“टाट से सिंहासन तक” – अयोध्या में रामराज की पुनः वापसी!

अयोध्या : राम नगरी अयोध्या एक बार फिर ऐतिहासिक क्षणों की साक्षी बनी.श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल पर राम दरबार की भव्य और दिव्य मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा 5 जून को संपन्न हुई। खास बात यह है कि ये मूर्तियां 40 साल पुराने संगमरमर के दुर्लभ पत्थरों से तैयार की गई हैं.इन अद्वितीय मूर्तियों को मूर्तिकार सत्यनारायण पांडेय ने अपनी तपस्या और भक्ति से गढ़ा है.

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हर रोज़ की भक्ति से जन्मी आस्था की आकृति

मूर्तिकार सत्यनारायण पांडेय ने मूर्तियों को तराशने से पहले हर दिन दो घंटे प्रभु श्रीराम की परिक्रमा की और हनुमान चालीसा का पाठ किया। इसके बाद ही वे मूर्तियों पर काम करते थे। पूरे आठ महीनों तक यह दिनचर्या चली — दो घंटे पूजा, दस घंटे शिल्प। उन्होंने बताया, “मेरा उद्देश्य केवल मूर्ति बनाना नहीं था, मैं चाहता था कि मेरी श्वासों में भी राम का नाम गूंजे.”

सात फुट का भव्य राम दरबार, संगमरमर में जीवंत हुए त्रेतायुग के पात्र

सत्यनारायण पांडेय ने बताया कि राम दरबार की मूर्तियां सिंहासन सहित कुल सात फुट ऊंची हैं। हनुमान और भरत की मूर्तियां बैठी मुद्रा में बनाई गई हैं, जिनकी ऊंचाई ढाई फीट है। लक्ष्मण और शत्रुघ्न की मूर्तियां खड़ी मुद्रा में हैं और ये तीन-तीन फीट ऊंची हैं.

राम दरबार की मूर्तियों को बनाते समय केवल सौंदर्य ही नहीं, बल्कि मौसम की मार, नमी, घर्षण और तापमान की सहनशक्ति जैसे वैज्ञानिक पहलुओं का भी ध्यान रखा गया. इस दृष्टि से विभिन्न प्रयोगशालाओं में पत्थरों की गुणवत्ता की जांच करवाई गई और विशेषज्ञों की हरी झंडी मिलने के बाद ही निर्माण प्रारंभ हुआ.

सीएम योगी ने किया नेत्रोन्मीलन, रामराज की वापसी का प्रतीक बनेगा यह दरबार

प्राण प्रतिष्ठा समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विशेष भूमिका निभाई.उन्होंने राम दरबार की मूर्ति से आवरण हटाए और ‘नेत्रोन्मीलन’ की पवित्र प्रक्रिया पूर्ण की। 4 जून को देश की 21 पवित्र नदियों के जल से भगवान श्रीराम का अभिषेक भी किया गया.

‘टाट से सिंहासन तक’ – सीएम योगी ने लौटाया गौरव

सरयू महोत्सव के आयोजक और आंजनेय सेवा संस्थान के अध्यक्ष शशिकांत दास ने भावुक स्वर में कहा, “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वह कार्य किया है जो युगों-युगों तक याद किया जाएगा। उन्होंने प्रभु राम को टाट के पटरे से निकालकर भव्य सिंहासन पर विराजमान कराया है। जैसे त्रेतायुग में वशिष्ठ जी ने राम का राजतिलक किया था, ठीक वैसे ही 5 जून को योगी महाराज प्रभु राम को फिर से प्रतिष्ठित किया.”

कला, भक्ति और विज्ञान का संगम बनी ये मूर्तियां

राम दरबार की मूर्तियां केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि यह एक ऐसी कारीगरी है जिसमें विज्ञान, अध्यात्म और संस्कृति का समागम हुआ है। मूर्तिकार ने जिन शिलाओं का चयन किया, वे 40 साल पुराने संगमरमर के पत्थर हैं, जो अब मिलना भी दुर्लभ हो गया है। पत्थर की ताकत, उसकी नमी सोखने की क्षमता, तापमान सहनशक्ति—सभी बातों की परख के बाद ही इसे उपयोग में लाया गया.

अंतर्मन से उकेरी गई प्रभु की छवि

सत्यनारायण पांडेय ने न केवल अपने हाथों से, बल्कि अपने मन और आत्मा से भी मूर्तियां तराशी हैं। उन्होंने कहा, “मैंने जो भी रेखाएं खींचीं, उनमें राम नाम ही था। मेरे लिए ये पत्थर नहीं, प्रभु राम के स्वरूप हैं।”

अयोध्या फिर बनी आस्था की राजधानी

राम मंदिर निर्माण के साथ ही अयोध्या एक बार फिर रामराज की ओर लौट रही है। प्राण प्रतिष्ठा का यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक पुनर्जागरण है। जब सिंहासन पर राम दरबार विराजमान हुआ, तो न केवल मंदिर का प्रथम तल, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं के हृदय भी उल्लास से भर गये।, यह कहा जा सकता है कि राम दरबार की इन मूर्तियों ने केवल संगमरमर को नहीं, बल्कि युगों की आस्था को भी आकार दिया है। यह न केवल मूर्तिकार की तपस्या है, बल्कि समस्त सनातन समाज की श्रद्धा और संकल्प का मूर्त रूप है.

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