सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के नए अध्यक्ष बनाए गए हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें नियुक्त किया. 1 जून 2024 को NHRC अध्यक्ष के तौर पर जस्टिस अरुण मिश्रा का कार्यकाल पूरा हुआ था तभी से यह पद खाली था. जिस पर सोमवार 23 दिसंबर को नियुक्ति हो गई.
इसके साथ ही राष्ट्रपति ने झारखंड हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस बिद्युत रंजन सारंगी और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो को NHRC का सदस्य नियुक्त किया है. NHRC को नियंत्रित करने वाले कानून के मुताबिक, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अध्यक्ष का चयन करने वाली समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं. समिति में लोकसभा अध्यक्ष, गृह मंत्री, दोनों सदनों के विपक्ष के नेता और राज्यसभा के उपसभापति सदस्य होते हैं.
2023 मेंसेवानिवृत्त हुए थे रामसुब्रमण्यम
जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम पिछले साल जून 2023 में सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. NHRC का अध्यक्ष या तो भारत के पूर्व चीफ जस्टिस या सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज होते हैं. ऐसे अब इस पद पर वी. रामसुब्रमण्यम को नियुक्त कर दिया गया है. अरुण मिश्रा के पद छोड़ने के बाद NHRC की सदस्य विजया भारती सयानी को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया था. इससे पहले यह पद पूर्व मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू के पास था, जिन्हें 2016 में नियुक्त किया गया था.
4 साल तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे
जस्टिस रामासुब्रमण्यम सितंबर 2019 से लेकर जून 2023 के बीच करीब 4 साल तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे. उससे पहले वो हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे. इसके अलावा वो मद्रास और तेलंगाना हाई कोर्ट में भी जज रहे. सुप्रीम कोर्ट में पने कार्यकाल के दौरान जस्टिस रामासुब्रमण्यम ने कई बड़े मामलों की सुनवाई की. वो साल 2016 में नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली बेंच के सदस्य थे.
पिछले साल मार्च में उन्होंने फैसला दिया था कि दूसरे नागरिकों की तरह मंत्रियों को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. उन्होंने कहा था कि मंत्रियों के निजी बयानों को सरकार का बयान कह कर उनके बोलने पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता. इसके ही जस्टिस रामासुब्रमण्यम तत्कालीन चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े और जस्टिस ए एस बोपन्ना के साथ उस बेंच में शामिल थे, जिसने 2021 में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्रीय गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय को नोटिस जारी किया था.