एक परिवार जोकि अपने ही घर में 36 दिन तक एक कैदी की तरह रहा. घर से कई किमी दूर बैठे अपराधियों ने जो चाहा, इस परिवार से करवाया. अपराधियों ने इस परिवार से 3.22 करोड़ रुपये की ठगी की. हैरानी की बात यह है कि इस परिवार के मुखिया कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि रिटायर्ड विंग कमांडर हैं, जिन्हें अपराध और अपराधियों से निपटने की ट्रेनिंग मिली हुई है. इसके बावजूद, ठगों ने उन्हें गिरफ्तारी का डर दिखाकर अपने जाल में फंसा लिया और उनकी जमा पूंजी ठगा ली. डिजीटल अरेस्ट का यह मामला उत्तर प्रदेश के नोएडा का है.
यह घटना नोएडा सेक्टर 25 में रहने वाले रिटायर्ड विंग कमांडर सुबीर मित्रा और उनके परिवार के साथ घटी. 18 जुलाई को सुबीर को एक फोन कॉल आया. कॉल करने वाला खुद को टेलीकॉम कंपनी का कर्मचारी बता रहा था. उसने दावा किया कि सुबीर के आधार कार्ड का दुरुपयोग किया गया है और उसी के जरिए अवैध गतिविधियां की जा रही हैं. कॉलर ने कहा कि उनके नाम पर लिए गए सिम से लोगों को अश्लील तस्वीरें, परेशान करने वाले संदेश और अवैध विज्ञापन भेजे जा रहे हैं. इसके बाद उन्हें कथित तौर पर वीडियो कॉल के जरिए मुंबई क्राइम ब्रांच के अधिकारियों से भी जोड़ा गया.
ठगों ने कैसे जाल में फंसाया?
ठगों ने बताया कि सुबीर के नाम पर एक बैंक खाता खोला गया है, जिसका इस्तेमाल जेट एयरवेज के संस्थापक नरेश गोयल से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में हुआ है. यहां तक कि उन्हें गिरफ्तारी वारंट दिखाया गया और तत्काल मुंबई आने का दबाव डाला गया. स्वाभाविक रूप से, यह सुनकर सुबीर घबरा गए.
इसके बाद ठगों ने अपनी चाल को आगे बढ़ाया. उन्होंने कहा कि अगर वह जांच में सहयोग करेंगे तो गिरफ्तारी से बच सकते हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें अपने परिवार के साथ लगातार निगरानी में रहना होगा और किसी बाहरी व्यक्ति को इस मामले की भनक नहीं लगनी चाहिए. इस तरह सुबीर, उनकी पत्नी केया और बेटी मलोबिका ठगों के मनोवैज्ञानिक जाल में फंस गए.
3.22 करोड़ रुपये अपराधियों के बताए खातों में ट्रांसफर किए
अगले दिन एक ऑनलाइन सुनवाई का नाटक रचा गया. सुबीर को कथित तौर पर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया. यहां उनसे कहा गया कि अगर वह क्लीनचिट चाहते हैं तो अपनी जमा पूंजी का सत्यापन कराना होगा. इसी बहाने उनसे रकम की मांग की गई. सुबीर ने अपने जीवन भर की पूंजी से छह किस्तों में 22 जुलाई से 22 अगस्त तक कुल 3.22 करोड़ रुपये अपराधियों के बताए खातों में ट्रांसफर कर दिए.
करीब एक महीने तक परिवार पूरी तरह उनके निर्देशों का पालन करता रहा. ठग लगातार उन्हें डर दिखाते रहे कि अगर वे सहयोग नहीं करेंगे तो गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई तय है. परिवार इतना मानसिक रूप से दबाव में आ गया कि उन्होंने किसी परिचित या पुलिस से संपर्क तक नहीं किया. ठगों ने 36 दिनों में जरूरी काम के लिए मात्र दो ही बार घर से बाहर जाने की इजाजत दी.
ठगों ने अचानक उनसे संपर्क तोड़ लिया
हालांकि जब रकम की मांग लगातार बढ़ती गई तो परिवार को शक हुआ. उन्होंने पैसे वापसी की बात की तो ठगों ने अचानक उनसे संपर्क तोड़ लिया. तब जाकर सुबीर और उनके परिवार को समझ आया कि वे संगठित साइबर ठगी के शिकार हो चुके हैं. इसके बाद उनकी बेटी मलोबिका ने तुरंत एनसीआरपी पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई और मामले की जानकारी साइबर क्राइम थाना पुलिस को दी. वर्तमान में यह मामला जांच के अधीन है.