पेट्रोलिंग के लिए आ जाते हैं. ऐसे में प्रोटोकॉल ये है कि अगर एक पक्ष को दूसरे की पेट्रोलिंग टीम दिख जाए तो वो वहीं रुक जाएगा. ऐसी स्थिति में कुछ बोला नहीं जाता है. बल्कि बैनर दिखाया जाता है. भारत के बैनर में लिखा होता है- ‘आप भारत के इलाके में हैं, वापस जाओ.’ इसी तरह चीन के बैनर में लिखा होता है- ‘आप चीन के इलाके में हैं, वापस जाओ.’
हालिया सालों में देखने में आया है कि ऐसी स्थिति में दोनों देशों के सैनिक पीछे हटने की बजाय आपस में भिड़ जाते हैं. यही वजह है कि एलएसी पर कई बार दोनों ओर के सैनिकों के बीच झड़प और धक्का-मुक्की की खबरें आ रहीं हैं. लेकिन समझौते के बाद सीमा पर झड़प न होने की उम्मीद है.
भारत-चीन का सीमा विवाद
भारत और चीन 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करती है. इसे दुनिया की सबसे लंबी विवादित सीमा भी कहा जाता है. ये सीमा तीन सेक्टर्स- ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न में बांटा गया है. लद्दाख वेस्टर्न सेक्टर में आता है.
भारत और चीन के बीच कोई आधिकारिक सीमा नहीं है और इसकी वजह चीन ही है और इसी वजह से विवाद का कोई हल नहीं निकल पाता. चीन, अरुणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर दावा करता है और उसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है.
इसी तरह से 2 मार्च 1963 को हुए एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर की 5,180 वर्ग किमी जमीन चीन को दे दी थी. जबकि, लद्दाख के 38 हजार वर्ग किमी इलाके पर चीन का अवैध कब्जा पहले से ही है. कुल मिलाकर 43,180 वर्ग किमी जमीन पर अभी भी विवाद है.