उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहराइच की तहसील मिहींपुरवा (मोतीपुर) के मुख्य भवन के उद्घाटन कार्यक्रम शिरकत की. इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत में बहराइच की पहचान को महाराजा सुहेलदेव के शौर्य के साथ जोड़ा. योगी आदित्यनाथ ने सैयद सालार मसूद गाजी का बिना नाम लिए कहा कि विदेशी आक्रांता को महाराजा सुहेलदेव ने इस बहराइच में धूल धूसरित करने का काम किया था. बहराइच ऋषि बालार्क के नाम पर था.
सीएम योगी ने महाराजा सुहेलदेव और ऋषि बालार्क को बहराइच की पहचान बताते हुए कहा कि अधिकारी कर्मचारियों को अब अपने पोस्टिंग स्थल पर रात्रि निवास करना होगा.
योगी आदित्यनाथ ने कहा, “भारत की सनातन संस्कृति का गुणगान दुनिया कर रही है. हर नागरिक का दायित्व है कि वो भी ऐसा करे. किसी आक्रांता का महिमामंडन नहीं करना चाहिए. नया भारत आक्रांताओं को स्वीकार नहीं करेगा. आक्रांता के महिमामंडन का मतलब देशद्रोह है.
बहराइच में किसके नाम पर विवाद?
संभल के बाद सैयद सालार मसूद गाजी को लेकर बहराइच में भी हलचल बढ़ गई है. दरअसल, 1034 ईस्वी में बहराइच जिला मुख्यालय के समीप बहने वाली चित्तौरा झील के किनारे महराजा सुहेलदेव ने अपने 21 अन्य छोटे-छोटे राजाओं के साथ मिलकर सालार मसूद गाजी से युद्ध किया था और उसे युद्ध में पराजित कर मार डाला था. उसके शव को बहराइच में ही दफना दिया गया था, जहां सालाना जलसा होता है.
जानिए गजनवी के सेना के मुखिया के बारे में
जानकारों के मुताबिक, सैयद सालार मसूद गाजी का जन्म 1014 ईस्वी में अजमेर में हुआ था. वह विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी का भांजा होने के साथ उसका सेनापति भी था. तलवार की धार पर अपनी विस्तारवादी सोच के साथ सालार मसूद गाजी 1030-31 के करीब अवध के इलाकों में सतरिख (बाराबंकी ) होते हुए बहराइच, श्रावस्ती पहुंचा था.