ग्वालियर। डबरा तहसील के देवगढ़ किले में पहले स्थापित दो तोपों को गढ़रियार राजवंश परिवार सेना से वापस मांग रहा है। परिवार की ओर से सेना के एडमिनिस्ट्रेटिव कमांडेंट को लिखे गए शिकायती पत्र में आरोप लगाया गया है कि 2013 में किले की दीवार तोड़कर दो तोपें—वज्र और गढ़काली—ले जाई गईं। राजवंश के अनुसार यह कार्रवाई उनके अपमान के समान है और परंपरा को बाधित कर रही है।
इन तोपों को वर्तमान में ग्वालियर के सेना हेडक्वार्टर के बिग्रेड कार्यालय के सामने और प्रवेश द्वार के पास एमएस चौराहे पर रखा गया है। राजवंश का कहना है कि हर साल विजयादशमी और दीपावली पर परिवार के लोग इन तोपों की पूजा अर्चना के लिए आते हैं। सेना के पास रखे जाने के कारण अब उन्हें पूजा करने के लिए हेडक्वार्टर तक आना पड़ता है, जिससे उनकी पारंपरिक प्रथा बाधित हो रही है।
2014 में भी इस मामले को लेकर सेना को कलेक्टर द्वारा पत्र लिखा गया था, लेकिन अभी तक तोपों को किले पर वापस नहीं किया गया। राजवंश का तर्क है कि ऐतिहासिक किले से ऐसी बहुमूल्य धरोहर को हटाने का संवैधानिक अधिकार किसी को नहीं है। पत्र में कहा गया है कि दोनों तोपें उनके मूल स्थान पथरीगढ़ देवगढ़ किले पर वापस रखी जाएं।
शिकायती पत्र में लिखा गया है कि परंपरा के अनुसार तोपों की पूजा अर्चना उनके मूल स्थान पर ही होनी चाहिए। राजवंश परिवार का कहना है कि सेना द्वारा तोपों को वापस नहीं किया जाना परंपरा और धार्मिक भावनाओं के लिए हानिकारक है। इसके चलते परिवार के लोग लगातार इस विषय को प्रशासन और सेना के समक्ष उठाते रहे हैं।
राजवंशीय क्षत्रिय सीताराम सिंहदेव, महाराजा रतनगढ़ नरेश वंशज और प्रबंध संचालक श्री क्षत्रधारी आश्रम रतनगढ़ धाम की ओर से यह पत्र सेना को भेजा गया है। परिवार की मांग है कि तोपों को उनके ऐतिहासिक स्थान पर लौटाया जाए और इस प्रकार उनकी धार्मिक व सांस्कृतिक परंपरा को पुनः स्थापित किया जा सके।