राजस्थान में पहला सेक्स सोर्टेड सीमन बैंक सोमवार से जयपुर जिले के बस्सी में शुरू होगा। इसकी मदद से बेहतर नस्ल के मादा बछड़े मिलने की संभावना बढ़ेगी, जिससे दूध उत्पादन और आय में वृद्धि होगी। साथ ही नर पशुओं की संख्या नियंत्रित की जा सकेगी। यह सुविधा नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) और राजस्थान को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (आरसीडीएफ) के सहयोग से शुरू की जा रही है।
बस्सी में 1977 से संचालित फ्रोजन सीमन बैंक में ही मॉडर्न लैब स्थापित की गई है, जिसमें एनडीडीबी की ओर से अमेरिका से लाई गई दो मशीनें लगाई गई हैं। मशीनों का आज ट्रायल किया जाएगा और पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत सोमवार को लैब का उद्घाटन करेंगे।
123 सांडों से कन्वेंशनल सीमन डोज तैयार होते हैं
कैबिनेट मंत्री पशुपालन, गोपालन, डेयरी एवं देवस्थान विभाग जोराराम कुमावत ने बताया- फिलहाल बस्सी में 123 सांडों से कन्वेंशनल सीमन डोज तैयार होते हैं, जबकि प्रदेश का दूसरा सीमन बैंक जोधपुर में है, जहां सालाना करीब 12 लाख कन्वेंशनल डोज तैयार किए जाते हैं। नई तकनीक से न केवल राजस्थान की मांग पूरी होगी, बल्कि अन्य राज्यों को भी डोज उपलब्ध कराई जा सकेगी।
सात नस्लों का सीमन तैयार होगा
लैब में नई तकनीक से भैंस की मुर्रा नस्ल, गाय की विदेशी नस्ल हॉलस्टियन फ्रोजियन (एचएफ), क्रॉसब्रिड हॉलस्टियन फ्रोजियन (सीबीएचएफ), और देशी नस्लें गिर, साहीवाल, थारपारकर व राठी के सेक्स सोर्टेड डोज तैयार किए जाएंगे। इससे पशुपालकों को बेहतर नस्ल के मादा बछड़े मिलने की संभावना बढ़ेगी, जिससे दूध उत्पादन और आय में वृद्धि होगी।
क्या है सेक्स सोर्टेड सीमन
सेक्स सोर्टेड सीमन एक तकनीक है, जिसमें मादा शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाई जाती है, जिससे मादा बछिया पैदा होने की संभावना 90% से ज्यादा होती है। इसका उपयोग कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination) के जरिए किया जाता है। यह तकनीक नर पशुओं की संख्या नियंत्रित करने में मदद करती है और आवारा पशुओं की समस्या को कम कर सकती है। पशुपालक अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय या सीमन स्टेशन से यह डोज ले सकेंगे।
ऐसे काम करेगी तकनीक सेक्स सॉर्टेड सीमेन तकनीक में लैब के अंदर वीर्य से नर (Y क्रोमोसोम) और मादा (X क्रोमोसोम) शुक्राणुओं को डीएनए की मात्रा में अंतर के आधार पर अलग किया जाता है। इसके बाद केवल मादा शुक्राणुओं वाले सीमेन को कृत्रिम गर्भाधान के लिए उपयोग किया जाता है। चूंकि गर्भधारण में इस्तेमाल होने वाले सभी शुक्राणु मादा बछिया पैदा करने की क्षमता रखते हैं, इसलिए इससे मादा बछिया होने की संभावना 90% से अधिक हो जाती है, जबकि सामान्य सीमेन में यह संभावना करीब 50% होती है।
नस्ल सुधार में अहम कदम
राजस्थान की अर्थव्यवस्था में पशुपालन का लगभग 10% हिस्सा है, जबकि कृषि और पशुपालन विभाग मिलकर राज्य की जीडीपी में 22% योगदान देते हैं। दूध उत्पादन में राजस्थान देश में दूसरे स्थान पर है। राज्य में चल रहे नस्ल सुधार कार्यक्रमों के तहत बस्सी में सेक्स सोर्टेड सीमन लैब की स्थापना को पशुपालन क्षेत्र के लिए एक अहम उपलब्धि माना जा रहा है।