पाकिस्तान लंबे समय से अफगानिस्तान में तालिबान और जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठनों का समर्थन करता रहा है. 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए 9/11 हमलों ने विश्व राजनीति को हिला दिया. पाकिस्तान को वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका का प्रमुख रणनीतिक साझेदार बनाया.
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस, सेना और धार्मिक नेताओं के बीच नापाक गठजोड़ ने देश में कट्टर इस्लाम को बढ़ावा दिया, जिससे पाकिस्तान खुद अपने ही बनाए आतंकवाद का शिकार बन गया. हाफिज सईद अकेले नहीं हैं; 12 अन्य वैश्विक आतंकी सरगनाएं भी पाकिस्तान में हैं. उनके नाम और संगठन हैं…
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— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
मौलाना मसूद अजहर – जैश-ए-मोहम्मद (JeM)
जकीउर रहमान लखवी – लश्कर-ए-तैयबा (LeT)
साजिद मीर – लश्कर-ए-तैयबा (LeT)
मोहम्मद याह्या मुजाहिद – लश्कर-ए-तैयबा (LeT)
हाजी मोहम्मद अशरफ – लश्कर-ए-तैयबा (LeT)
आरिफ कासमानी – लश्कर-ए-तैयबा (LeT)
मौलाना मुफ्ती मोहम्मद असगर (साद बाबा) – जैश-ए-मोहम्मद (JeM)
सैयद सलाहुद्दीन – हिजबुल मुजाहिदीन (HM)
अब्दुल रहमान मक्की – जमात-उद-दावा (JuD, LeT की सहयोगी)
आसिम उमर – अल कायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनेंट (AQIS)
सिराजुद्दीन हक्कानी – हक्कानी नेटवर्क
मुल्ला उमर – तालिबान (अफगान)
पाकिस्तान और आतंकवाद का इतिहास
पाकिस्तान ने 1980 के दशक से अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ मुजाहिदीन को समर्थन दिया. बाद में जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दिया. 9/11 हमलों के बाद, अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान ने अपनी नीतियों में बदलाव किया. आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में शामिल हुआ. लेकिन यह बदलाव अस्थायी और आर्थिक लाभ के लिए था. ISI और पाकिस्तानी सेना ने आतंकी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और हिजबुल मुजाहिदीन (HM) को समर्थन देना जारी रखा, खासकर कश्मीर में भारत के खिलाफ.
पाकिस्तान ने अफगान तालिबान, हक्कानी नेटवर्क और अल कायदा जैसे संगठनों को भी पनाह दी, जिससे वह आतंकवाद का केंद्र बन गया. यह गठजोड़ न केवल पड़ोसी देशों के लिए खतरा है, बल्कि पाकिस्तान की अपनी सुरक्षा और स्थिरता के लिए भी चुनौती बन गया है.
प्रमुख आतंकी संगठन
पाकिस्तान में कई आतंकी संगठन सक्रिय हैं, जो अपने धार्मिक विचारों (देवबंदी, अहल-ए-हदीस, जमात-ए-इस्लामी) और लक्ष्यों के आधार पर बंटे हैं. इनके उद्देश्य में पाकिस्तान सरकार को उखाड़ फेंकना, जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना या अफगान तालिबान का समर्थन करना शामिल है.
यहां कुछ प्रमुख संगठनों का विवरण है…
1. अल कायदा (पाकिस्तान)
अल कायदा मुख्य रूप से गैर-पाकिस्तानी आतंकियों का संगठन है, जो स्थानीय संगठनों जैसे तालिबान, LeT और JeM के साथ मिलकर काम करता है. वैश्विक इस्लामी खिलाफत की स्थापना. इंटरनेट के जरिए दुष्प्रचार, IED (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) और आत्मघाती हमले.
2. तालिबान
अफगान तालिबान और पाकिस्तानी तालिबान (TTP) दोनों पाकिस्तान में सक्रिय हैं. ये देवबंदी विचारधारा से प्रेरित हैं. अफगानिस्तान में नाटो बलों के खिलाफ युद्ध, FATA में इस्लामीकरण और पाकिस्तान में इस्लामी अमीरात की स्थापना. आत्मघाती हमले, अपहरण और हत्याएं.
3. जमात-ए-इस्लामी (JI)
1941 में मौलाना अबुल आला मवदूदी द्वारा स्थापित, यह एक इस्लामी राजनीतिक संगठन है. पाकिस्तान को शरिया कानून के तहत इस्लामी राज्य बनाना. अफगान मुजाहिदीन को हथियार और प्रशिक्षण देना. कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के जरिए जिहाद को समर्थन.
4. हिजबुल मुजाहिदीन (HM)
1989 में मोहम्मद अहसन डार द्वारा स्थापित, यह कश्मीर केंद्रित संगठन है, जिसे JI का समर्थन प्राप्त है. जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना. इस्लामी खिलाफत की स्थापना. भारतीय सुरक्षा बलों और राजनेताओं पर हमले.
5. लश्कर-ए-तैयबा (LeT)
1980 के दशक में हाफिज मुहम्मद सईद द्वारा स्थापित, यह अहल-ए-हदीस विचारधारा का पालन करता है. दक्षिण एशिया में इस्लामी खिलाफत और कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना. 2008 मुंबई हमले (26/11), जिसमें 164 लोग मारे गए.
6. जैश-ए-मोहम्मद (JeM)
2000 में मौलाना मसूद अजहर द्वारा स्थापित. इनका मकसद- कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना और पश्चिमी देशों के खिलाफ जिहाद. 2001 में कश्मीर विधानसभा और भारतीय संसद पर हमले.
7. सिपाह-ए-सहाबा (SSP) और लश्कर-ए-झंगवी (LeJ)
SSP 1985 में स्थापित एक सुन्नी देवबंदी संगठन है, जिसका कट्टरपंथी हिस्सा LeJ है. पाकिस्तान को सुन्नी राज्य बनाना और शिया समुदाय को हाशिए पर धकेलना. शिया मस्जिदों और अल्पसंख्यकों पर हमले.
8. हरकत-उल-मुजाहिदीन (HuM)
1985 में स्थापित, यह कश्मीर और अफगानिस्तान में सक्रिय है. कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना और पश्चिमी ताकतों के खिलाफ जिहाद. प्रशिक्षण शिविर और आतंकी हमले.
9. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP)
2004 में बैतुल्लाह मेहसूद द्वारा स्थापित, यह पाकिस्तानी तालिबान है. पाकिस्तान सरकार को उखाड़ फेंकना और इस्लामी अमीरात की स्थापना. आत्मघाती हमले, बम विस्फोट और अपहरण.
10. यूनाइटेड जिहाद काउंसिल (UJC)
13 जिहादी संगठनों का गठबंधन, जिसका नेतृत्व हिजबुल मुजाहिदीन के सैयद सलाहुद्दीन करते हैं. कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना. हथियार, धन और प्रचार सामग्री का वितरण.
11. ISIS का प्रभाव
ISIS ने 2014 में पाकिस्तान में अपनी मौजूदगी बढ़ाई, खासकर खोरासान प्रांत के तहत. वैश्विक इस्लामी खिलाफत की स्थापना. प्रचार सामग्री का वितरण, शिया समुदाय पर हमले और अन्य आतंकी संगठनों के साथ गठजोड़.
आतंकवादियों का प्रशिक्षण
आतंकी संगठन अपने लड़ाकों (मुजाहिदीन) को 18 महीने के कठिन प्रशिक्षण से तैयार करते हैं. यह प्रशिक्षण छह चरणों में होता है…
तासीस: एक महीने का धार्मिक और वैचारिक प्रशिक्षण.
अल राद: तीन महीने का प्रशिक्षण, जिसमें सैन्य प्रशिक्षण शुरू होता है.
गुरिल्ला प्रशिक्षण: छह महीने का युद्ध प्रशिक्षण.
दोश्का: 7-10 दिन का हल्के हथियारों का प्रशिक्षण.
जंदला: नौ महीने का कठिन प्रशिक्षण, जिसमें स्वचालित हथियार और विस्फोटक बनाना सिखाया जाता है.
दोमेला और जकजक: नेतृत्व के लिए विशेष प्रशिक्षण, जिसमें भारी हथियारों का उपयोग सिखाया जाता है.
पाकिस्तान सेना और ISI की भूमिका
पाकिस्तान की सेना और ISI आतंकी संगठनों को हथियार, धन, प्रशिक्षण और रणनीतिक सहायता प्रदान करती हैं. अफगान-सोवियत युद्ध (1979-1989) के दौरान ISI ने अमेरिका की मदद से मुजाहिदीन को समर्थन दिया. 1989 में सोवियत सेना की वापसी के बाद, ISI ने इन मुजाहिदीन को कश्मीर में भेजा, ताकि वहां इस्लामी जिहाद को बढ़ावा मिले.
ISI का समर्थन: ISI ने हक्कानी नेटवर्क, अफगान तालिबान और कश्मीर-केंद्रित संगठनों को पनाह दी. 2011 में अमेरिकी सेना ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के ऐबटाबाद में मार गिराया, जिससे ISI की भूमिका पर सवाल उठे.
प्रशिक्षण शिविर: पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 100 से अधिक प्रशिक्षण शिविर हैं, जो ISI के जॉइंट इंटेलिजेंस मिसेलेनियस (JIM) और जॉइंट इंटेलिजेंस नॉर्थ (JIN) द्वारा संचालित होते हैं.
वित्तीय सहायता: ISI आतंकी संगठनों को सालाना 125-250 मिलियन डॉलर प्रदान करती है.
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9/11 और अमेरिका के साथ “दोहरा खेल”
9/11 हमलों के बाद, अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध शुरू किया. पाकिस्तान को अपना प्रमुख सहयोगी बनाया. पाकिस्तान ने अमेरिका को हवाई और जमीनी सुविधाएं दीं, लेकिन साथ ही तालिबान और अन्य आतंकी संगठनों को समर्थन देना जारी रखा.
आर्थिक लाभ: अमेरिका ने 2002-2003 में पाकिस्तान को 1.2 बिलियन डॉलर की सहायता दी, जिसमें USAID के माध्यम से विकास सहायता और 600 मिलियन डॉलर की नकद सहायता शामिल थी.
प्रतिबंध हटाए: अमेरिका ने पाकिस्तान पर परमाणु हथियारों के कारण लगे प्रतिबंध हटा दिए.
दोहरा खेल: पाकिस्तान ने घरेलू आतंकवाद (जैसे LeJ और SSP) को दबाया, लेकिन कश्मीर और अफगानिस्तान में सक्रिय संगठनों (LeT, JeM, HM) को समर्थन दिया.
पाकिस्तान में आतंकवाद का प्रभाव
पाकिस्तान ने आतंकवाद को बढ़ावा देकर खुद को खतरे में डाल लिया है. FATA क्षेत्र आतंकियों का गढ़ बन गया है, जहां तालिबान, अल कायदा और ISIS सक्रिय हैं. TTP ने पाकिस्तान में कई हमले किए, जिनमें 2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्या और 2014 में पेशावर स्कूल हमला (150 मृत, ज्यादातर बच्चे) शामिल हैं.
शिया और अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले: TTP, LeJ और ISIS ने शिया मस्जिदों और सूफी दरगाहों पर हमले किए.
आर्थिक और सामाजिक नुकसान: आतंकवाद ने पाक की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे को कमजोर किया.
धार्मिक कट्टरता और चुनौतियां
पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता आतंकवाद का मुख्य कारण है. देवबंदी, अहल-ए-हदीस और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन जिहाद को बढ़ावा देते हैं. ISI और सेना की चुनिंदा नीति (कश्मीर में आतंकियों को समर्थन, लेकिन घरेलू आतंकियों का दमन) ने स्थिति को और जटिल किया है.
ISIS का उदय: 2014 से ISIS ने पाकिस्तान में अपनी मौजूदगी बढ़ाई, जिससे कट्टरपंथ और हिंसा में वृद्धि हुई.
मदरसों का प्रभाव: हजारों मदरसे आतंकियों को प्रशिक्षित और वैचारिक रूप से तैयार करते हैं.