पाकिस्तान के रावलपिंडी की एक अदालत ने ईशनिंदा के आरोप में चार लोगों को मौत की सजा सुनाई है. पाकिस्तान ईशनिंदा कानून आयोग (LCBP) के एक वकील ने सोमवार को इसकी पुष्टि की. चारों को पैगंबर मुहम्मद, उनके साथियों और उनकी पत्नियों के अपमान का दोषी ठहराया गया. शनिवार को एक पाकिस्तानी अधिकारी ने बताया कि चारों ने अलग-अलग आईडी से फेसबुक पर ईशनिंदक कंटेट पोस्ट किया था.
वहीं, एलसीबीपी के वकील राव अब्दुर रहीम ने कहा, ‘उन्हें ऑनलाइन ईशनिंदक कंटेट पोस्ट करने के लिए शुक्रवार को मौत की सजा सुनाई गई.’ वकील ने कहा कि कथित अपराध में इस्तेमाल किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से मिले फॉरेंसिक सबूत भी बताते हैं कि चारों ने ईशनिंदा किया है.
ईशनिंदा के कई मामलों में दोषसिद्धि के बावजूद पाकिस्तान ने ईशनिंदा के लिए कभी भी किसी को मृत्युदंड नहीं दिया है. अगर कोर्ट किसी को मृत्युदंड देता भी है तो उसके खिलाफ अपील की जाती है जिसके बाद सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाता है. दोषी व्यक्तियों के सहायता समूह के एक सदस्य ने पाकिस्तान की स्थानीय मीडिया को बताया कि चारों के परिवार इस फैसले को चुनौती देंगे.
पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति इस्लाम या धार्मिक प्रतीकों के अपमान का दोषी पाया जाता है तो उसे मौत की सजा दी जा सकती है. ईशनिंदा के कई मामलों में आरोपी की मॉब लिंचिंग कर दी जाती है.
क्या है पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून?
पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून कहता है कि पवित्र पैगंबर मुहम्मद के संबंध में कोई भी अपमानजनक टिप्पणी, चाहे मौखिक या लिखित रूप से, या फोटो के जरिए या किसी भी आरोप, संकेत या आक्षेप से, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करने पर मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माना भी देना होगा.
पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून का कुछ हिस्सा ब्रिटिश शासकों से विरासत में मिला था. 1970 के दशक तक पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून का बेहद कम इस्तेमाल किया गया था. लेकिन 1980 के दशक में जनरल मुहम्मद जिया उल-हक की सैन्य तानाशाही के दौरान पाकिस्तान का इस्लामीकरण बढ़ा और ईशनिंदा कानून को और अधिक मजबूत किया गया था.
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने ईशनिंदा कानून का समर्थन किया था और 2021 में मुस्लिम बहुल देशों से कहा था कि वो एकजुट होकर पश्चिमी सरकारों पर दबाव बनाएं ताकि वो पैगंबर मोहम्मद के अपमान को अपराध घोषित करें.
ईशनिंदा के दोषियों की मॉब लिंचिंग, कई जेलों में बंद
पाकिस्तान की स्थानीय मीडिया और शोधकर्ताओं के मुताबिक, 1990 से लेकर 2023 तक भीड़ ने तक कम से कम ईशनिंदा के 85 संदिग्धों की हत्या कर दी. अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग के अनुसार, 2023 तक, ईशनिंदा के आरोप में पाकिस्तान में कम से कम 53 लोग हिरासत में हैं.
पाकिस्तान की निचली अदालतें ईशनिंदा के दोषी को मौत की सजा सुनाती हैं. हालांकि, उच्च अदालतों में अपील करने पर अधिकांश दोषियों के दोष को खारिज कर दिया जाता है. लेकिन पाकिस्तान में अकसर ऐसा हुआ है कि मामले की निगरानी करने वाली भीड़ ने मुकदमा शुरू होने से पहले ही दर्जनों लोगों की हत्या कर दी.
मारे गए लोगों में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोग, नेता, छात्र, मौलवी और मानसिक रूप से बीमार लोग शामिल हैं. भीड़ ने उन्हें जलाकर मार दिया या फिर सार्वजनिक तौर पर फांसी पर लटका दिया गया. कई मामलों में आरोपियों को अदालत में ही गोली मार गई, सड़क के किनारे काटकर उनकी हत्या कर दी गईं.
ईशनिंदा के मामलों की सुनवाई करने वाले जजों ने बताया है कि उन पर सबूतों की परवाह किए बिना आरोपी को दोषी करार देने का दबाव होता है. ऐसा न करने पर उन्हें अपनी जान का खतरा बना रहता है.
पाकिस्तान में यह देखा गया है कि जब ईशनिंदा विरोधी हिंसा भड़कती है तो स्थानीय पुलिस एक तरफ खड़े होकर भीड़ को हमला करने देती है. पुलिस वालों को भी डर होता है कि अगर वो भीड़ को रोकते हैं तो उन्हें भी ईशनिंदा करने वाला बताया जा सकता है.
ईशनिंदा कानून पर क्यों नहीं होती मुख्यधारा में बहस?
पाकिस्तान की मुख्यधारा में ईशनिंदा कानून पर बहस लगभग असंभव है क्योंकि लोगों को जान से मारे जाने का डर होता है. 2011 में पाकिस्तान के गवर्नर सलमान तासीर ने ईशनिंदा कानून में सुधार की मांग की थी. इसे लेकर उनके बॉडीगार्ड ने ही गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी. पाकिस्तान की राजनीति में विरोधियों पर दबाव बनाने के लिए अकसर झूठे ईशनिंदा के आरोप लगाए जाते हैं. इसमें शीर्ष नेता भी शामिल हैं.
गवर्नर सलमान तासीर के हत्यारे की कई लोगों ने सराहना की थी और इस हत्या के बाद तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) का उदय हुआ. यह एक दक्षिणपंथी पार्टी है जिसे लोगों को भारी समर्थन हासिल है. पार्टी ईशनिंदा करने वालों का सिर कलम करने का आह्वान करती है.
टीएलपी के उदय के साथ पाकिस्तान में वैचारिक आधार पर दर्ज किए गए ईशनिंदा के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. इस समूह को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है, लेकिन ईशनिंदा के आरोप में हो रही हिंसा में इसकी संलिप्तता सामने आती रही है.
निशाने पर अल्पसंख्यक
मानवाधिकार समूहों के अनुसार, पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोपी अधिकांश लोग मुसलमान हैं. लेकिन लेकिन धार्मिक अल्पसंख्यकों को खासकर, ईशनिंदा के गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है.
पाकिस्तान की 25 करोड़ आबादी में लगभग 1.3 प्रतिशत ईसाई हैं और ये अकसर निशाने पर रहते हैं. हाल के सालों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें अल्पसंख्यकों को लाहौर, गोजरा, जरानवाला और राजधानी इस्लामाबाद के इलाकों में ईशनिंदा के आरोपों के बाद आग लगा दी गई या उन पर हमला किया गया.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि ईशनिंदा मामले में दोषसिद्धि गवाहों के बयान पर निर्भर करती है और गवाह अकसर बदला लेने के मकसद से बयान देकर दोषसिद्धि में मदद करते हैं.