अगर आप कहीं यात्रा करने की तैयारी कर रहे हैं और हवाई यात्रा के लिए ऑनलाइन टिकट बुक करने जा रहे हैं तो यह जान लें कि एयर फेयर पता करने की कोशिशों के दौरान ही किराया लगातार बढ़ जाता है. दरअसल यह खेल एयरलाइंस कंपनियों का है जो एल्गोरिदम के जरिए इसे अंजाम देती हैं. यह सीधे तौर पर नियमों का उल्लंघन है, जो सरकार उपभोक्ताओं की जेब काटने वाले एल्गोरिदम,डार्क पैटर्न और ड्रिप प्राइसिंग पर शिकंजा कसने के लिए पिछले साल लागू कर चुकी है. इसके बावजूद एयर टिकट ऑनलाइन बिक्री करने वाली एयरलाइंस कंपनियों समेत तमाम मध्यस्थ सेवा प्रदाता वेबसाइट ग्राहकों को तकनीक का उपयोग कर सरेआम ठग रही हैं.
जल्द ही त्यौहारी सीजन शुरू होने वाला है, जाहिर है ऐसे में हवाई किराए में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है, लेकिन मसला ये है कि यह बढ़ोत्तरी मांग में बढ़ोत्तरी और आपूर्ति में कमी से कहीं परे है, क्योंकि ऑनलाइन एयर टिकट बुकिंग में एल्गोरिदम का प्रयोग किया जा रहा है. यह आपकी जरूरत को समझते ही टिकट की कीमतों को ऊपर चढ़ाने लगता है.
थोड़ी ही देर में डार्क पैटर्न और ड्रिप प्राइसिंग के जरिए एयर फेयर को दोगुना कीमत तक पहुंचा दिया जाता है और ग्राहक बेचारा, मरता क्या ना करता बढ़ी हुई कीमतों में टिकट बुक करता है. विशेषज्ञों के मुताबिक एयरलाइंस कंपनियां का एल्गोरिदम मांग और आपूर्ति के सिद्धांत में तकनीक के जरिए कीमतों को चढ़ाती हैं, जो उचित नहीं है.
बार-बार चेक करने पर बढ़ जाता है किराया
एयर फेयर के मसले पर लोकल सर्वे ने एक सर्वेक्षण किया, जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक 72 प्रतिशत लोगों ने माना है कि अगर वो बार-बार फेयर चेक करते है तो उन्हें किराया बढा हुआ मिलता है. कई बार मोबाइल से कुकीज हटाने से या फिर किसी दूसरे मोबाइल से खोलने से किराया पहले जैसा सामान्य हो जाता है, लेकिन जब अगर एयरलाइंस के सर्वर यह महसूस करता है कि किसी खास फ्लाइट की सर्चिंग ज्यादा हो रही है, तो किराया स्वतः ही बढ़ जाता है. ऐेंसे में एयरलाइंस कंपनियों के एल्गोरिदम से बचना आसान नहीं है.
कई बार एयरलाइन कंपनियां यह भी दिखाती है कि इस फ्लाइट में मात्र 1-2 सीट बची है. यह दर्शाया जाता है कि अगर आप इसे अभी बुक नहीं करेंगे तो यह आगे चलकर और भी महंगी हो सकती है. साथ ही यात्रा करने वालों के कई बार छिपे हुए चार्ज भी थोप दिए जाते है.
जानें क्या होता है डार्क पैटर्न
हम आपको बताते हैं कि क्या होता है डार्क पैटर्न और आखिर क्यों उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने इस पर शिकंजा कसा था. दरअसल डार्क पैटर्न एक ऐसा तरीका है जिससे ग्राहकों को गुमराह किया जाता है. उदाहरण के तौर पर फ्लिपकार्ट और अमेजन पर जब आप कोई उत्पाद खोजते हैं तो उसकी कीमत कुछ और दिखती है, लेकिन जैसे ही आप अपने अकाउंट को लॉगिन करते हैं तो कीमत अलग हो जाती है. दूसरा उदाहरण देखें तो ई-कॉमर्स कंपनियां दावा करती हैं कि फलां उत्पाद पर 70 प्रतिशत की छूट मिल रही है. यह छूट उत्पाद के एमआरपी के हिसाब से होता है, जबकि हकीकत यह है कि कोई भी इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट एमआरपी पर बिकता ही नहीं है.
कैसे करती हैं फ्लाइट कंपनियां डार्क पैटर्न का इस्तेमाल?
गौर करिएगा कि कई बार जब आप फ्लाइट टिकट सर्च करते हैं तो आपको सभी सीटें फुल दिखती हैं, जबकि हकीकत में ऐसा होता नहीं है. सीटें खाली रहती हैं, लेकिन ग्राहकों को दिखाया जाता है कि सीटें तेजी से फुल हो रही हैं. ऐसे में ग्राहक तुरंत टिकट बुक करता है और अधिक कीमत पर भी देता है. यह भी डार्क पैटर्न का ही एक हिस्सा है. डार्क पैटर्न और ड्रिप प्राइसिंग के लिए एल्गोरिदम का इस्तेमाल किया जाता है.
एल्गोरिदम क्या है?
कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में एल्गोरिदम चरणों की एक क्रमबद्ध सुपरिभाषित कड़ी है, जिसका प्रयोग आम तौर किसी प्रोग्राम की समस्या को हल करने या विशेष प्रायोजन के लिए किया जा सकता है. एल्गोरिदम अस्थायी डेटा को सहेज सकता है जिसका उपयोग वह अपने चरणों के दौरान कर सकता है. यह काम करने के लिए एक इनपुट डेटा भी ले सकता है. एल्गोरिदम को निर्देशों के एक सेट के रूप में देखा जा सकता है.