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केंद्र की 24 संसदीय समितियों का गठन, राहुल गांधी, कंगना रनौत और रामगोपाल यादव समेत इन नेताओं को मिली जगह

केंद्र की मोदी सरकार ने 24 संसदीय समितियों का गठन कर दिया है. विपक्ष के नेता राहुल गांधी को रक्षा मामलों की समिति का सदस्य बनाया गया है. वहीं कांग्रेस सांसद शशि थरूर विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं, जबकि रामगोपाल यादव को स्वास्थ्य समिति का अध्यक्ष बनाया गया है. इनके अलावा बीजेपी सांसद राधा मोहन सिंह रक्षा मामलों की समिति के अध्यक्ष नियुक्त किया गया है.

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बीजेपी नेता राधा मोहन दास अग्रवाल गृह मामलों की संसदीय समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं. वित्त मामलों की संसदीय समिति की कमान बीजेपी सांसद भर्तृहरि महताब को मिली है. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को महिला, शिक्षा, युवा और खेल मामलों की संसदीय समिति की कमान मिली है. बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे संचार और आईटी समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं. कंगना रनौत इसी समिति की सदस्य बनाई गई हैं. राम की भूमिका निभा चुके अरुण गोविल विदेश मामलों की समिति के सदस्य बनाए गए हैं. बीजेपी नेता सी एम रमेश रेल मामलों की समिति के अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं.

यहां देखें सदस्यों की पूरी लिस्ट-

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संसद है तो समितियों की जरूरत क्यों?

इसकी जरूरत इसलिए क्योंकि संसद के पास बहुत सारा काम होता है. इन कामों को निपटाने के लिए समय भी कम होता है. इस कारण कोई काम या मामला संसद के पास आता है तो वो उस पर गहराई से विचार नहीं कर पाती. ऐसे में बहुत सारे कामों को समितियां निपटाती हैं, जिन्हें संसदीय समितियां कहा जाता है. संसदीय समितियों का गठन संसद ही करती है.

ये समितियां संसद के अध्यक्ष के निर्देश पर करती हैं और अपनी रिपोर्ट संसद या अध्यक्ष को सौंपती हैं. ये समितियां दो प्रकार की होती हैं. स्थायी समितियां और तदर्थ समितियां. स्थायी समितियों का कार्यकाल एक साल होता है और इनका काम लगातार जारी होता है. वित्तीय समितियां, विभागों से संबंधित समितियां और कुछ दूसरी तरह की समितियां स्थायी समितियां होती हैं.

वहीं, तदर्थ समितियों का गठन कुछ खास मामलों के लिए किया जाता है. जब इनका काम खत्म हो जाता है तो इन समितियों का अस्तित्व भी खत्म हो जाता है.

कितनी तरह की होती हैं स्थायी समितियां?

स्थायी समितियां मोटे तौर पर तीन तरह की होती हैं. इनमें वित्तीय समितियां, विभागों से संबंधित समितियां और दूसरी तरह की स्थायी समितियां होती हैं. वित्तीय समितियों में तीन समितियां होती हैं. पहली- प्राक्कलन समिति, दूसरी- लोक लेखा समिति और तीसरी- सरकारी उपक्रमों से संबंधित समिति. इनमें 22 से लेकर 30 सदस्य होते हैं. प्राक्कलन समिति में सिर्फ लोकसभा सदस्य होते हैं. जबकि, लोक लेखा और सरकारी उपक्रमों से संबंधित समितियों में लोकसभा के 15 और राज्यसभा के 7 सदस्य होते हैं. विभागों से संबधित समितियों की संख्या 24 है. इनमें केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय और विभाग आते हैं. हर समिति में 31 सदस्य होते हैं. इनमें 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा के सदस्य होते हैं. इनमें गृह, उद्योग, कृषि, रक्षा, विदेश मामलों, रेल, शहरी विकास, ग्रामीण विकास जैसे विभागों की समितियां होती हैं.

इनका काम क्या होता है?

संसद की स्थायी समितियों का काम सरकार के काम में हाथ बंटाना होता है. चूंकि, संसद के पास बहुत से काम होते हैं, लिहाजा ये समितियां उन कामों को देखती है और अपने सुझाव देती है. इन समितियों का काम सरकार के कामकाज पर भी निगरानी करना होता है. हर समिति का काम अलग-अलग होता है. जैसे- वित्तीय समितियों का काम होता है सरकार के खर्च पर निगरानी रखना. ये देखना कि सरकार ने समय रहते खर्च किया है या नहीं? या कहीं ऐसी जगह तो खर्च नहीं किया जिससे नुकसान हुआ हो? या फिर खर्च करने में कोई अनियमितता या लापरवाही तो नहीं बरती गई?

वित्तीय समितियां इन पर नजर रखती है और अगर कुछ गड़बड़ी मिलती है तो विभाग से इसकी जानकारी मांगी जाती है और पूछा जाता है कि गड़बड़ी रोकने के लिए क्या कार्रवाई की गई? संसदीय समितियों के पास ऐसी शक्तियां होती हैं कि वो किसी भी मामले से जुड़े दस्तावेज मांग सकती है, किसी को भी बुला सकती है और विशेषाधिकार हनन की रिपोर्ट दे सकती है और कार्रवाई कर सकती है. इसके अलावा संसद के सदस्यों से जुड़े विशेषाधिकार दुरुपयोग और सुविधाओं का दुरुपयोग करने के मामले भी सामने आते हैं. संसदीय समितियां इन मामलों की जांच करती है और कार्रवाई की सिफारिश करती है.

कौन बनता है इनका सदस्य?

संसद की स्थायी समितियों में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य होते हैं. एक सदस्य एक ही समिति में हो सकता है. मसलन, अगर कोई सदस्य गृह विभाग की समिति का सदस्य है, तो वो विदेश मामलों की समिति का सदस्य नहीं बन सकता.

समिति के सदस्य में से ही किसी एक को अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है. इतना ही नहीं, कोई मंत्री भी संसदीय समिति का सदस्य नहीं बन सकता. अगर कोई सदस्य समिति का सदस्य बनने के बाद मंत्री बन जाता है, तो उसे उस समिति की सदस्यता से इस्तीफा देना होता है. संसदीय समिति का सदस्य कभी भी अपना पद छोड़ सकता है.

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