हलाल प्रोडक्ट्स विवाद: जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने SC में दाखिल किया हलफनामा, SG के बयानों पर जताई आपत्ति

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से हलाल-प्रमाणित उत्पादों पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक, जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दायर किया है. इस हलफनामे में ट्रस्ट ने सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता द्वारा पिछली सुनवाई के दौरान दिए गए बयानों पर कड़ी आपत्ति जताई है.

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ट्रस्ट का कहना है कि हलाल प्रमाणीकरण केवल मांसाहारी उत्पादों तक सीमित नहीं है, और न ही इसे सिर्फ निर्यात उद्देश्यों के लिए माना जा सकता है. हलफनामे में मांग की गई है कि न्यायालय को SG मेहता के उस बयान की जांच करनी चाहिए, जिसमें उन्होंने कहा था कि हलाल प्रमाणन एजेंसियां ’कुछ लाख करोड़’ रुपए कमाती हैं. आरोप है कि केंद्र सरकार की दलीलों से एक नकारात्मक धारणा बनी है.

केंद्र सरकार पर पक्षपात का आरोप

याचिकाकर्ता ट्रस्ट का आरोप है कि केंद्र सरकार की दलीलों ने उन्हें बदनाम किया है. इसके परिणामस्वरूप, कुछ मीडिया संगठनों ने इस मुद्दे पर बहस शुरू कर दी, जिससे हलाल प्रमाणीकरण प्रक्रिया और अधिक विवादों में घिर गई. ट्रस्ट का कहना है कि इस तरह की बहस से हलाल की अवधारणा और उसकी प्रमाणन प्रक्रिया के खिलाफ एक सुनियोजित कथा गढ़ी गई है.

हलफनामे में यह भी आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए तथ्यों ने गंभीर पूर्वाग्रह को जन्म दिया है, जिससे हलाल अवधारणा के प्रति नकारात्मक धारणा बनी है. इसके चलते कुछ पक्षपातपूर्ण मीडिया संगठनों को हलाल प्रमाणन के खिलाफ माहौल बनाने का मौका मिल गया.

SG तुषार मेहता के बयान पर सवाल

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से यह स्पष्ट करने की मांग की है कि SG तुषार मेहता को इस मामले पर बयान देने के निर्देश किसने दिए थे. उनका कहना है कि इस तरह का बयान बिना किस आधार पर दिया गया और यह रिकॉर्ड में उपलब्ध तथ्यों से मेल नहीं खाता. ट्रस्ट ने अदालत से यह निर्देश देने की भी अपील की है कि केंद्र सरकार को यह बताना चाहिए कि किस अधिकारी ने SG मेहता को यह बयान देने के लिए अधिकृत किया था.

संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप

हलफनामे में कहा गया है कि हलाल की अवधारणा एक बड़े समुदाय की धार्मिक और जीवनशैली से जुड़ी हुई है. इसलिए, इसे प्रतिबंधित करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन होगा. याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच की जाए और हलाल प्रमाणन प्रक्रिया को गलत तरीके से प्रस्तुत करने के प्रयासों पर रोक लगाई जाए.

अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की आगे की सुनवाई महत्वपूर्ण होगी. हलाल प्रमाणन से जुड़े इस विवाद ने धार्मिक स्वतंत्रता, व्यापारिक हितों और सरकारी नीतियों के टकराव को उजागर कर दिया है. देखना होगा कि शीर्ष अदालत इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है और क्या केंद्र सरकार अपने दावों को साबित करने के लिए कोई नए तर्क पेश करती है.

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