Varanasi: केंद्र सरकार द्वारा पांच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने की घोषणा की गई है,जिसमें मराठी, पाली, प्राकृतिक, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है. पाली हमारे देश के प्राचीन भाषा है. और भगवान बुद्ध द्वारा इस भाषा का प्रयोगयो किया गया था. उनके द्वारा पाली भाषा में ही उपदेश दिए गए थे. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पाली एवं बौद्ध अध्ययन विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर सिद्धार्थ सिंह ने पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की है, उन्होंने कहा है, कि सरकार द्वारा यह एक बड़ा निर्णय लिया गया है. अब संस्कृत के बाद प्रकृत और पाली भाषा का भी प्रचार प्रसार होगा और लोगों की इसके प्रति रुचि बढ़ेगी.
उन्होंने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी इस भाषा को शास्त्रीया भाषा का दर्जा नहीं मिला था जो की दुख की बात थी. उन्होंने कहा कि पाली और प्राकृत भाषा के माध्यम से भारत पूरे विश्व से जुड़ा हुआ था.
कौन करता है सिफारिश
किसी भी भारतीय भाषा को क्लासिकल लैंग्वेज की लिस्ट में शामिल करने की सिफारिश केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की भाषा विज्ञान विशेषज्ञ समिति करती है. आपको बता दें, इस समिति में, केंद्रीय गृह मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय के प्रतिनिधियों के साथ ही चार से पांच भाषा विशेषज्ञ भी शामिल होते हैं. वहीं इस समिति की अध्यक्षता साहित्य अकादमी के अध्यक्ष करते हैं.
शास्त्रीय भाषा बनने का लाभ क्या है
जब किसी भारतीय भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिलती है तो उसके बाद प्राचीन साहित्यिक धरोहर जैसे ग्रंथों, कविताओं, नाटकों आदि का डिजिटलीकरण और संरक्षण किया जाता है. इसका फायदा ये होता है कि आने वाली पीढ़ियां उस धरोहर को समझ और सराह सकती हैं. इसके अलावा शास्त्रीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किए जाते हैं और यूनिवर्सिटी में इन भाषाओं के लिए पीठें बनाई जाती हैं. इसके अलावा शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार के लिए केंद्र सरकार की भी मदद मिलती है.