महाराष्ट्र के ठाणे की एक विशेष अदालत ने साल 2021 में तीन साल की बच्ची के गाल पर चुंबन करने और उसके साथ छेड़छाड़ करने के एक मामले में एक आरोपी को बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि उसके इस कृत्य को आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता क्योंकि बच्चों से प्यार करने वाला कोई भी व्यक्ति स्वाभाविक प्रवृत्ति से ऐसा कर सकता है.
अदलत ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए कहा कि उसकी ओर से स्पष्ट आपराधिक इरादे का अभाव था और अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा.
22 अगस्त को पारित एक आदेश में, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही विशेष न्यायाधीश रूबी यू मालवंकर ने 54 वर्षीय ओमप्रकाश रामबचन गिरि को बरी कर दिया, जिन पर 9 जनवरी, 2021 को दो अलग-अलग मौकों पर नाबालिग लड़की को गले लगाने और चूमने का आरोप था.
पीटीआई के मुताबिक, पुलिस ने उनके खिलाफ POCSO अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 (महिला की गरिमा भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल क प्रयोग) के तहत मामला दर्ज किया था.
अदालत ने कहा, ‘जिस कथित कृत्य के लिए आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाया गया था, उसे ऐसे कृत्य की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता जिसे सभी मामलों में अनुचित स्पर्श या बुरा स्पर्श कहा जा सके. संबंधित समय में पीड़िता की उम्र को देखते हुए, कोई भी व्यक्ति जो स्वाभाविक रूप से बच्चों का शौकीन है, उसे गोद में उठा सकता है, उसके गाल पर प्यार से चुंबन दे सकता है, जो आमतौर पर समाज में होता है.’
अदालत ने आगे कहा, ‘हमारे जैसे देश में, इस तरह का व्यवहार – जब तक कि वह बच्चे को चोट न पहुंचा रहा हो या किसी अजनबी द्वारा बुरी नीयत से न किया गया हो – वास्तव में आपत्तिजनक या अपमानजनक नहीं माना जाता. इसलिए, इस मामले में भी, चूंकि आरोपी बिल्कुल अजनबी नहीं था क्योंकि वह उसी इलाके का निवासी था, इसलिए इसे पूरी तरह से आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता.’
अदालत ने पाया कि कथित घटनाओं के दौरान बच्चा दर्द से नहीं रोया. न्यायाधीश ने निष्कर्ष निकाला, ‘ऐसी सभी परिस्थितियों में पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाने का तत्व लगभग नदारद है और स्नेहपूर्ण व्यवहार को उचित संदेह से परे आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता.’
इन निष्कर्षों के आधार पर, अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ दिया, जिसके परिणामस्वरूप उसे बरी कर दिया गया. आईपीसी की धारा 354 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 (यौन कृत्य) के तहत आरोप साबित नहीं हुए, और गिरी को सभी अपराधों से बरी कर दिया गया.
अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष, पोक्सो अधिनियम के तहत पीड़िता को बच्ची साबित करने के लिए जन्म प्रमाण पत्र या कोई भी दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा. हालांकि मां ने गवाही दी कि उसकी बेटी तीन साल की थी, लेकिन उसकी मौखिक गवाही साक्ष्यों द्वारा समर्थित नहीं थी.
न्यायाधीश ने गवाहों की गवाही में एक गायब कड़ी की ओर इशारा किया. मां ने कथित घटना को स्वयं नहीं देखा था, बल्कि एक 12 वर्षीय लड़की और एक अन्य बच्चे से मिली जानकारी पर भरो
सा किया था, ऐसा कहा गया.