राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जनसंख्या नियंत्रण पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि देश की जरूरतों और भविष्य को देखते हुए हर परिवार को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए। उनके अनुसार, यह कदम देश के संतुलन और विकास के लिहाज से आवश्यक है।
मोहन भागवत ने कहा कि भारत की परंपरा और संस्कृति हमेशा से जीवन के संरक्षण और समाज के संतुलन पर आधारित रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जनसंख्या केवल बोझ नहीं है, बल्कि सही दिशा में मार्गदर्शन मिलने पर यह देश की ताकत भी बन सकती है।
उन्होंने कहा कि आज के समय में जहां कुछ परिवार “दो बच्चों” तक सीमित रहना चाहते हैं, वहीं समाज और देश की आवश्यकताओं को देखते हुए यह संख्या पर्याप्त नहीं है। तीन बच्चों का परिवार ही सही मायनों में समाज और राष्ट्र की स्थिरता में योगदान दे सकता है।
भागवत ने अपनी बात रखते हुए यह भी कहा कि भारत की परंपराओं, ज्ञान और शास्त्रों को समझने के लिए संस्कृत का बुनियादी ज्ञान जरूरी है। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि आने वाली पीढ़ी को संस्कृत और भारतीय मूल्य प्रणाली से जोड़ा जाए, ताकि समाज की जड़ों को मजबूत किया जा सके।
आरएसएस प्रमुख ने यह भी स्पष्ट किया कि जनसंख्या नीति केवल संख्या बढ़ाने या घटाने का मामला नहीं है, बल्कि इसमें राष्ट्रहित, सामाजिक संतुलन और सांस्कृतिक निरंतरता का विचार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के पास विशाल संसाधन और क्षमता है, बस जरूरत है कि जनसंख्या को सही दिशा में प्रशिक्षित और शिक्षित किया जाए।
मोहन भागवत के इस बयान ने जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन पर नई बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी यह टिप्पणी सरकार की जनसंख्या नीति और समाज की मानसिकता दोनों को प्रभावित कर सकती है। वहीं, कई लोग इसे भारत की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और भविष्य की चुनौतियों के संदर्भ में महत्वपूर्ण मान रहे हैं।