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विदेश मंत्री जयशंकर की टिप्पणी से ग्लोबल टाइम्स को लगी मिर्ची, बोला, ‘अमेरिका की देखा देखी…’

शनिवार को विदेश मंत्री एस जसशंकर ने कहा कि भारत में चीनी निवेश की कड़ी जांच होनी चाहिए. ईटी वर्ल्ड लीडर्स फोरम में विदेश मंत्री ने कहा कि कई देश सुरक्षा कारणों से चीनी निवेश की जांच करते हैं और भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए. विदेश मंत्री के इस बयान से चीन की सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स को मिर्ची लग गई है. अखबार ने लिखा है कि चीनी निवेश की जांच करना भारत के अपने हितों को ही नुकसान पहुंचाएगा और उसका मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पिछड़ जाएगा.

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चीनी अखबार ने लिखा, ‘चीनी निवेश की जांच से भारत के खुद के विकास को लिए दुविधा पैदा हो सकती है क्योंकि इसमें राजनीतिक और आर्थिक विचार आपस में जुड़े हुए हैं. भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के बीच एक संतुलन बनाना अनिवार्य है. दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास को बढ़ाए बिना, भारत चीनी निवेश को बढ़ा नहीं पाएगा जो कि उसके मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की प्रगति के लिए अहम है.’

‘पश्चिमी देशों की देखादेखी…’

विदेश मंत्री जयशंकर के बयान का जिक्र करते हुए ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि उनकी टिप्पणी, कुछ हद तक, भू-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर चीन के प्रति भारत के रवैये को दिखाती है और यही एक अहम कारण है कि भारत चीनी निवेश को लेकर अविश्वास रखता है.

पश्चिमी देशों पर अपना गुस्सा दिखाते हुए ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, ‘भारत का इस तरह का रवैया पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका से प्रेरित है जो चीन को सुरक्षा के खतरे के रूप में देखता है और चीन से अलग होने पर जोर देता है. भारत पश्चिमी देशों की देखादेखी आर्थिक मुद्दों में सुरक्षा की अवधारणा पर जरूरत से ज्यादा जोर दे रहा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि चीन के प्रति भारत की निवेश नीति एक सुरक्षा दुविधा में फंस गई है.’

‘निवेश निवेश पर प्रतिबंध भारत के मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग को…’

ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि भारत को अपने मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए चीनी निवेश की जरूरत भी है और वो चीनी निवेश से सावधान भी हो रहा है. ये दोहरी चिंता न केवल उसके मैन्यूफैक्चरिंग विकास में बाधा डालेंगी बल्कि देश में विभाजन भी बढ़ेगा.ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा, ‘भारत की कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, चीनी बिजनेस पर प्रतिबंध के कारण भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को नुकसान हुआ है.’

चीन का सरकारी अखबार लिखता है कि यह समझने वाली बात है कि विदेशी निवेश की समीक्षा के लिए हर देश की अपनी वैध और उचित प्रणाली होती है. लेकिन जब से भारत सरकार ने 2020 में भारत के साथ बॉर्डर शेयर करने वाले देशों के साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर प्रतिबंध लागू किया है, चीनी निवेश पर इसकी सख्ती विशेष रूप से बढ़ गई है.

प्रतिबंधों के बावजूद भारत-चीन व्यापार में बढ़ोतरी

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि चीन पर आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंधों के बावजूद भारत-चीन का व्यापार बढ़ा है. वित्त वर्ष 2013-24 में चीन एक बार फिर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, द्विपक्षीय व्यापार 118.4 अरब डॉलर पहुंच गया है. भारत स्थित ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के आंकड़े दिखाते हैं कि चीन से खरीदे गए भारत के 98.5% सामान उद्योगों से जुड़े प्रोडक्ट्स थे जो कि भारत के कुछ औद्योगिक आयात का 30 फीसद हिस्सा है.

चीनी अखबार लिखता है कि ये व्यापारिक आंकड़े बताते हैं कि भारत और चीन के बीच इंडस्ट्रियल चेन एक-दूसरे पर निर्भर है जो कि सहयोग का बड़ा अवसर प्रदान करता है. अखबार ने लिखा कि अगर भारत अपने मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को तेजी से आगे बढ़ाना चाहता है तो उसे चीनी निवेश पर प्रतिबंध ढीले करने होंगे और व्यापार के लिए अच्छा माहौल तैयार करना होगा.

ग्लोबल टाइम्स की भारत को सलाह

ग्लोबल टाइम्स ने लेख के अंत में लिखा कि भारत और चीन, खासकर भारत को चीनी निवेश पर भरोसा करना होगा. आर्थिक और व्यापारिक साझेदारी को बढ़ावा देकर इस भरोसे को बढ़ाया जा सकता है. यही बात वास्तव में आर्थिक और राजनीतिक रूप से मायने रखती है.

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