रंगों के पर्व होली में जितने रंग हैं, देश में उतनी ही हैं इसे मनाने की परंपराएं. संगम नगरी प्रयागराज में होली का ऐसा ही एक अनूठा रंग है, यहां की हथौड़ा बारात. इस बारात में ‘हथौड़ा’ दूल्हा होता है, तो दुल्हन ‘कद्दू’. हर साल की तरह इस बार भी यहां हथौड़ा बारात निकली. इस बारात को देखने के लिए शहर भर से लोग आए. यह बारात लोगों के लिए उल्लास का कारण तो बना ही, साथ ही कुरीतियों के खिलाफ कई सामाजिक संदेश भी दिया.
इस दौरान दूल्हन बने कद्दू का लोगों ने सोलह शृंगार किया हुआ था. मायके पक्ष बारात के आने के आने का पलक पावडे बिछाए इंतजार करता दिखा. शहर के चौक इलाके से निकली इस बारात में स्थानीय व्यापारी और बुद्धजीवी बाराती बने. बैंड बाजे और गाजे बाजे के साथ दूल्हे राजा हथौड़े की यह बारात शहर के ऐतिहासिक नीम के पेड़ से निकली और पूरे शहर की मुख्य गलियों से गुजर कर एक पार्क में पहुंची जोकि दुल्हन का घर था.
हथौड़ा बारात क्यों निकाली जाती है?
आयोजक बताते हैं कि इस अनोखी होली बारात में हथौड़ा राजनैतिक और जन चेतना का प्रतीक है और कद्दू भ्रष्टाचार और कुरीतियों का. जन चेतना की आंखों में आज अज्ञानता का पर्दा पड़ गया है. उसी विद्रूपता का प्रतीक है, प्रयागराज की यह हथौड़ा बारात.
हथौड़ा असत्य और सत्य के बीच , सामाजिक विद्रूपताओं को उजागर करने का एक प्रतीक होता है. इसीलिए इसे दुल्हा चुना गया था. अदालत में भी इसी प्रतीक का इस्तेमाल होता है. दुल्हन कद्दू, जिसके अंदर अबीर गुलाल और रंग भरे होते हैं मौजूदा समाज का प्रतीक है.
लालटेन से उतारी गई आरती
शहर भर का चक्कर लगाने के बाद बारात उस पार्क में पहुंची, जहां दुल्हन की तरह सजी दुल्हन कद्दू का इंतजार कर रही थी. दूल्हे की मिट्टी के तेल, लालटेन और मूसल के साथ आरती उतारी गई. इसके बाद हथौड़े से कद्दू पर प्रहार किया गया, जिससे रंगों से भरा कद्दू टूट गया और कद्दू में भरा रंग चारों ओर फ़ैल गया