गोंडा: शहर की सड़कों के किनारे लगे पेड़ों की छाती पर बेरहमी से ठोंकी जा रही कीलें न केवल उनके जीवन के लिए खतरा बन रही हैं, बल्कि पूरे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रही हैं, विज्ञापन प्लेटें लगाने और बिजली के तारों को सहारा देने के लिए कीलें ठोंकने से पेड़ों का वेस्कुलर सिस्टम क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिससे उनके अंदर पानी और पोषक तत्वों का प्रवाह बाधित होता है, इससे धीरे-धीरे वे कमजोर होकर मरने लगते हैं.
वैज्ञानिक चेतावनी: कैंसर जैसी घातक बीमारी का खतरा
लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर श्रवण कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, पेड़ों पर कील ठोंकने से उनकी आंतरिक संरचना को गंभीर नुकसान पहुंचता है। इससे उनके पोषण तंत्र पर प्रभाव पड़ता है और वे असमय सूख जाते हैं। वहीं, भागीरथी पीजी कॉलेज वजीरगंज के प्राचार्य गुरुवेन्द्र मिश्रा ने वैज्ञानिक रिपोर्टों का हवाला देते हुए बताया कि पेड़ों को भी कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं, और कील ठोंकना इसका बड़ा कारण बन सकता है.
पर्यावरण संरक्षण के दावों पर सवाल
पेड़ों पर कीलें ठोंकने और विज्ञापन बोर्ड लगाने के इस अमानवीय कृत्य पर वन विभाग और सामाजिक संगठनों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है, अक्सर सेमिनार और जागरूकता अभियानों में पर्यावरण संरक्षण की बातें की जाती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे.
सरकार को भेजा गया पत्र
प्राचार्य गुरुवेन्द्र मिश्रा ने इस गंभीर समस्या को लेकर पर्यावरण मंत्री, मुख्यमंत्री और कुछ सामाजिक संगठनों को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है, उन्होंने अनुरोध किया है कि पेड़ों पर कील ठोंकने की इस प्रथा को रोकने के लिए सख्त कानून बनाया जाए और इसके उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई की जाए.
क्या जागेगा प्रशासन?
जब तक इस समस्या पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक पेड़ों की यह ‘मूक चीख’ जारी रहेगी, अब देखना यह होगा कि प्रशासन और सामाजिक संगठन इस पर क्या कार्रवाई करते हैं, या फिर पेड़ यूं ही दम तोड़ते रहेंगे?