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‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब अपमान करने की आजादी नहीं…’, सुनवाई के दौरान SC की अहम टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट में ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ और सोशल मीडिया पोस्ट पर FIR को लेकर दायर याचिकाओं की बाढ़ के बीच अदालत ने नागरिकों में संयम की कमी पर अफसोस जताया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोग अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल तो कर रहे हैं, लेकिन भाईचारा और सम्मान सुनिश्चित करने के मौलिक कर्तव्यों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं.

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तीन याचिकाओं की सुप्रीम सुनवाई

कोर्ट की तीन अलग-अलग बेंच ने पिछले दो दिन में सोशल मीडिया पर पोस्ट और वीडियो की भाषा और कंटेंट से संबंधित मामलों की सुनवाई की. एक कार्टूनिस्ट, हास्य कलाकारों के एक ग्रुप और एक आम नागरिक की तरफ से दायर याचिका, जिन पर उनके ओर से कही गई बातों के कारण कई एफआईआर दर्ज की गई हैं.

जजों ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ अपमान करने की स्वतंत्रता नहीं हो सकता और सोशल मीडिया पर विभाजनकारी प्रवृत्ति वाले पोस्ट पर लगाम लगाई जानी चाहिए. मंगलवार को कोर्ट की दो अलग-अलग बेंच ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विवादास्पद मुद्दों पर सुनवाई की. एक बेंच में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची थे, और दूसरी बेंच में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार थे.

कंटेंट को लेकर बनेंगी गाइडलाइंस

यूट्यूब शो ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ पर अश्लील और आहत करने वाले कंटेंट पर हंगामे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सोशल मीडिया पर ‘गंदी और विकृत’ भाषा को कंट्रोल करने के लिए गाइडलाइंस और नियम बनाने पर विचार करने को कहा था. मंगलवार को अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमानी ने अदालत को बताया कि सरकार को ऐसे दिशानिर्देश तैयार करने के लिए समय की जरूरत होगी.

बेंच ने सरकार से कहा कि वह इस मुद्दे पर स्टेकहोल्डर्स के साथ खुली बहस कराए. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘गाइडलाइंस संवैधानिक सिद्धांतों के मुताबिक होनी चाहिए, जिसमें स्वतंत्रता और अधिकारों व कर्तव्यों के बीच संतुलन स्थापित हो. हम ऐसी गाइडलाइंस पर खुली बहस करेंगे, सभी स्टेकहोल्डर्स को भी आगे आकर अपने विचार रखने चाहिए.’

‘कुछ लोग हीरो बनना चाहते हैं’

जस्टिस धूलिया और जस्टिस कुमार ने मंगलवार को पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनकर पोस्ट करने वाले कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय की याचिका पर विचार करते हुए सोशल मीडिया पोस्ट पर इस्तेमाल की जाने वाली ‘अत्यधिक आपत्तिजनक भाषा’ की भी आलोचना की. बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘सभी तरह के पोस्ट किए जा रहे हैं, वे जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं उसे देखें, हद है! लोग किसी को कुछ भी कह देते हैं, कुछ लोग सोशल मीडिया पर ऐसी बातें कहकर हीरो बनना चाहते हैं.’

इस बेंच ने यह भी सुझाव दिया कि सोशल मीडिया पर इस्तेमाल की जाने वाली भाषा का रेगुलेशन होना चाहिए. यह सुझाव तब आया जब मालवीय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा कि लोग कभी-कभी सोशल मीडिया पर उग्र हो जाते हैं और ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं जिसकी इजाजत न्यूजपेपर्स या टीवी चैनलों जैसे पारंपरिक मीडिया पर नहीं दी जाती. कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘हमें इस बारे में कुछ करना होगा.’

नागरिकों के लिए सेल्फ रेगुलेशन जरूरी

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने सोमवार को सोशल मीडिया पोस्ट पर नागरिकों की तरफ से सेल्फ रेगुलेशन की जरूरत पर भी टिप्पणी की. यह टिप्पणी असम निवासी वज़ाहत खान की ओर से विभिन्न राज्यों में ‘हेट स्पीच’ के लिए दर्ज की गई कई FIR के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई.

जस्टिस नागरत्ना ने सोमवार को कहा, ‘लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कीमत के बारे में पता होना चाहिए, कोई भी नहीं चाहता कि राज्य दखल करे और कार्रवाई करे.’ उन्होंने नागरिकों को ‘खुद को संयमित’ रखने के लिए प्रोत्साहित किया. नागरत्ना ने कहा, ‘कंटेंट का रेगुलेशन होना चाहिए, नागरिकों को इस तरह की अभद्र भाषा को शेयर करने, पसंद करने से खुद को रोकना चाहिए.’

जस्टिस विश्वनाथन ने यह भी सवाल किया कि लोग इस तरह के पोस्ट को नफरती और गलत मानने के बजाय ऐसे कंटेंट को शेयर क्यों कर रहे हैं. बेंच ने सोमवार को कहा था, ‘हम सेंसरशिप पर बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन भाईचारे और सम्मान के हित में कुछ किया जाना चाहिए.’

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