गोंडा : पूर्वांचल का गोंडा जिला अब सिर्फ पारंपरिक खेती तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यहां के किसान सुगंधित फूलों की खेती कर इत्र उद्योग में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। वजीरगंज क्षेत्र में सैकड़ों किसानों ने गुलाब और सफेद गेंदा (ग्लाइडस) की खेती कर अपनी तकदीर बदल दी है। इनकी मेहनत और सफलता ने इस क्षेत्र को ‘मिनी कन्नौज’ के रूप में पहचान दिलानी शुरू कर दी है.
इत्र उत्पादन में नई पहचान बना रहा गोंडा
वजीरगंज क्षेत्र के किसान सुरेश कुमार, राहुल सिंह, अजीम, नौशाद, जलील, जिब्राइल, शकील और मजीद जैसे लोग सुगंधित फूलों की खेती में आगे बढ़ रहे हैं। पहले ये किसान पारंपरिक खेती तक सीमित थे, लेकिन अब इत्र उद्योग से जुड़कर मालाओं, अगरबत्तियों और इत्र निर्माण में अपनी खास पहचान बना रहे हैं। इस सफलता के चलते अन्य किसान भी इस व्यवसाय की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
क्या है सफेद गेंदा (ग्लाइडस)?
सफेद गेंदा एक विदेशी फूल है, जिसका उपयोग इत्र, फ्लेवर्ड प्रोडक्ट्स और अगरबत्तियों के निर्माण में किया जाता है. इसकी खेती किसानों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो रही है, क्योंकि प्रति हेक्टेयर खेती से 5 लाख रुपये तक का लाभ कमाया जा सकता है.
कैसे होता है इत्र का निर्माण?
ग्लाइडस के पौधों का रोपण अगस्त से अक्टूबर के बीच किया जाता है। रोपण के 20-25 दिनों के भीतर फूल खिलने लगते हैं। पूरी तरह से विकसित फूलों को टहनियों सहित तोड़कर सुखाया जाता है। इसके बाद विशेष मशीनों के माध्यम से फूलों का तेल निकाला जाता है, जिसे अन्य केमिकल्स के साथ मिलाकर इत्र, अगरबत्तियां और अन्य सुगंधित उत्पाद बनाए जाते हैं.
सुगंधित खेती से बदल रही किसानों की तकदीर
वजीरगंज में अब सैकड़ों किसानों ने सुगंधित फूलों की खेती अपनाई है। यहां का उत्पादन न सिर्फ स्थानीय बल्कि अन्य बड़े बाजारों तक भी पहुंच रहा है। किसानों की इस नई पहल से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिल रहा है.
अगर यह सिलसिला यूं ही जारी रहा, तो गोंडा का वजीरगंज जल्द ही सुगंधित उत्पादों के लिए नई पहचान बना सकता है और कन्नौज की तरह एक प्रमुख इत्र केंद्र के रूप में उभर सकता है.